स्मृति विशेष

अनुभवों से साहित्य रचने वाले राहुल सांकृत्यायन

औपचारिक शिक्षा के बिना अपने विस्तृत अनुभवों से जो साहित्य रचा जाता है, वह निश्चित रूप से बेजोड़ होता है। गान विद दविंड की लेखिका के पैर में फैक्चर हो गया था और उन्हंे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस दौरान उन्हंे जो अनुभव हुए, उनको ही एक पुस्तक का रूप दे दिया और कालजयी रचना बन गयी। इस तरह के कई उदाहरण है। भारतीय साहित्य में राहुल सांकृत्यायन एक ऐसे ही साहित्यकार हुए जो निरंतर भ्रमण करते रहे। उनकी औपचारिक शिक्षा प्रारम्भिक स्तर तक रही लेकिन भ्रमण ने शब्दों और भावनाओं का अकूत भंडार दे दिया। वे कहा करते थे कि रूढ़ियों को लोग इसलिए मानते हैं क्योंकि उनके सामने रूढ़ियों को तोड़ने वालों के उदाहरण कम होते हैं। इसी प्रकार प्रेम के बारे में वे कहते थे कि बहुतों ने पवित्र, निराकार, अभौतिक, प्लैटोनिक प्रेम की बड़ी-बड़ी महिमा गढ़ी है और समझाने की कोशिश की है कि स्त्री-पुरुष का प्रेम सात्विक तल पर ही सीमित रह सकता है लेकिन यह व्याख्या आत्म सम्मोहन और प्रवंचना से अधिक महत्व नहीं रखती। यदि कोई यह कहे कि ऋण और धन विद्युत तरंग मिलकर प्रज्ज्वलित नहीं होंगे, तो यह मानने की बात नहीं है। इस तरह की क्रांतिकारी विचारधारा के साहित्यकार थे राहुल सांकृत्यायन। वोल्गा से गंगा में उनकी कहानियां इसी प्रकार के संदेश देती हैं।
उनका बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था लेकिन घुमक्कड़ी स्वभाव के चलते उन्हांेने अपना नाम रखा राहुल। यह नाम उन्हांेने भगवान गौतम बुद्ध के बेटे राहुल को अपना प्रतिरूप मानकर रखा था। सांकृत्यायन का अर्थ एसीमिलेटर से उन्हांेने लगाया। इस प्रकार उन्हांेने अपने नाम के साथ पूर्ण न्याय किया। राहुल सांकृत्यायन अपने प्रारंभिक जीवन मंे आर्य समाज के स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित थे। इसी के बाद महात्मा बुद्ध के प्रति उनमंे आकर्षण पैदा हुआ और अपना नाम तक बदल डाला।
हिंदी साहित्य की विलक्षण प्रतिभाशाली हस्तियों में से एक राहुल सांकृत्यायन ऐसे महापंडित थे जिन्होंने बिना विधिवत शिक्षा हासिल किए विविध विषयों पर करीब 150 ग्रंथों की रचना की और अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा यात्राओं में लगा दिया। राहुल सांकृत्यायन ने पूरे भारत के अलावा तिब्बत, सोवियत संघ, यूरोप और श्रीलंका की यात्राएं कीं। बाद में उन्होंने अपने अनुभवों पर घुमक्कड़ शास्त्र की रचना की जो घुमक्कड़ों के लिए निर्देशपुस्तक से कम नहीं है। आजमगढ़ के एक गांव में अप्रैल 1893 में पैदा हुए राहुल सांकृत्यायन ने विधिवत शिक्षा हासिल नहीं की थी और घुमक्कड़ी जीवन ही उनके लिए महाविद्यालय और विश्वविद्यालय थे। अपनी विभिन्न यात्राओं के क्रम में वह तिब्बत भी गए थे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष कुमार पंकज के अनुसार राहुल सांकृत्यायन ने दुर्लभ बौद्ध साहित्य को एकत्र करने की दिशा में काफी काम किया। वह तिब्बत से बौद्ध धर्म की हस्तलिखित पोथियां खच्चरों पर लाद कर लाए थे और बाद में उनका यहां प्रकाशन भी करवाया था।
राहुल सांकृत्यायन की रचनाओं का दायरा विशाल है। उन्होंने अपनी आत्मकथा के अलावा कई उपन्यास, कहानी संग्रह, जीवनी, यात्रा वृतांत लिखे हैं। इसके साथ ही उन्होंने धर्म एवं दर्शन पर कई किताबें लिखीं। उनकी बहुचर्चित कृतियों में से एक वोल्गा से गंगा के बारे में हिन्दी विद्वानों का कहना है कि जिस शैली में यह पुस्तक लिखी गई है हिंदी में कम ही पुस्तकें उस शैली में हैं। प्रागैतिहासिक काल यानी पांच हजार साल से भी अधिक पुरानी सभ्यता से आधुनिक काल तक मानव की प्रगति का जिक्र करते हुए इस कृति की जो शैली है वह काफी रोचक एवं सरस है।
