सम-सामयिक

साल का पहला कदम आकाश की ओर

 

ध्यान रहे कि अंतरिक्ष एक ऐसी जगह है जहां पर हवा नहीं है जबकि आकाश मंे लगभग 100 किलोमीटर ऊपर तक हवा है। इसके बाद नभ या गगन समाप्त माना जाता है। इस प्रकार अंतरिक्ष एक ऐसी जगह है जहां हम एक दूसरे की आवाज नहीं सुन सकते। इसके लिए माध्यम का सहारा लेना पड़ता है। अंतरिक्ष मंे सभी ग्रह, नक्षत्र (तारा), उल्का पिंड, गोलेक्सी (आकाश गंगा) मैगनेटिक फील्ड और ब्लैक होल हैं जिनके बारे मंे जानकारी जुटाई जा रही है।

नया वर्ष शुरू हो गया है। हम सभी एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं कि सफलता के शिखर तक पहुंचें। हमारे देश ने भी नये साल मंे आकाश की तरफ कदम बढ़ाए हैं। बीते साल भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमको सफलता मिली थी। हमारा चंद्रयान निर्धारित अवधि मंे ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरा। वहां पर अपने लक्ष्य को पूरा किया। उसके बाद वैज्ञानिकों ने उसे सुप्तावस्था मंे कर दिया। इसके बाद सूर्य की गतिविधियों की जानकारी के लिए आदित्य-एल-1 को लांच किया गया थ। अब एक्स पो सैट मिशन में इसरो ने उपग्रह को लांच किया है जो आकाश में ब्लैक होल के बारे में महत्वपूर्ण आंकड़े देगा। इस प्रकार भारत खगोल के क्षेत्र मंे अनुसंधान करने वाला दूसरा देश बन जाएगा। साल 2023 के अंतिम दिन मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की उपलब्धियों को गिनाया था। देश ने अंतरिक्ष के क्षेत्र मंे जो कदम बढ़ाए हैं, उनका भी उल्लेख किया था। चंद्रयान-3 ने अंतरिक्ष अभियान मंे भारत के गौरव को विशेष रूप से बढ़ाया था। चन्द्रयान के दक्षिणी ध्रुव पर लैण्ड होने के बाद रोजर प्रज्ञान जानकारियां जुटाने के उद्देश्य से विक्रम लैण्डर से 15 मीटर दूर तक चला गया था। बीते साल 23 अगस्त को शाम 6 बजकर चार मिनट पर विक्रम लैण्डर सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतर गया था। अब इस साल सूर्य और ब्लैक होल के बारे मंे नयी-नयी जानकारियां मिल सकती हैं।

ध्यान रहे कि अंतरिक्ष एक ऐसी जगह है जहां पर हवा नहीं है जबकि आकाश मंे लगभग 100 किलोमीटर ऊपर तक हवा है। इसके बाद नभ या गगन समाप्त माना जाता है। इस प्रकार अंतरिक्ष एक ऐसी जगह है जहां हम एक दूसरे की आवाज नहीं सुन सकते। इसके लिए माध्यम का सहारा लेना पड़ता है। अंतरिक्ष मंे सभी ग्रह, नक्षत्र (तारा), उल्का पिंड, गोलेक्सी (आकाश गंगा) मैगनेटिक फील्ड और ब्लैक होल हैं जिनके बारे मंे जानकारी जुटाई जा रही है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक्स-रे पोलरिमीटर उपग्रह के प्रक्षेपण से नववर्ष का स्वागत किया है। एक्स-रे पोलरिमीटर उपग्रह और 10 अन्य उपग्रह लेकर जा रहे पीएसएलवी-सी58 रॉकेट का श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण किया गया। यह उपग्रह ब्लैक होल जैसी खगोलीय रचनाओं के रहस्यों से पर्दा उठाएगा। यह सबसे चमकीले तारों का अध्ययन करेगा। इस मिशन का जीवनकाल करीब पांच वर्ष का है। इसे पीएसएलवी से लॉन्च किया गया है। इस साल चंद्रमा पर सफलता हासिल करने के बाद, भारत 2024 की शुरुआत ब्रह्मांड और इसके सबसे स्थायी रहस्यों में से एक ब्लैक होल के बारे में और अधिक समझने के लिए महत्वाकांक्षी अभियान शुरू किया है। भारत एक एडवांस्ड एस्ट्रोनॉमी ऑब्जर्वेटरी (उन्नत खगोल विज्ञान वेधशाला) लॉन्च करने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है। यह विशेष रूप से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन स्टार्स के अध्ययन के लिए तैयार किया गया है।

