
शिव योग किसी धार्मिक कर्म काण्ड की विधि नहीं है और न ही अपने आराध्य पूजन हेतु वस्तुओं सामाग्रियों को एकत्रित करने के लिए भाग-दौड़ करनी पड़ती है। यह सम्पूर्ण मानवता के लिए, आत्म विकास हेतु, अपने को समुन्नत कर विशेष जीवन शैली का निर्माण करती है जहां सिर्फ पूर्ण स्वास्थ्य है, पूर्ण सम्पन्नता है, पूर्ण सफलता है। परस्पर प्रेम की अटूट भावना है, सहयोग, बन्धुत्व एवं सौर्हाद्र भरा सरस जीवन है।
शिव अर्थात अनन्त और योग अर्थात् जुड़ना यानि अनन्त के साथ एक होना ही शिवयोग है। हर आत्मा, परमात्मा का स्वरूप है। जीवात्मा के रूप में संचित कर्मों के वशीभूत वह अपने शिवत्व को भूल चुकी है, शिव योग उसे परमात्मा के साथ जोड़ शिवमय बना देता है। हर एक में अनन्त को पाने, अनन्त जैसा होने और इस ब्रह्माण्ड जैसी रचना करने की अनन्त क्षमता है। शिव योग वह प्रक्रिया है जो हमारी इसी क्षमता को उजागर करती है। हम जीवन के प्रत्येक बंधन से उपर उठकर संचित कर्मों का नाश करते हुए अपने जीवन की रचना अपने अनुसार कर पूर्ण स्वास्थ्य, सम्पन्नता, सफलता को प्राप्त कर जीवन को सुखी बना सकते हैं। शिवयोग का मूल उद्देश्य आप को अपने ही साथ जोड़ना और उस परम के रूप में अपने आप का अनुभव करना है।
भारतीय हीलिंग पद्धति के जनक तथा सिद्ध परम्परा के महान सन्त एवं सिद्धत्व को प्राप्त परम पूज्य अवधूत बाबा स्वामी शिवानन्द जी महराज ने प्राचीन ऋषि मुनियों एवं सिद्धों के रहस्यात्मक ज्ञान को पुनर्जीवित कर उसे आम आदमी के जीवन में उतारने का संकल्प किया है। पूर्ण शिवमय हो चुके निष्काम प्रेम आनन्द एवं करुण तथा दया से भरे हुए परम पूज्य बाबा जी मानव जाति के मार्गदर्शी बनकर खुले हृदय से, दिन रात अथक परिश्रम करते हुए उस दिव्य ज्ञान से हम सभी को अवगत करा रहे हैं। उनके ज्योतिर्मय प्रवचन और ध्यान हम सभी के जीवन में180 डिग्री का परिवर्तन करने में सक्षम हैं। परम पूज्य बाबा जी का कहना है कि मै शक्ति देता हूं, रास्ता दिखाता हूं, जो तुम चाहते हो उसे प्राप्त कर सकते हो।
इस मशीनी युग में मनुष्य का अन्तस भी मशीनी ढंग से स्पन्दित होकर चेतना शून्य हो गया है। अपने से ही उसने अपने को अलग कर अन्तर्रात्मा की आवाज को अनसुना कर बीमारी, असफलता, पीड़ा, द्वेष, निन्दा और पारिवारिक कलह के चक्रव्यूह में घेर रखा है। स्थिति यह है कि उसके पास सब कुछ है किन्तु उसे यह अनुभूति होती है कि उसका सब कुछ खोया हुआ है। व्यक्तित्व का केन्द्रीकरण कर व्यक्ति अनजाने इतना स्वार्थी हो गया है कि अपने ही सगे संबंधी, माता-पिता, पुत्र एवं पत्नी आदि के साथ रहकर भी उनसे दूर हो गया है। कहीं न कहीं रिक्तता का अहसास उसे खाए जा रहा है, मन की शान्ति नहीं मिल रही। दूसरी तरफ व्यक्तियों का एक ऐसा भी समुदाय है जो गरीबी, असफलता, बीमारी एवं अवसाद को कभी न जाने वाला तत्व मानकर पीड़ामय जीवन जी रहे हैं। शिव योग 100प्रतिशत चेतना की अवस्था प्रदान करता हैं। जीवन को सुखी, सफल एवं सम्पन्न बनाने का मार्ग है शिव योग।
परम पूज्य बाबा जी का कहना है कि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जिसे चुनने का अधिकार है। हम वस्त्रों का चुनाव करते हैं, साज सज्जा की सामग्रियों का चुनाव करते हैं, आज भोजन के लिए क्या पकाया जाएगा? क्या सब्जी बनेगी? इत्यादि का चुनाव करते हैं तो फिर हम यह चुनाव क्यों नहीं करते हमें कैसा जीवन चाहिए। परम पूज्य बाबा जी यही पूछते हैं कि तुम क्या चाहते हो? शिव योग सांसारिक सुखों भोगों को प्रदान कर मनुष्य को परम तत्व की ओर ले जाता है। अन्तर इतना है कि शिवयोग में आने से पहले लोग धन दौलत, पद प्रतिष्ठा और सफलता के पीछे दौड़ते हैं। शायद मृगतृष्णा की तरह निराश भी होना पड़ता हो किन्तु शिव योग साधना एवं नियमों के पालन होने पर साधक आगे चलता है और उसके पीछे पीछे धन, दौलत, ऐश्वर्य, पद प्रतिष्ठा और सफलता दौड़ती है, सब कुछ प्राप्त होता है किन्तु आसक्ति नहीं रहती। जहाँ आसक्ति नहीं रहेगी, वहां दुख भी नहीं होगा।
शिव योग किसी धार्मिक कर्म काण्ड की विधि नहीं है और न ही अपने आराध्य पूजन हेतु वस्तुओं सामाग्रियों को एकत्रित करने के लिए भाग-दौड़ करनी पड़ती है। यह सम्पूर्ण मानवता के लिए, आत्म विकास हेतु, अपने को समुन्नत कर विशेष जीवन शैली का निर्माण करती है जहां सिर्फ पूर्ण स्वास्थ्य है, पूर्ण सम्पन्नता है, पूर्ण सफलता है, परस्पर प्रेम की अटूट भावना है, सहयोग, बन्धुत्व एवं सौहार्द्र भरा सरस जीवन है। (हिफी)