वसुधैव कुटुम्बकं का साक्षी बना महाकुंभ

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
यही है सनातन परम्परा जो विश्व भर में भारत को एक अलग विशिष्ट पहचान देती है। यूं तो भारत आदिकाल से पर्वो और उत्सवों का देश रहा है, जो भारत की श्रेष्ठता और समृद्धि को प्रकट करता है। पूरे वर्ष देश भर में कई पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं और इन्हीं त्योहारों में से एक है मकर संक्रांति का त्योहार, जो हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है।इस बार की मकर संक्रांति खास रही। इस त्योहार का विशेष महत्व होता है, क्योंकि सूरज के उत्तरायण होने पर इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन सुबह-सुबह स्नान का एक अलग महत्व है, यही कारण है कि देश भर की पवित्र नदियों में लोग स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान करने से सभी पाप कट जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति के दिन किसी भी नदी में लोग स्नान करते हैं, तो उसे गंगा स्नान का नाम दिया जाता है। मगर वर्तमान में कुंभ और गंगासागर में शाही स्नान चल रहा है और इन दोनों ही जगहों पर करोड़ों की संख्या में लोगों ने आस्था की डुबकी लगायी है। महाकुंभ और गंगासागर आस्था, संस्कृति और करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहे हैं। यही कारण है कि इन पवित्र स्थलों पर श्रद्धालुओं का भारी हुजूम उमड़ता है। आस्था का सैलाब किस तरह से उमड़ता है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महाकुंभ के पहले अमृत स्नान पर्व पर 14 जनवरी को 3.50 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई है। फेसबुक के कोफाउंडर स्टीव जाब्स की पत्नी पामेला समेत दस देशों के सैकड़ों विदेशी जिज्ञासु भी इस मौके पर प्रयागराज संगम के तट पर पहुंचे।
संगम में साधु-संत और अखाड़ों के साथ-साथ श्रद्धालुओं ने अमृत स्नान किया। गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का संगम, जिसे गंगासागर के नाम से जाना जाता है, यहां पर भी लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान किया। अगर बात महाकुंभ की करें तो यह सदियों से ही करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र रहा है। भारतीय समाज की जीवन पद्धति में वैदिक काल से ही कुंभ जैसे महापर्वो के आयोजन की विशेष परम्परा रही है। भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधने के लिए जिस प्रकार वैदिक जीवन पद्धति के महान प्रचारक आदि गुरु शंकाराचार्य ने भारत के चारों कोनों में चार धामों की स्थापना की, उसी प्रकार राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में देश के चार प्रमुख कुंभ महापर्व के आयोजन के स्थल है। वैदिक संस्कृति में जहां व्यक्तिगत साधना से जीवन पद्धति को परिष्कृत करने पर जोर दिया जाता था, वहीं दूसरी ओर तीर्थ स्थलों और महापर्वों को राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय चरित्र को परिष्कृत करने का माध्यम माना गया है। महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन मात्र नहीं है अपितु आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को फलीभूत करने वाला आस्था का पर्व है। यहां आकर मनुष्य एक ओर आत्मशुद्धि व आत्मकल्याण का भाव रखता है, वहीं दूसरी ओर सम्पूर्ण राष्ट्र मेरा परिवार है, यह भाव रखकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत करता है।
