श्रीविजयपुरम से आत्मगौरव

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
मोदी सरकार का यह फैसला निश्चित रूप से सराहनीय है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्रीविजयपुरम कर दिया गया। इससे उस काले इतिहास का कटु स्मरण भी होता था जब ब्रिटिश शासन ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को कश्ट देकर राष्ट्र भक्ति से डिगाने का असफल प्रयास किए। अब इससे आत्मगौरव की अनुभूति होती है । बता दें कि देश की मोदी सरकार लगातार अंडमान-निकोबार में द्वीपों के नाम बदल रही है। इससे पहले केंद्र सरकार ने रोस आइलैंड का नामकरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वीप के नाम पर किया था। वहीं इसके अलावा नील आइलैंड को शहीद द्वीप और हेवलॉक आइलैंड को स्वराज द्वीप का नाम देने का फैसला सुनाया था। इसके बाद केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार द्वीप समूह के 21 द्वीपों का नामकरण परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर किया गया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 13 सितंबर को एक्स पर एक पोस्ट में पोर्ट ब्लेयर के नए नाम का एलान किया है। अमित शाह ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी विजन के तहत देश को औपनिवेशिक पहचान से मुक्त करने के लिए हमने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजय पुरम करने का निर्णय लिया है। अब गुलामी का एक और निशान मिटा दिया गया है। पोर्ट ब्लेयर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है। यह अंडमान और निकोबार के द्वीपों की खोज का प्रवेश द्वार भी है। द्वीप के नौसैनिकों के संरक्षण के लिए शहर में कई समुद्री राष्ट्रीय उद्यान और संग्रहालय हैं। यदि आप अंडमान द्वीप समूह की संस्कृति और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को समझना चाहते हैं तो पोर्ट ब्लेयर सही जगह है। यह ऐतिहासिक स्थलों से लेकर शांत समुद्र तट तक अनुभवों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है। पोर्ट ब्लेयर में घूमने के लिए कई पर्यटन स्थल हैं, जिनमें आसपास के कई समुद्र तटों और द्वीपों के अलावा सेल्यूलर जेल, समुद्रिका नौसेना समुद्री संग्रहालय और माउंट हैरियट नेशनल पार्क भी शामिल हैं। महात्मा गांधी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान सबसे पुराना है। इसके अलावा, शहर प्रसिद्ध आईएनएस जारवा का घर है जो पोर्ट ब्लेयर में फीनिक्स बे में स्थित है।
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के अनुसार, मूल रूप से वहां रहने वाले लोग लगभग 40,000 साल पहले उत्तरी अफ्रीका से इस शहर में आए थे। आधुनिक इतिहास के अनुसार, पोर्ट ब्लेयर का गठन बंगाल सरकार द्वारा वर्ष 1789 में चाथम द्वीप पर एक दंड उपनिवेश के रूप में किया गया था जो अंडमान के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में स्थित है। ईस्ट इंडिया कंपनी के लेफ्टिनेंट आर्चीबाल्ड ब्लेयर के नाम पर शहर को ‘पोर्ट ब्लेयर’ नाम दिया गया था। बाद में, दंड कॉलोनी को अंडमान के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया और एडमिरल विलियम कॉर्नवॉलिस को सम्मानित करने के लिए पोर्ट कॉर्नवॉलिस का नाम बदल दिया गया लेकिन, बार-बार मौतें और बीमारियाँ होने लगीं, जिससे इसे बंद कर दिया गया और ब्रिटिश सरकार ने कैदियों के लिए जेलों के तत्काल निर्माण का आदेश दिया, जो प्रमुख रूप से भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और राजनीतिकों के लिए थीं। जेल को नाम दिया गया सेलुलर जेल उर्फ काला पानी।
पोर्ट ब्लेयर का नाम आर्चीबाल्ड ब्लेयर के नाम पर रखा गया था। वो ईस्ट इंडिया कंपनी के नौसेना अधिकारी थे। आर्चीबाल्ड ब्लेयर की देखरेख में पोर्ट ब्लेयर को तैयार किया गया था। इस द्वीप को ब्रिटिश मैरिटाइम नेटवर्क का सेंटर बनाया गया। प्रशासनिक और व्यापारिक गतिविधियों पर पोर्ट ब्लेयर से ही नजर रखी जाती थीं।
