अध्यात्म

गांधी जी ने पहले सीखा, फिर सिखाया

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
कोई यूं ही राष्ट्रपिता नहीं हो जाता। मोहन दास कर्मचंद गांधी भारत के राष्ट्रपिता बने तो उन्होंने राष्ट्र को पुत्रवत समझा। आज के नेता कुर्सी को पुत्रवत समझते हैं। इसलिए वे गांधी जी को अब तक समझ नहीं पाये। सोशल मीडिया पर कभी-कभी ऐसा पढ़ने को मिल जाता है जिससे मन वितृष्णा से भर जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर भी कीचड़ उछालने वाले हैं, यह सोचकर ही मन ग्लानि से भर जाता है। बापू ने पहले खुद सीखा उसके बाद लोगों को सिखाया। तिरुक्कुरल जो प्राचीन भारतीय साहित्य, मूल रूप से तमिल में लिखा गया। इसी प्राचीन ग्रंथ से गांधी जी ने सत्याग्रह के विचार सीखे थे। राजा हरिश्चंद्र की कहानी से सत्य बोलना सीखा और सम्राट अशोक से अहिंसा। उन्होंने 1906 में अहिंसक विरोध प्रदर्शन लागू किया। अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताने के बाद भारतीय समुदाय के बापू बने थे। उन्होंने यहां के लोगों के अधिकारों के लिये संघर्ष शुरू किया और राष्ट्रपिता बन गये। महात्मा गांधी का सत्याग्रह सच्चे सिद्धांतों और अहिंसा पर टिका था। उनका कहना था कि ऐसे जिओ जैसे कि तुम्हें कल मरना है और ऐसे सीखो जैसे तुम्हें हमेशा के लिए जीना है। ऐसे महात्मा की संघ की विचारधारा से प्रभावित नाथू राम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह कृतज्ञ राष्ट्र अपने राष्ट्रपिता की शहादत को याद करते हुए 30 जनवरी को विशेष रूप से गांधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। पूर्वाह्ान लगभग 11 बजे पूरा देश 2 मिनट के लिए ठहर जाता है, ट्रेने रुक जाती हैं और बड़े अपने बच्चों को बताते हैं कि इसी समय प्रार्थना सभा में गांधी जी को गोली मारी गयी थी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनका नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे, जिन्होंने आजादी की जंग में भारतीयों को एक किया और अहिंसा के मार्ग पर चलकर देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम योगदान दिया। भारत में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह इंग्लैंड गए लेकिन बाद में स्वदेश वापस लौट आए। बाद में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की और वहां अप्रवासी अधिकारों की रक्षा के लिए सत्याग्रह किया। स्वतंत्रता के लिए गांधी जी ने कई आंदोलन किए। इसमें सत्याग्रह और खिलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह, डांडी यात्रा आदि शामिल है। गांधी जी ने देश की आजादी की लड़ाई में अहिंसा का सिद्धांत अपनाया। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सौहार्द और एकता बढ़ाने का प्रयास किया।भारतीय स्वतंत्रता मिलने के बाद गांधी जी ने भारतीय समाज के साथ सामाजिक और आर्थिक सुधार के लिए काम किया और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया। उन्होंने सच्चाई, संयम और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। आजादी की लड़ाई में गांधी जी ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। उनके लिए सादगी पूर्ण जीवन ही सौन्दर्यता थी। गांधी जी का जीवन एक साधक के रूप में भी मशहूर है। उन्होंने सादगी, निर्लिप्तता, और आत्मा के साथ संबंध को महत्वपूर्ण धारणाओं में जिया। एक धोती में पदयात्रा, आश्रमों में जीवन व्यतीत करने वाले गांधी भारतीयों के लिए पिता तुल्य हो गए और लोग उन्हें प्रेम व आदरपूर्वक बापू कहकर पुकारने लगे। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहने का संबोधन पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर सम्मानित किया था क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान था और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। भारत छोड़ते समय जैन भिक्षु बेचारजी के समक्ष हिन्दुओं को मांस, शराब तथा संकीर्ण विचारधारा को त्यागने के लिए अपनी माता जी को दिए गये एक वचन ने उनके शाही राजधानी लंदन में बिताये गये समय को काफी प्रभावित किया। हालांकि गांधी जी ने अंग्रेजी रीति रिवाजों का अनुभव भी किया जैसे उदाहरण के तौर पर नृत्य कक्षाओं में जाने आदि का। फिर भी वह अपनी मकान मालकिन द्वारा मांस एवं पत्ता गोभी को हजम नहीं कर सके। उन्होंने कुछ शाकाहारी भोजनालयों की ओर इशारा किया। अपनी माता की इच्छाओं के बारे में जो कुछ उन्होंने पढा था उसे सीधे अपनाने की बजाय उन्होंने बौद्धिकता से शाकाहारी को अपना भोजन स्वीकार किया।
गांधी 1951 में दक्षिण अफ्रीका से भारत में रहने के लिए लौट आए, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों पर अपने विचार व्यक्त किए, लेकिन उनके विचार भारत के मुख्य मुद्दों, राजनीति तथा उस समय के कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर ही आधारित थे जो एक सम्मानित नेता थे। गांधी की पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में चम्पारन सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह में मिली हालांकि अपने निर्वाह के लिए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए नील नकद पैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती वाले आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे। जमींदारों (अधिकांश अंग्रेज) की ताकत से दमन हुए भारतीयों को नाममात्र भरपाई भत्ता दिया गया जिससे वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। गांवों को बुरी तरह गंदा और अस्वास्थ्यकर और शराब, अस्पृश्यता और पर्दा से बांध दिया गया। अब एक विनाशकारी अकाल के कारण शाही कोष की भरपाई के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। यह स्थिति निराशजनक थी। खेड़ा, गुजरात में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम बनाया जहाँ उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया। उन्होंने गांवों का एक विस्तृत अध्ययन और सर्वेक्षण किया जिसमें प्राणियों पर हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा गया और इसमें लोगों की अनुत्पादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिल किया गया था। ग्रामीणों में विश्वास पैदा करते हुए उन्होंने अपना कार्य गांवों की सफाई करने से आरंभ किया जिसके अंतर्गत स्कूल और अस्पताल बनाए गए और उपरोक्त वर्णित बहुत सी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए ग्रामीण नेतृत्व प्रेरित किया।
महात्मा गांधी को अशांति फैलाने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया और उन्हें प्रांत छोड़ने के लिए आदेश दिया गया। हजारों की तादाद में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए और जेल, पुलिस स्टेशन एवं अदालतों के बाहर रैलियां निकालकर गांधी जी को बिना शर्त रिहा करने की मांग की। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को का नेतृत्व किया। इस संघर्ष के दौरान ही, गांधी जी को जनता ने बापू पिता और महात्मा (महान आत्मा) के नाम से संबोधित किया। खेड़ा में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ विचार-विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया जिसमें अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप, गाधी की ख्याति देश भर में फैल गई।
30 जनवरी, 1948, गांधी की उस समय नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई जब वे नई दिल्ली के बिड़ला भवन (बिरला हाउस के मैदान में रात चहलकदमी कर रहे थे। गांधी का हत्यारा नाथूराम गौड़से हिन्दू राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी हिंदू महासभा के साथ संबंध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को 46 करोड़ भुगतान करने के मुद्दे को लेकर भारत को कमजोर बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। गोड़से और उसके सह षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा 15 नवंबर 1949 को इन्हें फांसी दे दी गई। राज घाट, नई दिल्ली, में गांधी जी के स्मारक पर देवनागरी में हे राम लिखा हुआ है। (हिफी)

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