विश्वसनीय सोच की अर्थव्यवस्था
भारत की अर्थव्यवस्था निरंतर विकास की ओर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि भारत उनके नेतृत्व में तीसरी अर्थव्यवस्था बनेगा। अर्थव्यवस्था के बारे में उनकी विश्वसनीय सोच है। अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइ0एम0एफ0) ने भी कहा है कि भारत विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। भारत का वित्तीय क्षेत्र लचीला है। वित्तीय दवाब के दौरान भी भारत की अर्थव्यवस्था इससे अछूती रही है। भारत का बजट घाटा कम हुआ है। आई.एम.एफ. का कहना है कि भारत का सेवा निर्यात एक दशक में शीर्ष पर पहंुच चुका है। वर्ष 2022-23 में जीडीपी वृद्धि दर 7.2 फीसद पहंुच गयी है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर 7.8 फीसद बनी रही।
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में कुशल वित्त प्रबंधन का प्रमुख योगदान है। आज जबकि विश्व की अर्थव्यवस्था पर दवाब है। विदेशी कम्पनियां कर्मचारियों को नौकरी से बाहर कर रही है ताकि उन्हें दिये जाने वाले भारी भरकम वेतन से आर्थिक दवाब कम हो। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) के विकास के साथ-साथ कर्मचारियों की सेवाओं पर भी खतरा मंडरा रहा है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि काफी संख्या में स्किल्ड वर्कर्स विदेशों में कार्य कर रहे हैं। भारत जनसंख्या के मामले में विश्व में प्रथम नंबर पर है। भविष्य में भी बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार की जरूरत होगी। ये युवा भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान भी कर सकेंगे। यदि उनके हाथों में काम होगा। अन्यथा देश की जवानी का इस्तेमाल नहीं हो पायेगा।
अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के भ्रमजाल से अलग सोचना होगा। अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति, अवस्फीति, मंदी का होना स्वाभाविक है। अर्थव्यवस्था के विकास में कई कारक बाधक होते हैं। डालर की तुलना में रुपये का मूल्य गिरता है तो इसकी अन्तरराष्ट्रीय कीमत गिरती है। डालर विदेशी मुद्रा का बड़ा स्रोत है। रूपये में मजबूती होना एक अच्छा संकेत है।
भारत की अर्थव्यवस्था में जिस गति से विकास हो रहा है- उसकी अमेरिका ने भी प्रशंसा की है। भारत की विकास दर वित्तीय वर्ष 2023 में 6.5 फीसद से बढ़कर 7.7 फीसद हो गयी है। इससे निजी खपत व पूंजी निर्माण व रोजगार सृजन में मदद मिलेगी। रूपये 2000 के नोट जमा होने के बाद अर्थव्यवस्था और सुदृढ़ हुयी।
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। इसलिए कृषि की पैदावार पर अधिक जोर दिया गया है। भारत में 67 फीसद जनसंख्या किसी न किसी प्रकार से कृषि पर आश्रित है। भारत की अर्थव्यवस्था में जिस तीव्रता से विकास हुआ है। उससे भारतीय निवेशकों में विश्वास बढ़ेगा। यहां निवेश की संभावनायें बलवती होंगी। सकल घरेलू उत्पाद के मामले में जहां भारत 11वें क्रम में था। अब पांचवी बढ़ी अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है। विदेशी मुद्रा भण्डार 20 माह के उच्चस्तर पर पहंुचा है। देश की अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास हो, इसके लिए कृषि विकास पर अधिक जोर देना होगा। औद्योगिक व रियल एस्टेट के विकास के कारण कृषि क्षेत्रफल सिकुड़ गया है। कृषि अधिकतर मानसून पर आश्रित होती है। कृषि को सिंचाई के लिए भरपूूर पानी चाहिए। इसके लिए जलस्रोतों व ट्यूबवैल्स का रिचार्ज रहना जरूरी है। उर्वरक, बीज, विद्युत, कृषि श्रमिक, विपणन की सुविधायें उन्नत कर कृषि क्षेत्र को खुशहाल बनाया जा सकता है। सरकार ने किसानों को केसीसी, बीमा, किसान सम्मान निधि व फसलों के क्रय की सुविधायें दी हैं जिनसे कृषकों को लाभ मिला है।
विदेशी मुद्रा भण्डार की वृद्धि हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है। कृषि सकल क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 80 फीसद कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त होता है। इसलिए अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि क्षेत्र को सर्वोपरि माना गया है। सेवा क्षेत्र में वृद्धि से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को गति मिली है।
सूचना प्रौद्योगिकी व तकनीकी क्षेत्र में विकास की संभावनायें बढ़ी हैं। विश्व की कम्पनियां यहां की संभावनायें देखकर अपने कार्यालय यहां खोलने जा रही हैं। श्रम शक्ति का यहां की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। बड़े देशों की तुलना में यहां की तकनीकी क्षमता उच्च स्तर की है। जनसंख्या में वृद्धि व गरीबी अर्थव्यवस्था के मार्ग में बाधक है। आय की असमानता के कारण आय कुछेक हाथों में सिमटकर रह गयी है। इसका पूर्ण लाभ आम जनता को नहीं मिल पा रहा है। (हिफी)
(बृजमोहन पन्त-हिफी फीचर)