हजारों वर्षों से चली आ रही कुंभ परम्परा भारत की प्राचीन राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक धारा का परिचय कराती है। कुंभ मेले में सभी पंथ सम्प्रदायों के देश-विदेश के साधु सन्त आकर सामाजिक समस्याओं पर विचार-विमर्श करते हैं। यहां शैव, वैष्णव, शाक्त, सिख, जैन, बौद्ध सभी पंथ सम्प्रदाय के भारतीय सम्मिलित होते हैं। सभी मिलकर पूरी परम्परा में क्या-क्या परिवर्तन करना चाहिए, कौन सी परम्परा राष्ट्र और समाज के लिए हानिकारक है, भारतीय समाज को क्या संदेश देना है, इन सभी विषयों पर गहन विचार-विमर्श कुंभ में किया जाता है। कुंभ में स्नान करने वाला कौन जाति का, कहां का निवासी है इसका विचार किये बिना सम्पूर्ण समाज के लोग यहां आते हैं।
आपको बता दें कि महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है, बल्कि यह आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का संगम है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक पवित्र एहसास है, जिसका इंतजार सभी श्रद्धालुओं को बेसब्री से रहता है। इस साल का महाकुंभ का मेला कई मायनों में बेहद खास है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लगा है। सरल शब्दों में समझें तो 12 साल बाद लगातार 12 वर्षों तक लगने के बाद पूर्ण महाकुंभ लगता है, जो 144 साल बाद आता है। महाकुंभ का आयोजन इस बार प्रयागराज में हो रहा है। कुछ ग्रंथों में उल्लेख है कि सतयुग से ही इस मेले का आयोजन किया जा रहा है। कुछ ग्रंथों में बताया गया है कि कुंभ मेला का आयोजन 850 साल से भी ज्यादा पुराना है। आदि शंकराचार्य द्वारा महाकुंभ की शुरुआत की गई थी। कुछ कथाओं में बताया गया है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के बाद से ही किया जा रहा है जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि गुप्त काल के दौरान से ही इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन सम्राट हर्षवर्धन से इसके प्रमाण देखने को मिलते हैं। इसी के बाद शंकराचार्य और उनके शिष्यों द्वारा संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर शाही स्नान की व्यवस्था की गई थी। अगर देखा जाए तो यह राष्ट्रीय एकता का अनुपम संगम है। यही वास्तव में भारत की सनातनी शक्ति है, जिसमें ऊंच-नीच, पंथ-सम्प्रदाय उत्तर-दक्षिण आदि के भेद का कोई स्थान नहीं है। वसुधैव कुटुम्बकम् के साक्षात् दर्शन का अद्भुत आयोजन है कुंभ महापर्व। भारत के चार कुंभ स्थल धर्म व्यवस्था द्वारा स्थापित चार सार्वजनिक मंच है, जो सम्पूर्ण समाज को एक सूत्र में बांधते हैं। व्यक्तिगत निमंत्रण के बिना लाखों लोगों का आस्था के इस पर्व में एकत्रित होना निश्चित ही अद्भुत परम्परा है। अनुमान है कि इस बार 40 से 45 करोड़ लोग डेढ़ माह तक चलने वाले महाकुंभ में भ में जुटेंगे। महाकुंभ के सुचारू संचालन के लिये चप्पे- चप्पे पर सुरक्षा व्यवस्था की गयी है। सुरक्षा बलों का जमावड़ा लगा हुआ है, वज्रवाहन, ड्रोन, बम निरोधक दस्तों के साथ ही एनएसजी के सदस्य मौजूद हैं। सुरक्षा के लिये एंटी ड्रोन तकनीक का भी उपयोग हो रहा। मगर तमाम सुरक्षा व्यवस्था और आधुनिक तकनीकी के इस्तेमाल का लाभ तभी है, जब किसी गंभीर समस्या के सामने आने पर उसका ठीक समय पर हल निकले। आम श्रद्धालु वहां संगम में डुबकी लगाने आते हैं और उनके साथ मेले को देखने से लेकर धर्म और आस्था से जुड़ी तमाम तरह की उम्मीदें होती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि करोड़ों लोगों के जमावड़े से उत्पन स्थिति का प्रबंधन और कामयाबी से उसे संभाल ले जाना एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी है, मगर इस वर्ष कुंभ में हर मोर्चे पर जैसे इंतजाम किए गए हैं, उसमें उम्मीद की जा सकती है कि आस्था की डुबकी श्रद्धालुओं के लिए एक सुखद अनुभव साबित होगी।
प्रयागराज के मौजूदा महाकुंभ में सरकारी बंदोबस्त ने पिछले सभी रिकार्ड तोड़ कर ने मानदंड स्थापित करने की कोशिश की है यह योगी बाबा की मेहनत कुशल नेतृत्व और पीएम मोदी के निर्देशन का साझा परिणाम है। (हिफी)