सम-सामयिक

अंग्रेजों के कानून की बिदाई

 

हमारा देश 1947 में स्वतंत्र हो गया, 1950 में नया संविधान लागू कर दिया गया, किन्तु अपराध रोकने एवं न्याय दिलाने के लिए बनाए गए कानून अंग्रेजों के जमाने के ही रहे। सत्तर साल तक सत्ता में बैठे सरमायेदारों को इतना फुर्सत नहीं मिली कि वह अंग्रेजों के जमाने में लागू कानून को संशोधित करके नया कानून लागू करते।

राज्यसभा में तीनों क्रिमिनल लॉ बिल भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य बिल पास हो गए हैं। अब इन्हें मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। उनकी मंजूरी मिलते ही ये तीनों बिल कानून बन जाएंगे। बिल पास होते ही राज्यसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। बिलों पर चर्चा का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा- जो लोग सदन के बाहर मुझसे पूछते हैं कि इस कानून से क्या होगा? मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि इस कानून के लागू होने के बाद तारीख पर तारीख का जमाना नहीं रह जायेगा। किसी भी मामले में 3 साल में न्याय दिलाने का उद्देश्य है। जो लोग कहते हैं कि नए कानूनों की जरूरत क्या है, उन लोगों को स्वराज का मतलब ही नहीं पता, इसका मतलब स्व शासन नहीं है। इसका मतलब स्व धर्म, भाषा, संस्कृति को आगे बढ़ाना है। गांधी जी ने शासन परिवर्तन की लड़ाई नहीं लड़ी, उन्होंने स्वराज की लड़ाई लड़ी। आप 60 साल सत्ता में बैठे रहे, लेकिन स्व को लगाने का काम आपने नहीं किया, ये काम मोदी जी ने किया।

आजादी के 75 साल बाद, अब सरकार ने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को सुधारा है, उनके स्थान पर नए कानूनों के विधेयक संसद में पटल पर रखे, जो न केवल भारतीयता से ओतप्रोत हैं, बल्कि आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी आदि भी इसमें शामिल किए गए हैं। अब तक देश में जो कानून चल रहे थे, वे 150 साल पहले अंग्रेजों द्वारा बनाए गए थे भारतीय दंड संहिता 1860 में, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में और दंड प्रक्रिया संहिता 1898 में। अब इनका स्थान भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता लेंगे। ये पूरी तरह भारतीयों द्वारा, भारतीयों के लिए बनाए गए कानून होंगे।

गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष के अधिकांश सांसदों की अनुपस्थिति में इन्हें लोकसभा में पेश किया था, जहां चर्चा के बाद इन्हें पारित कर दिया गया। बाद मंे इन्हें राज्यसभा में पेश किया गया। पुराने कानूनों का उद्देश्य अंग्रेजों के राज की रक्षा करना और भारतीयों को दंड देना था, जबकि आजादी के बाद कानूनों में ऐसे बदलावों की आवश्यकता थी जो किसी के शासन की रक्षा करने के लिए नहीं, बल्कि देशहित एवं देशवासी हित में हों। साथ ही इनमें दंड देने की बजाय न्याय देने पर जोर दिया गया, वह भी तेजी से। समय पर न्याय देने वाले कानून बनाना समय की आवश्यकता थी, क्योंकि उच्चतम न्यायालय में 70,000 से अधिक मामले, उच्च न्यायालयों में करीब 60 लाख मामले और सुनवाई अदालतों में लगभग 4.23 करोड़ मामले लंबित हैं। कहते हैं अन्याय से देर भली, किन्तु अंग्रेजों के जमाने के कानूनों के तहत कार्रवाई में न्याय का इंतजार करते-करते याची की मृत्यु तक हो जाती है और मौत के बाद न्याय मिले तो वह कैसा न्याय? नए कानूनों में कई बड़े परिवर्तन किए गए हैं। महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है, अब महिलाएं अपने साथ हुए अत्याचार की शिकायतें कहीं भी दर्ज करा सकती हैं और यह पुलिस थाने की जिम्मेदारी होगी कि वह शिकायत को 24 घंटे के भीतर संबंधित थाने तक पहुंचाए। सामूहिक बलात्कार के दोषियों को अब फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। पुराने कानून कितने लचर थे, इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि उनमें आतंकवाद की परिभाषा तक नहीं थी, अब न केवल आतंकवाद को परिभाषित किया गया है, उसके दोषियों के विरुद्ध कड़े प्रावधान भी किए गए हैं। आतंकवाद केवल आतंकी बम धमाके करना ही नहीं है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए जाली नोट चलाना भी आतंकवाद की श्रेणी में रखा गया है। आतंकवाद वैश्विक समस्या है, भारत इसका दशकों से पीड़ित रहा है और इसी कारण 1990 के दौर में आतंकवाद निरोधी कानून बनाए गए थे, किन्तु कांग्रेस ने सत्ता के लालच में तुष्टिकरण की नीति अपनाते हुए उन कानूनों को निरस्त कर दिया। ऐसा ही पहला कानून था- टाडा, जिससे मुंबई में अंडरवल्र्ड के सफाये में काफी मदद मिली। किन्तु दुर्भाग्य से कांग्रेस सरकार ने 1995 में अपनी तुष्टिकरण की नीति के तहत इसे वापस ले लिया। इसी का परिणाम था कि 2001 में आतंकियों की हिम्मत इतनी बढ़ी कि देश के दिल यानी संसद पर हमला कर दिया । इसके पश्चात पुनः 2001 में आतंकवाद निरोधक पोटा कानून लाया गया। विपक्ष में बैठी कांग्रेस इसके भी विरोध में थी और इसे संसद में पारित नहीं होने दिया । हालांकि, लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक बुलाकर पोटा को पारित करा लिया गया। किन्तु 2004 में जब पुनः कांग्रेस सत्ता में आई तो इस कानून को वापस ले लिया। अब नए कानूनों से आतंकवाद से सख्ती से निपटने की उम्मीद है।

बकौल अमित शाह गांधी जी ने शासन परिवर्तन की लड़ाई नहीं लड़ी, उन्होंने स्वराज की लड़ाई लड़ी। आप 60 साल सत्ता में बैठे रहे, लेकिन स्व को लगाने का काम नहीं किया, ये काम मोदी जी ने किया।अमित शाह ने कहा कि अंग्रेजों का बनाया राजद्रोह कानून, जिसके चलते तिलक, गांधी, पटेल समेत देश के कई सेनानी कई बार 6-6 साल जेल में रहे। वह कानून अब तक चलता रहा। अब राजद्रोह की जगह नाम देशद्रोह कर दिया है, क्योंकि अब देश आजाद हो चुका है, लोकतांत्रिक देश में सरकार की आलोचना कोई भी कर सकता है। अगर कोई देश की सुरक्षा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का काम करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।अगर कोई सशस्त्र विरोध करता है, बम धमाके करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी, उसे आजाद रहने का हक नहीं, उसे जेल जाना ही पड़ेगा। कुछ लोग इसे अपनी समझ के कपड़े पहनाने की कोशिश करेंगे, लेकिन मैंने जो कहा उसे अच्छी तरह समझ लीजिए। देश का विरोध करने वाले को जेल जाना होगा।
तकनीक बदलने के साथ कानूनों में बदलाव जरूरी होता है, नए कानूनों में इसे शामिल किया गया है। देशभर के लोगों को ठग रहे साइबर ठगों पर शिकंजा कसने के लिए टेलीकॉम कानून भी बदल दिया गया है। अब फर्जी सिम हासिल करना आसान नहीं रह जाएगा। एक अन्य विशेष उल्लेखनीय परिवर्तन यह है कि अब आरोपी की गैरमौजूदगी में भी ट्रायल होगा।

देश में कई केस लटके हुए हैं। बॉम्बे ब्लास्ट जैसे केसों के आरोपी पाकिस्तान जैसे देशों में छिपे हैं। अब उनके यहां आने की जरूरत नहीं है। अगर वे 90 दिनों के भीतर कोर्ट के सामने पेश नहीं होते हैं तो उनकी गैरमौजूदगी में ट्रायल होगा। वास्तव में ये कानूनी बदलाव ऐसे हैं मानो देश 75 वर्ष बाद अपनी भूल सुधार रहा हो, यह भूल सुधार सुखदायक है। देर आयद दुरुस्त आयद। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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