गृहमंत्री अमित शाह ठीक ही कहते हैं कि ‘श्रीविजयपुरम’ नाम हमारे स्वाधीनता के संघर्ष और इसमें अंडमान और निकोबार के योगदान को दर्शाता है। इस द्वीप का हमारे देश की स्वाधीनता और इतिहास में अद्वितीय स्थान रहा है। चोल साम्राज्य में नौसेना अड्डे की भूमिका निभाने वाला यह द्वीप आज देश की सुरक्षा और विकास को गति देने के लिए तैयार है। विजय पुरम स्वतंत्रता संग्राम में हासिल की गई जीत और उसमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अद्वितीय भूमिका का प्रतीक है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हमारे स्वतंत्रता संग्राम और इतिहास में अद्वितीय स्थान है। यह द्वीप क्षेत्र जो कभी चोल साम्राज्य के नौसैनिक अड्डे के रूप में कार्य करता था, आज हमारी रणनीतिक और विकास आकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण आधार बनने के लिए तैयार है। यह वह स्थान भी है जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगे को पहली बार फहराया था और वह सेल्युलर जेल भी है जहां वीर सावरकर और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के लिए संघर्ष किया था।
पोर्ट ब्लेयर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी है। यह अंडमान और निकोबार के द्वीपों की खोज का प्रवेश द्वार भी है। द्वीप के नौसैनिकों के संरक्षण के लिए शहर में कई समुद्री राष्ट्रीय उद्यान और संग्रहालय हैं। पोर्ट ब्लेयर अपनी खूबसूरती के साथ-साथ काला पानी की सजा के लिए भी जाना जाता है। यहां पर अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में “सेल्लुलर जेल” नाम की एक जगह बनाई थी। यह अत्यंत गहरी और अंधकार भरी कालकोठरी थी। यहां पर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले वीर नायकों को काला पानी की सजा दी जाती थी, उन्हें तड़पा तड़पा कर मारा जाता था। इसलिए भारतीय इतिहास में इस जगह को काले शब्दों से लिखा गया है। इसप्रकार जापानी बंकरों का निर्माण द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किया गया था और इसे पूरे शहर में देखा जा सकता है। ये बंकर हमें उस समय ले जाते हैं जब नाकाबंदी होती थी। इसके साथ-साथ, पोर्ट ब्लेयर में घूमने के लिए कुछ अन्य स्थल भी हैं जैसे रॉस द्वीप या कॉर्बिन कोव बीच। पोर्ट ब्लेयर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल रॉस द्वीप पोर्ट ब्लेयर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व में स्थित हैं। रॉस द्वीप अंग्रेजों का प्रशासनिक मुख्यालय था लेकिन वर्तमान समय के दौरान यह एक निर्जन द्वीप है। रॉस द्वीप की सुंदरता और प्राकृतिक दृश्य किसी को भी मोहित कर सकते है। हालाकि वर्ष 1941 में आए भूकंप के बाद अंग्रेजों ने रॉस द्वीप को छोड़ दिया था। रॉस द्वीप में घने जंगल, एक चर्च, स्टोर, बेकरी, एक जल उपचार संयंत्र, टेनिस कोर्ट, अस्पताल, कब्रिस्तान, प्रिंटिंग प्रेस, सचिवालय आदि देखे जा सकते हैं। इसी तरह कॉर्बिन कोव बीच पोर्ट ब्लेयर के प्रमुख आकर्षण में से एक हैं और यह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। कॉर्बिन कोव बीच समुद्र तट के निकट स्थित है और यहाँ आपको स्थानीय स्नैक्स, पेय पदार्थ और नारियल पानी की भरमार मिलेगी। कॉर्बिन कोव बीच पर लोग पानी में उतरने से कतराते हैं क्योंकि यहाँ कचरा कूड़ा देखा जा सकता हैं। साथ ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के अन्य समुद्री तटों की तरह यहाँ वाटर स्पोर्ट्स की सुविधाएं इतनी अधिक अच्छी नही हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी कहते हैं कि विजय पुरम नाम अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के समृद्ध इतिहास और वीर लोगों का सम्मान करता है। यह औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होने और हमारी विरासत का जश्न मनाने की हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि पोर्ट ब्लेयर अंग्रेजों का दिया नाम था। पोर्ट ब्लेयर औपनिवेशिक नाम था। पोर्ट ब्लेयर में अंग्रेज काले पानी की सजा वाले कैदियों पर अत्याचार करते थे। इसका नया नाम श्री विजय पुरम स्वतंत्रता संग्राम की स्मृति में है। अंग्रेजों को भगाने का काम हम लोगों ने किया। महात्मा गांधी और भीमराव आंबेडकर ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी । अमित शाह का यह निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है। हम इस कदम का समर्थन करते हैं। (हिफी)