Theory of karma (कर्म का सिद्धांत) 6
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई कैसी से दुनिया बनाई......

बंदर को देखा है बंदर को? पकड़ने के लिए वो क्या करते हंै? वो क्या करते हैं? एक मटका लेते हं,ै मटका का मुह इतना छोटा होता है बंदर ऐसे प्रयास कर के मुश्किल से हाथ निकाल पाता है और उस मटका में चना गुण भर देता है। अब बंदर हाथ डालता है और मुठठी भर लेता है मुहं मे पानी आ गया आनंद आ गया वह दुनिया मिल गयी। ब्रहमाण्ड मिल गया अब वो मुठी को बाहर खीचता है अब मुठठी बंद है तो बाहर कैसी आएगी। छटपटाता है चिल्लाता है दुनिया को कहता है कि बचाओं मैं फस गया, इस मिट्टी के अंदर। अरे अज्ञानी तू इस हाथ को खोल देगा तो मुक्त हो जाएगा।
लेकिन इस संसार में तुम जो भी आकर पकड़ लेते हो कस के छोड़ते नहीं। गुरु कहता है छोड़। तुम कहते हो ये नहीं छोडूगा। गुरु कहता है लड़ाई छोड-़ ये कहता है- नहीं छोडू़गा। गुरु कहता है- लालच छोड़- तुम कहते हो नहीं छोड़ूगा। गुरु कहता है- मैं छोड़- ये कहता है नहीं छोड़ूगां। ये छटपटाता है चिल्लाता है और शिकारी आकर उसको ले जाता है। नहीं दुख कष्ट उसके जीवन में संक्षिप्त कर्मों के रूप में उभरते जाते हैं।
एक बारी एक मुल्ला नसीरूददीन थे वो मंडी में गए वहां लाल मिर्चों के ढेर लगे हुए थे और भी चीजे थी मसाले की मंडी थी। लाल मिर्च के ढेर देखने में लाल मिर्च बड़ी स्वादिष्ट होती है। लाल- लाल बड़ी अच्छी फाइन ब्रान्ड दुनिया आए लाल मिर्च खरीदे और चली जाए। उससे पहले मुल्ला ने लाल मिर्च पहले कभी देखी नहीं थी। उससे पहले कभी लाल मिर्च देखी नहीं थी। उसने सोचा बड़ी स्वाद की चीज होगी। सारी दुनिया खरीद खरीद कर ले जा रही है, खुद भी खाती होगी बच्चों को भी खिलाती होगी। मुझे भी भूख लगी है चलो पाओ भर मैं भी ले लूं। बोलता है-पाव भर मिर्च दे दो। जगह ढूडी एक पेड़ दिखायी दिया। बड़ा सा पेड़ खाली जगह पर मुल्ला ने अपना दुशाला निकाला। खाली जगह पर बड़ंेे मजे से बैठ गया। खोला लिफाफा बोला अब मैं खाऊगां। पहली मिर्च ली मुहं में डाली खाते के साथ दी चबाया- और आग और पानी कान से और आंख से, निकलने लगा लेकिन मुहं से दम निकल रहा है। चबाए जा रहा है, रोये जा रहा है, खा गया अंदर निगल गया। दूसरी उठाई और खाने लगा, रोतेे जा रहा है। आसपास के लोग देख रहे हैं बोले मुल्ला तुम्हें मालूम नहीं ये मिर्च यूं नहीं खाई जाती है। मुल्ला बोला भइया जब पहली मिर्च खाई थी तभी मालूम चल गया था कि ऐसे नहीं खाते। लोगों ने पूछा-जब तुम्हें मलूम है क्यों खाये जा रहे हो क्या? पाव भर मिर्च के पैसे नहीं दिये क्या।….