ब्रह्मांड के रहस्यों का पता लगाने के लिए एक साल से भी कम समय में यह भारत का तीसरा मिशन है। पहला ऐतिहासिक चंद्रयान-3 मिशन था, जिसे 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया था, और इसके बाद 2 सितंबर, 2023 को आदित्य-एल1 लॉन्च किया गया था। एक्स पो सैट मिशन में पीएसएलवी अपनी 60वीं उड़ान भरेगा। 469 किलोग्राम के एक्स पो सैट को ले जाने के अलावा, 44 मीटर लंबा, 260 टन के रॉकेट ने 10 एक्सपेरिमेंट्स के साथ उड़ान भरी है। इसरो अनुसार, यह खगोलीय स्रोतों से एक्स-रे उत्सर्जन का अंतरिक्ष आधारित ध्रुवीकरण माप में अध्ययन करने के लिए पहला समर्पित वैज्ञानिक उपग्रह है। एक्स-रे ध्रुवीकरण का अंतरिक्ष आधारित अध्ययन अंतरराष्ट्रीय रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है और इस संदर्भ में एक्सपोसैट मिशन अहम भूमिका निभाएगा।

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के अलावा अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी दिसंबर 2021 में सुपरनोवा विस्फोट के अवशेषों, ब्लैक होल से निकलने वाले कणों की धाराओं और अन्य खगोलीय घटनाओं का अध्ययन किया था। इसरो ने कहा कि एक्स-रे ध्रुवीकरण का अंतरिक्ष आधारित अध्ययन अंतरराष्ट्रीय रूप से महत्वपूर्ण हो रहा है और इस संदर्भ में एक्सपोसैट मिशन एक अहम भूमिका निभाएगा।

‘ब्लैक होल क्या होता है यह जानना भी दिलचस्प होगा। ब्लैक होल अंतरिक्ष में पाई जाने वाली ऐसी जगह होती है, जहां गुरुत्वाकर्षण बल बहुत अधिक होता, जिसके प्रभाव क्षेत्र में आने पर कोई भी वस्तु यहां तक कि प्रकाश भी उससे बच नहीं सकता है। वे उसके अंदर समा जाएंगी। माना जाता है कि ‘जब कोई विशाल सितारा अपने द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षण के कारण ढह जाता है, यानि उसका सारा द्रव्यमान छोटे से क्षेत्र में सिमट कर रह जाता है, तो वह ब्लैक होल बन जाता है।’ ‘ब्लैक होल का पलायन वेग बहुत ही अधिक होता है, इसलिए प्रकाश भी उसके अंदर जाने के बाद बाहर नहीं निकल सकता है। जाहिर है कि ‘ब्लैक होल एक ऐसी जगह होती है, जिसमें कोई वस्तु अंदर जाने के बाद बाहर नहीं आ सकती है।’ ‘प्रकाश की किरण किसी वस्तु से टकराकर हमारी आंखों पर पड़ती है, तभी हमें वह वस्तु दिखाई देती है लेकिन जब ऐसा नहीं होता है तो हमें वहां सिर्फ काला दिखाई देगा, जिसे हम अंधेरा भी कह सकते हैं। ऐसा ही ब्लैक होल के साथ होता है। प्रकाश की किरण जब ब्लैक होल तक पहुंचती है तो उसका गुरुत्वाकर्षण उसे अंदर खींच लेता है और वापस नहीं आने देता है, इसी कारण वहां हमें काला दिखाई देता है।’ ब्लैक होल की बाउंड्री, यह एक ऐसा स्थान होता है, जहां भौतिकी के नियम काम नहीं करते हैं। यदि आप एक ब्लैक होल के अंदर गिरने लगे हैं तो आपके बच निकलने का कोई चांस ही नहीं है, क्योंकि यहां से लाइट भी बचकर नहीं निकल सकती हैं तो इंसान तो दूर की बात है।

ब्लैक होल आकार और द्रव्यमान में भिन्न हो सकते हैं। ‘उसका आकार एक फुटबॉल के बराबर भी हो सकता है और सूर्य से अरबों खरबों गुना ज्यादा भी हो सकता है।’ वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने बताया था कि, ‘ब्लैक हेल एक प्रकार का विकिरण उत्सर्जित कर सकते हैं, जिसे उनके नाम से जाना जाता है। इससे पता चलता है कि ब्लैक होल धीरे-धीरे भारहीन खो सकते हैं और फिर समाप्त हो जाते हैं।’

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय कर्नाटक राज्य के बंगलौर में है। संस्थान का मुख्य कार्यों में भारत के लिये अंतरिक्ष सम्बधी तकनीक उपलब्ध करवाना व उपग्रहों, प्रमोचक यानों, साउन्डिंग राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास करना शामिल है। इसरो के वर्तमान निदेशक डॉ एस सोमनाथ हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

 

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