देश

कमरतोड़ मंहगाई से फीकी होती त्योहारों की रौनक

-ओम प्रकाश उनियाल
त्योहार मनाने की उमंग हरेक के मन में रहती है। जब भी कोई त्योहार आता है तो उसको मनाने के लिए तैयारियां कुछ दिन पहले से ही शुरु की जाने लगती है। चाहे लोकपर्व हों या राष्ट्रीय पर्व सबका अपना-अपना महत्व है। गरीब से लेकर अमीर अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार त्योहार मनाता है। अगाध श्रद्धा, आस्था और उल्लास हरेक को त्योहारों के प्रति प्रेरित करती है। यदि त्योहार न होते तो मानव जीवन निराश भरा होता। जीवन बोझिल लगता। जीवन में जो दुख, उदासी व एकाकीपन होता है त्योहार के रंग में कुछ समय के लिए रंग जाता है। जिससे मन में नया जोश भर जाता है। त्योहार आपस में सद्भाव, प्यार-प्रेम बनाए रखते हैं। साथ ही यह भी सिखाते हैं कि समूचे राष्ट्र को एकजुट होकर रहना चाहिए। जिस धर्म का जो भी पर्व होता है उसको शांतिपूर्ण ढंग एवं भाईचारे से मनाने की सीख देता है। इससे धर्म का मान भी बढ़ता है। तथा धर्म का स्थायित्व भी बरकरार रहता है। यही नहीं जिस धर्म का जो इतिहास रहता है उसका गवाह त्योहार ही होते हैं।
बाजार भी त्योहार पर इस कदर हावी हो चुका है जिससे बनावटीपन साफ झलकता है। दिनोंदिन बढ़ती मंहगाई की मार लोगों के चेहरों पर झलकने वाली रौनक को छीनती जा रही है। निकट भविष्य में विशेषकर गरीब वर्ग और अल्प आय वर्ग के लिए त्योहार केवल सपने बनकर रह जाएंगे। समय के बदलाव के साथ-साथ त्योहार मनाने के ढंग में भी बदलाव आता जा रहा है। परंपरा केवल दिखावा मात्र बनकर रह गयी है।
त्योहारों पर हुड़दंगबाजी करना, शराब पीकर झगड़े, गाली-गलौज करना, अनावश्यक हो-हल्ला करना जैसी क्रियाओं को प्रमुखता देना आम बात हो गयी है। त्योहार जरूर मनाएं चाहे साधारण ढंग से ही मनाएं। ये संस्कृति का ही अंग होते हैं। परिचायक होते हैं सभ्यता का। यदि इनसे मुंह मोड़ेंगे तो आने वाली पीढ़ी त्योहारों के महत्व समझने से वंचित रह जाएगी।

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