अम्मा आती है, लड़ती है, बोलती ह,ै मेरे बेटे मुझे तंग करते हैं। मैं बोला अम्मा चल थोड़ी देर के लिए ऋषिकेश आ जा, थोड़ी देर शिविर में आ जा। बोली- नहीं पोतिया दा कौन ख्याल- वो लाल मिर्च भी खा रही है रोना भी दे जोर-जोर चिल्लाना है मेरी बहु बहुत तंग करती है छोड़ उस घर को। तेरा अपना घर है वहां बैठ सत्संग में क्षेड़ दे बहु बेटा को बोली नहीं मेरी बहु मेरे बेटे का ख्याल नहीं रखती है। तो क्या तेरा बेटा कोई छोटा बच्चा है जिसका डाइपर बदलना है। हार घंटे बाद ख्याल नहीं रखती कोन सा ख्याल रखने की बात कर रही। हो वो मुल्ला नसीरूददीन बने हर काई लाल मिर्च खाकर रोता हुआ बाबा के पास आता है बोलता है मिर्च छोड़ कहता है इसका तो खर्चा किया है बच्चा पैदा किया उसको पढ़ाया उसको बड़ा किया तो अच्छे से खाऊतो लाल मिर्च को अभी कहते हैं और रोते-रोते शरीर छोड़ दो- रोते-रोते शरीर छोड़ देता है। वहीं क्रियामान वहीं संक्षिप्त कर्म वहीं प्रारब्ध भोग। यही खेल वहीं कालचक्र है इसी में मनुष्य फसंता है मरता है मारता है तो कही तुम इस चक्कर में तो नहीं फसे हो तो कहीं तुम मुल्ला नसीरूददीन तो नहीं बने छोड़ना सीखों इस संसार में आए हो तो पकड़ ढीली करो जैसे-जैसे तुम पकड़ ढीली करोगे तो जैसे गुब्बारा होता है जिससे गैस भरी, उसको चेष्ठा नहीं करनी पड़ती ऊपर उठने की वो अपनी पकड़क ढीली करता है उसके साथ बीस रस्सियां और एक रस्सी के साथ इतना इतना बड़ा पत्थर बधा है और जैसे जैसे उसको उठाना है चालक एक रस्सी खोल देता है। गुब्बारा और ऊपर उठ गया।
दूसरी खोली और ऊपर उठ गया। तो वो क्या करता है पकड़ छोड़ता है यदि तुम्हें इस संसार में अध्यात्म में ऊपर उठना है तो चीज तुम मैं करके पकड़े हो उस पकड़ को ढीली करो जैसे-जैसे तुम ढीली करोगे। तो तुम देखोंगे तुम्हारी उन्नति होती जा रही है तुम ऊंचा उठते जा रहे हो तो पकड़ ढीली करोंगे। एक दक्षिण भारत में एक परिवार से बार-बार आता है मेरे पास उनके पिताजी के पिताजी ने एक साई बाबा का मंदिर बनवाया था और उसके साथ ही उस समय एक दो हजार रुपये में सब आ जाता होगा। साई बाबा के भक्त दादा जी मंदिर बना गए। अब वह तो चले गए, बेटों का ट्रस्ट बना दिया। ट्रस्ट में तो चलता हे अब झगड़ा शुरू हो गया कि मंदिर का हिस्सा कौन लेगा। मकानों की लड़ाई मैंने होते देखी थी मंदिर की लड़ाई पहली बार होते देखी और ऐसी लड़ाईयंा कई जन्म चलती है। चालीस बरस से वो तीन-चार बार उसी मंदिर में को बीच में पकड़ के लाल मिर्च खाए जा रहे थे। उनके बेटे पैदा हो गए वे बेटे भी 20.20.25.25.30.30 बरस के हो गए। उन्होंने भी अपने का इस लड़ाई में डाल लिया। एक नौजवान है वो बचपन से लेके वो इसी मंदिर की टीस लेकर और मेरे पास आता है। बाबा जी कुछ करिये न कृपा। मैं बोला कृपा छोड़ मैं उस मंदिर में नहीं जाऊगां। मंदिर का मतलब होता है परमात्मा का द्वार परमात्मा का घर पूरे संसार के लिए होता हे। तुम मंदिर बनाके उसी के लिए लड़े जा रहे, हो तो तुम कहा से धार्मिक हो गए। जब तुम धार्मिक हो गए जब कोई नहीं तुम्हारा तो मंदिर का क्या करोगे। तीस बरस से वो बच्चा पैदा हुआ है। और गोद संभाली है तो वहीं मंदिर मंदिर की लड़ाई वो हिस्स इतना मुझे मिल जाए इतना चाचा ताय को मिल जाए, उसी लड़ाई से उसने अपने पूरे जीवन को डाल दिया। वो लाल मिर्च खाए जा रहा है और शायद अगर वो उसे छोड़ दे तो कितनी बड़ी जायदाद बना ले। इसलिए जो चीज तुमने अर्जित नहीं की जो तुमने नहीं बनाई। उस धन की ओर दृष्टि क्यों और इस संसार में जो इ…………चल रहे हैं। वे सब उसी बात का है कि दादा बना गया था और पोता लड़ रहा है। जिसने जो बनाया था वो उसके साथ। जो तुम बना रहे हो वो तुम्हारे साथ। कर्म करो, कर्म करो। तो इस चीज का थोड़ा analyis करना है।
