लेखक की कलमसम-सामयिक

क्रिकेट की तर्ज पर इंडिया एलायंस में घमासान

 

इंडिया एलायंस टीम का यह घमासान लोकसभा चुनाव में भी दिखाई देगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस घमासान को क्रिकेट के अंदाज में बताया। राजस्थान में उन्होंने कहा कि कांग्रेस वाले एक-दूसरे को रनआउट करने में लगे हैं। जो बचे हैं, वो महिलाओं और अन्य मुद्दों पर गलत बयान देकर हिट विकेट हुए जा रहे हैं। बाकी जो हैं, वो रिश्वत लेकर मैच फिक्सिंग कर लेते हैं। जब इनकी टीम ही इतनी खराब है, तो ये क्या रन बनाएंगे और आपका क्या काम करेंगे।

क्रिकेट में परस्पर प्रतिद्वंद्वी टीमें एक दूसरे को हराने की जोर आजमाइश करती हैं लेकिन विपक्ष के इंडिया एलायंस टीम का अंदाज अलग है। यह ऐसी टीम है जो आपस में ही भिड़ रही है। इसके खिलाड़ी एक दूसरे को पछाड़ने में लगे हैं लेकिन दावा यह है कि इंडिया एलायंस टीम एनडीए की टीम को पराजित करेगी। मध्यप्रदेश चुनाव में कांग्रेस और सपा एक दूसरे से लड़ रही थी। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ भी एक दूसरे को कमजोर करने में लगे रहे। राजस्थान में अशोक गहलौत और सचिन पायलट ग्रुप शुरू से परस्पर मुकाबले में रहे हैं। उत्तर प्रदेश में सपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने पूरी पार्टी के सामने चुनौती पेश कर दी है। राष्ट्रीय अध्यक्ष को समझ नहीं आ रहा है कि इस स्थिति से किस प्रकार निपटा जाए। इंडिया एलायंस टीम का यह घमासान लोकसभा चुनाव में भी दिखाई देगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस घमासान को क्रिकेट के अंदाज में बताया। राजस्थान में उन्होंने कहा कि कांग्रेस वाले एक-दूसरे को रनआउट करने में लगे हैं। जो बचे हैं, वो महिलाओं और अन्य मुद्दों पर गलत बयान देकर हिट विकेट हुए जा रहे हैं। बाकी जो हैं, वो रिश्वत लेकर मैच फिक्सिंग कर लेते हैं। जब इनकी टीम ही इतनी खराब है, तो ये क्या रन बनाएंगे और आपका क्या काम करेंगे। हमें हर पोलिंग बूथ पर पांच से सात सेंचुरी लगानी है। भाजपा को चुनेंगे, तो हम राजस्थान में भ्रष्टाचारियों की टीम को आउट कर देंगे। भाजपा विकास का स्कोर तेजी से बनाएगी और जीत राजस्थान की होगी, जीत राजस्थान के भविष्य की होगी, जीत राजस्थान की माताओं-बहनों, युवाओं और किसानों की होगी।

मोदी कहते हैं कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार के पांच साल एक-दूसरे को रन आउट करने में बीत गए। जो बचे हैं, वो महिलाओं और अन्य मुद्दों पर गलत बयान देकर हिट विकेट हुए जा रहे हैं, और बाकी जो हैं, वो पैसे लेकर, रिश्वत लेकर मैच फिक्सिंग कर लेते हैं और कुछ काम नहीं करते। क्रिकेट में बैट्समैन आता है और अपनी टीम के लिए रन बनाता है। कांग्रेस वालों में ऐसा झगड़ा है कि रन बनाना तो दूर ये लोग एक-दूसरे को रन आउट करने में लगे हैं। कांग्रेस अपने राज में यहां शोभा यात्रा तक निकलने नहीं देती है। वह देवी देवताओं की शोभा यात्रा पर रोक लगाती है, लेकिन आतंकी संगठन पीएफआई की रैली को बढ़ावा देती है। कांग्रेस के लूट के लाइसेंस की पूरी कहानी लाल डायरी में दर्ज हैं और अब धीरे-धीरे लाल डायरी के पन्ने खुलने लगे हैं।

उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस, सपा और बसपा तीनों में घमासान है। सपा की समस्या स्वामी प्रसाद मौर्य बढ़ा रहे हैं। शिवपाल यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य सपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। दोनों के बीच दिलचस्प विसंगतियां है। शिवपाल यादव सपा के संस्थापक सदस्य हैं। मुलायम सिंह यादव ये अनुयायी। उनके सहयोग और संघर्ष दोनों की मुलायम सिंह सदैव सराहना करते थे। दूसरी तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य हमेशा मुलायम सिंह और उनकी पार्टी पर हमला बोलते रहे। उनके विरुद्ध अमर्यादित बयान देते रहे। जब सपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी, तब भी मुलायम सिंह को उचित सम्मान नहीं मिला। अंततः बड़ी कटुता के साथ उस गठबंधन सरकार का पतन हुआ था। पार्टी पर नियन्त्रण कायम करने के बाद अखिलेश यादव ने फिर बसपा और कांग्रेस से चुनावी गठबंधन के प्रयोग किए थे लेकिन दोनों प्रयोग वैमनस्य के साथ टूट गए थे। वर्तमान स्थिति में ऐसा लग रहा है जैसे स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर अलग तरह का प्रयोग चल रहा है। इस बार स्वामी प्रसाद सपा के भीतर रह कर अपना काम कर रहे हैं। कुछ ही बयानों ने उन्हें पार्टी का सर्वाधिक चर्चित नेता बना दिया है। इस चर्चा में कई बार राष्ट्रीय अध्यक्ष भी पीछे रह जाते हैं जबकि क्षेत्रीय या परिवार आधारित पार्टियों में यह रिवाज नहीं होता है। इसमे मुखिया ही चर्चा में रहते है। अन्य पदाधिकारी औपचारिकता का निर्वाह मात्र करते हैं। स्वामी प्रसाद इस औपचारिकता से बहुत आगे निकल गए हैं। कई बार लगता है जैसे वह अपनी मर्जी से पार्टी का एजेंडा तय कर रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने राम चरित मानस पर विवादित बयान दिया। इसके बाद उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। शिवपाल सिंह यादव ने मौर्य के बयान से पार्टी को अलग रखने का प्रयास किया था। उसे स्वामी प्रसाद का निजी बयान बताया था लेकिन मौर्य के बयान पर मुख्यमंत्री से ही स्पष्टीकरण मांगा गया था। इस तरह शिवपाल यादव के विचार को महत्व नहीं मिला। इसके बाद तो स्वामी प्रसाद बेअंदाज हो गए। उन्होंने पार्टी के सभी हिन्दुओं के सामने चुनौती पेश कर दी। उन्होंने हिन्दू धर्म को धोखा बताया था। इसके बाद पार्टी हाईकमान द्वारा उन पर नकेल कसने के कयास लगाए गए थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

इसके बाद स्वामी प्रसाद शायद दीपोत्सव का इंतजार कर रहे थे। इस दिन हिन्दू परिवारों में श्री गणेश और देवी लक्ष्मी का पूजन होता है। शुभ लाभ की कामना की जाती है। अर्थात लाभ हो, लेकिन वह शुभ हो। यह समाज और मानव कल्याण का ही बोध कराता है। अधर्म पर आधारित लाभ समाज का अहित करने वाला होता है। स्वामी प्रसाद को राजनीति करनी थी। वह इस भावभूमि को समझ ही नहीं सकते। वह बहुसंख्यकों की धार्मिक अस्था से बेपरवाह हैं। दीपोत्सव के दिन उन्होंने देवी लक्ष्मी पर अमर्यादित बयान दिया। यह उस व्यक्ति का बयान था, जो बसपा में रहते हुए नारा लगाता था हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश हैं। भाजपा में आया तो साँस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए समर्पित दिखाई दिया। इतना ही नहीं यह नेता अपनी बेटी को ही ना समझ सका, ना समझा सका, जो हिन्दू तीर्थों में जाती है, परंपरागत पर्व मनाती हैं, उनकी फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करती हैं। समाज में भी लोग इसके बयानों पर ध्यान नहीं देते क्योंकि उनका इतने अविश्वसनीय नेता पर कोई विश्वास ही नहीं है। उन्होंने पहले बसपा फिर भाजपा में रह कर लाभ उठाया। बसपा कमजोर हुई तो भाजपा में आ गए। उस समय इनका विज्ञान सटीक साबित हुआ था। भाजपा की सरकार बनी। ये पांच साल मंत्री रहे। चुनाव के पहले इन्होंने सपा की जीत का अनुमान लगाया होगा। इसलिए पाला बदल लिया। जिस पार्टी को लगातार बीस साल से गाली दे रहे थे, उसी में पहुँच गए। लेकिन इस बार उनका विज्ञान धोखा दे गया। दूसरे को मुख्यमंत्री बनाने का दंभ दिखाने वाला विधानसभा का अपना चुनाव भी हार गया था। (हिफी)

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)

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