साहित्यकार-आलोचक कुमार पंकज के अनुसार इस शैली में सबेरा संघर्ष गर्जन और महायात्रा जैसी कम ही पुस्तकें हैं। हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार भगवान सिंह के अनुसार राहुल सांकृत्यायन को इतिहास की विशेष समझ थी हालांकि उन्होंने विधिवत शिक्षा हासिल नहीं की थी। इतिहास की समझ विकसित होने में उनके देशभ्रमण की अहम भूमिका थी। भगवान सिंह के अनुसार कई भाषाओं के ज्ञाता राहुल सांकृत्यायन जितने विद्वान थे निजी जीवन में उतने ही व्यावहारिक एवं सरल थे। उन्होंने राहुल सांकृत्यायन से हुई कई भेंटों का जिक्र करते हुए कहा कि 1951 में वह सोवियत संघ से लौटे थे और इलाहाबाद में एक विशेष गोष्ठी आयोजित की गई थी। उस गोष्ठी में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई थी कि शोध का स्तर गिर रहा है। इस चिंता का निराकरण करते हुए राहुलजी ने कहा था कि शोध के शुरू होने की प्रक्रिया में गुणवत्ता की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। बाद में स्थिति ठीक होने लगती है।
ऐसे ही एक वाकए का जिक्र करते हुए भगवान सिंह ने कहा कि राहुलजी एक बार एक स्कूल गए। वहां स्कूल ने शिकायत की कि कई बच्चे पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते। इस पर उनका सहज जवाब था कि अगर कुछ बच्चे भी पढ़ते हैं और आगे बढ़ते हैं तो यह कम नहीं है। अपने आखिरी दिनों में राहुल सांकृत्यायन पक्षाघात सहित कई बीमारियों के शिकार हो गए। भगवान सिंह के अनुसार वह काफी दुखद क्षण था। पक्षाघात से ग्रसित हो जाने के बाद वह अपने बच्चों को भी नहीं पहचान पा रहे थे। 14 अप्रैल 1963 को उनका निधन हो गया।
राहुल सांकृत्यान की वोल्गा से गंगा की कहानी संग्रह में वे यात्रा वृत्तांत कहानी के रूप मंे उभरे हैं जो रूस, कोरिया, जापान और चीन जैसे कई देशों में यात्रा करते समय राहुल सांकृत्यायन के रूबरू हुए थे। राहुल ने उन सभी देशों की संस्कृति को देखा, समझा और उनसे अपनी कहानियों के शब्द चुने। यह कहानी संग्रह सर्वप्रथम 1994 में प्रकाशित हुआ था और आधुनिक हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर बन गया। उन्होंने सिर्फ एक भाषा तक ही अपने को सीमित नहीं रखा। हिन्दी, संस्कृत, पाली, भोजपुरी, उर्दू, पर्शियन, अरेबिक तमिल, कन्नड़, तिव्वली, सिंहली, फ्रेंस और रसियन भाषा में भी जमकर लिखा। उन्होंने सौ से अधिक विषयों पर अपनी कलम चलायी, इनमें समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शन, विज्ञान, धर्म और राजनीति जैसे विषय भी शामिल हैं। अपनी पुस्तक वोल्गा से गंगा में आर्यों की यात्रा का विशद वर्णन किया है। आर्यों ने यूरेशिया से वोल्गा नदी के तट तक कैसे यात्रा की और फिर हिन्दु कुश और हिमालय तक कैसे पहुंचे और वहां से गंगा के मैदान में उन्होंने सभ्यता का विकास किया। राहुल सांकृत्यान ने इस इतिहास को बहुत ही तर्क के साथ प्रस्तुत किया है।
राहुल सांकृत्यान की तिब्बत में सवा वर्ष (1933), मेरी यूरोप यात्रा (1935), अथातो घुमक्कड़, जिज्ञासा, एशिया के दुर्गम भूखंडों में, यात्रा के पन्ने ओर किन्नर देश में रचनाएं भी यात्रा वृत्तांतों से भरी हैं। उनकी दस से ज्यादा पुस्तकें अनुवाद करके बांग्ला भाषा में प्रकाशित की गयीं। उनकी साहित्य सेवा के लिए 1953 में पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया गया और मध्य एशिया का इतिहास के लिए 1958 में सहित्य अकादमी अवार्ड मिला। राहुल सांकृत्यायन अपनी प्रतिदिन की बातें (दिनचर्या) संस्कृत में लिखा करते थे। इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल ने राहुल सांकृत्यायन की तुलना इसीलिए गौतम बुद्ध से की है। गौतम बुद्ध ने घूम-घूम कर लोगों को जिस तरह से मानवता का संदेश दिया, उसी तरह राहुल सांकृत्यायन ने दुनिया भर के इंसानों को जोड़ा और बताया कि भूगोल ने भले ही सीमाएं बांध रखी हैं लेकिन हम सभी इंसान एक हैं, हमारी भावनाएं एक हैं और हमारे सुख-दुख भी एक जैसे ही हैं। (हिफी)

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