आज तुम कहीं इस चक्कर में तो नहीं फसे हो। कहीं तुम रोज लाल मिर्च तो नहीं खा रहे हो? तुम कही अपनी संतान को तो नहीं खिला रहे हो? ये तुम्हें बताना है। और क्या तुम्हारे अंदर मै है? क्या वो राक्षस के रूप में जीवीत है। क्या तुम तपस्या कर रहे हो? क्या निष्काम विवाह कर रहे हो क्या uncoditional love प्रेम कर रहे हो? किसी ने तुम्हें कुछ किया। किसी ने तुम्हें प्रेम किया किसी ने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया और तब तुम्हारे मन में प्रेम उमड़े ये भी भक्ति है ये जो घटनाएं मैंने बताई? तिलक उसने लगाया गुरु ने कहा ये लड़ेगे इसलिए लड़ेगे क्योंकि वो साधक नहीं है। वो गुरु के पास ये कहने के लिए आया था महात्मा जी के पास मुझे साधना बताओ मैं तप कैसे करू साधना कैसे करू। वो एक टोटका लेने आया था। टोटके वाल फिर फंस जाते हैं बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं में निकलता है। इतने हजार की ताबीज लो और तुरन्त काम दिखाएगा। हो भी सकता है। काम तो दिखा दिया है लेकिन तुम्हारे जो वसली आज होती थी वो आज नल होके उसका निपटा दिया उसने ये आज जानों। लेकिन जब कल उसको भुगतान करोगे तो व्याज देना होगा। जो होना है वो आज हो जाए उसको वही समाप्त करना है। तुम्हें तो ये चेष्ठा करनी है जितना बड़ा संक्षिपत कर्म है मेरे तप की अग्नि से जल के कितना कोमल हो जाएगा। संतों का समवृध संतो का मतलब ये कपड़े से नही संतों की मैं बात नहीं कर रहा हूं संत का मतलब जो साधक हें जो निष्काम सेवा करता है। जो मन से संत है। उसके संब्रद्व तुम्हारी साधना निष्काम हो जाए ये संत्सग तुम्हारे संक्षिपत कर्मों को कमजोर करता है।
तुम्हारे कर्मों को जलाता है। इस सब की चेष्ठा करनी है प्रयास करने है। बाकी मैं तुम्हें तार दूगा लेकिन तुम्हें इसका चिंतन भी करना है। The law of karma The theory of karma हूं। दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई कैसी से दुनिया बनाई……
कैसी दुनिया बनाई कोई खुदा कहता है कोई रोता है, कोई खाता है कोई भूखा है, कोई बड़े-बड़े महल में रहता है कोई सड़क पे रहता है किसी के हजारों मित्र हैं किसी का हर कोई शत्रु। कहा से ये सब हो गया क्या ये परमात्मा का कसूर है? ये शिव का कसूर है? या कहीं मेरी समझने में गलती हो गई। बड़ी मजे की बात है जो जो मैं कार्य करता हूं whatever action is my every action creates a sanskar मेरा प्रत्येक कर्म एक संस्कार को पैदा करता हैं। और मेरे जितने भी संस्कार है वह मुझे वशीभूत करते है कर्म करने के लिए। मेरा कर्म संस्कार को पैदा करता है और जो संस्कार मैंने पैदा कर लिए वो संस्कार मेरे कर्मों को impliment करते हैं। तो सवाल ये आता है कि मुर्गी पहले पैदा हुई या अंड़ा। कर्म पहले पैदा हुआ था या संस्कार? दिस इज दा विशेष करमा। जब ये आत्मा आई और एक संस्कार पैदा किया और वही फंस गई। संस्कार पैदा हुआ, तो उस संस्कार में कर्म पैदा करना ही है। संस्कार is impressions in your mind जो impression आप बार बार create करते है जो भी देखते है वो, एक रिकाडॅ है। movie recorder, record करता है। और वही संस्कार पैदा कर देता है, वह संस्कार जो पैदा होते है। जो तुम्हारे भीतर संक्षिप्त कर्म है जो कर्म लाखों करोड़ों कर्म हमारे अन्तरमन में हमारी चित्त में सभाले रखे है, वह गोदाम है। बहुत बड़ा गोदाम। और जैसे ही मैंने संस्कार पैदा किया वो सोए हुए कर्म को जो न जाने कितने बरस पहले कही कोने में बैठा रहता है। कर उसको वो जगा देता है और वो फलीभूत हो जाता है। अभी आज ही शिवा जी बता रहे थे और इस चीज को समझना हे तुम्हें ये देखों इसके कोई संस्कार हो रहा है। यह गड़बड़ वाला impression जो है यह संस्कार है। ये सिंगापुर हवाई अडडा पे हमारी शोभा जी ने देखा की एक हटटी कटटी बिल्कुल ठीक ठाक औरत, दिखने में हष्ट पुष्ट लगती है ओर व्हीलचैयर पर बैठी है जा रही है। और तुम्हें क्या जरूरत है देखना है कि नहीं देखना है। लेकिन उस को देख रही है मन में सोच रही है हष्ट पुष्ट है, इसको क्या बीमारी हो गई है। काहे को बैठी है विलचैयर पर, इतना लंबा रास्ता है इसलिए बैठे है क्या? जितना स्ट्रोगंली आप किसी चीज को परसीव करते है, अनवान्टेड चीज को, वो संस्कार पैदा करता है। और ज्यादातर हमारा म न हमारे आजू बाजू जो भी वे सिर पैर की जो भी चीज हैं, जिसका कोई मतलब नहीं हमारे साथ, उसी को बहुत गहरा अध्ययन कर डाला है।
देखा करता है तो analysis करती है। वहीं उस बेचारी के पैर में चोट भी और उसी शिंगापुर हवाई अडडे पे हमारी शोभा जी ने देखा संस्कार इन्होंने लिया तो भीतर चिन्तन में चित्त मेें जो कही कई जन्मों का ऐसा प्रारब्त सोया बैठा होगा। वो प्रारब्त बीज के रूप में हमारे अंदर इक्ठे रहते हैं और जैसे ही हम कोई गहरा संस्कार पैदा कर लेते है तो पानी और खाद का काम करता है। और वो पानी और खाद अंकुरित कर देता है उस बीज को। और वहीं प्रारब्त भोग बन जाता है। और हम उसकेा भोग लेते है। तो इसलिए मैं बार बार में बोलता हूं संस्कार नहीं पैदा करो। और इतना गहरा तो पैदा ही मत करों कि तो तुम्हारे भीतर संचित कर्म के रूप में पैदा हो तुम क्षिप्त उसको इकटठा कर के रख लो। ऐसा तो पैदा ही नहीं करना है। यदि अध्यात्म में आगे बड़ना है यदि चाहते हो ही तुम्हारी जीवन में कोई घटना न घटे कोई कष्ट न हो तो अछूते रहना। कल मैंने क्या बताया था की जब भी आप कोई शुभ कार्य करते हो तो शुभ कार्य यानी अमृत मंथन। अमृत मंथन करने की सोची तुमने। तो पहले क्या निकलेगा। तमोगुणी हलाहल विष। फिर राजोगुणी धन प्रलोभन।
फिर निकलेगा सतोगुणी अमृत। तो जब भी तुम कोई कार्य शुरू करते हो तो बहुत से लोग विरोध करने आते हैं तो कर्म जो संचित प्रारब्त के रूप में है वो उभरते हैं तमोगुण। जब भी कोई कार्य करते हो तो पहले विरोध, पहले परिहास लोग हंसते है हे पागल है क्या इसके पास में कुछ करने को यही है तमोगुण। तू बेकार का आदमी तेरे को किसने कहा है। और यदि उस विष को यदि तुम उससे विरोध कनरा शुरू हो गए। उस विष के साथ तुम लड़ गए तो तुम जल जाओगे नहीं अंत हो जाओगे जो कार्य तुमने शुरू किया जो कार्य तुमने छेड़ा है वो हलाहल विष उस मनुष्य का अंत कर देगा समाप्त हो जाएगा। वही शुरूआत में ही हो पाएगा। वही विरोध विरोधी से लड़ाई शुरू, विरोध से लड़ाई शुरू ओर उसने जो शब्द कहा, उसे मन में रखा और संस्कार पैदा किए तो गड़बड़ शुरू। एक हमारे पास हमारे एक साधक है। पती पत्नी दोनों बहुत अच्छे साधक है। उनके बेटे तीन बेटा है और तीनों बहुत बढ़िया जगह पर हैं।
दो बेटा बिलकुल सीटेलेड थे तीसरा बेचारा जब गया तो अब जब पहुंचा को कुछ भी नहीं था। जब प्रयास कर रहा था तो अमृत मंथन शुरू हो गया। जहर निकलेगा, तो भाई गाली देता था मुफ्त में आ गया मरे पास। लेकिन उसे क्या करना चाहिये।
एक अकलमंद मनुष्य को उस जहर को छेड़ना नहीं चाहिये उसको छूना नहीं चाहिये लेकिन वो आज वो कुछ बनने के बाद भी उस जहर को अपने अंदर समेटे हुए हैं।
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