सम-सामयिक

दिल्ली पर प्रदूषण का हमला

 

बढते प्रदूषण ने देश की राजधानी यानि हार्ट पर पल्यूशन अटैक कर दिया है। हालत इतनी बदतर है कि पिछले वर्षों के रिकॉर्ड टूटने की ओर है। कहना न होगा कि अभी नवंबर में ही हैं और दीवाली भी नही मनायी गयी है सर्दियों ने ठीक से आहट भी नहीं दी है कि दिल्ली में प्रदूषण के कारण लोगों का दम घुटना शुरू हो गया है। दीपावली से पहले ही प्रदूषण का स्तर मापने वाला वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 450 के ऊपर जा पहुंचा है। हालांकि, इसके बाद भी प्रदूषण के लिए दीपावली जैसे पर्व को जिम्मदार ठहराने का प्रयास किया जाएगा। प्रदेश सरकार को शिक्षण संस्थानों में अवकाश की घोषणा करनी पड़ गई है। क्रिकेट विश्वकप खेलने आई टीमें प्रदूषण के कारण अभ्यास तक नहीं कर पा रही हैं। लोगों की आंखों में जलन और स्वांस में गडबड़ी ब्लडप्रेशर के मरीजों की संख्या मे ंइजाफा हुआ है।

एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण का स्तर पार्टिकुलर मैटर यानी पीएम 2.5 कणों की मात्रा से मापा जाता है। पीएम 2.5 अत्यंत बारीक कण होते हैं, जिनका आकार 2.5 माइक्रोन से कम होता है और ये सामान्यतः नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते, किन्तु सांस प्रणाली में प्रवेश कर स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न कर सकते हैं। ये फेफड़ों को संक्रमित करते हैं और श्वसन मार्ग में सूजन पैदा कर देते हैं। हवा में इनकी संख्या के आधार पर ही तय किया जाता है कि किसी क्षेत्र की हवा सांस लेने योग्य है या नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों के अनुसार एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को 0-50 के बीच बेहतर, 51-100 के बीच संतोषजनक, 101 से 200 के बीच सामान्य, 201 से 300 के बीच खराब, 301 से 400 के बीच बहुत खराब और 401 से 500 के बीच गंभीर माना जाता है। दिल्ली और आसपास के कई इलाकों में में पीएम2.5 कण का जमाव सरकार द्वारा तय सुरक्षित स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 7 से 8 गुना अधिक बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 5 ग्राम प्रति घन मीटर के मुकाबले यह 80 से 100 गुना तक अधिक है। दल्लिी और आसपास के इलाकों में लगातार पांचवें दिन जहरीली धुंध की मोटी परत छाई रही डॉक्टरों ने इस स्थिति पर चिंता जताई है क्योंकि उनका मानना है कि इससे बच्चों और बुजुर्गों को सांस और आंख की समस्या हो सकती है।

राजधानी दिल्ली में एक्यूआई अति गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तापमान में कमी, हवाओं की मंद गति, प्रदूषकों के स्थिर होने और फसलों की कटाई के दबा पड़ोसी राज्य पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाने को प्रदूषण का कारण बताया जाता है। हालांकि खेती-बाड़ी से वहां प्रदूषण नहीं होता तो वह सैकड़ों किलोमीटर दूर दिल्ली में आकर कैसे प्रदूषण फैला रहा है? अब तो दिल्ली का प्रदूषण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मुद्दा बनने लगा है। शिकागो विश्वविद्यालय स्थित ऊर्जा नीति संस्थान द्वारा अगस्त में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण की वजह से दिल्ली निवासियों की आयु करीब 12 वर्ष कम हो रही है। क्रिकेट विश्व कप मैच से पहले राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के श्गंभीरश् श्रेणी में पहुंचने के कारण श्रीलंका को शनिवार को अपना शुरुआती अभ्यास सत्र रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन बांग्लादेश के खिलाड़ियों ने मास्क के इस्तेमाल के साथ अभ्यास किया। यही स्थिति कुछ वर्ष पूर्व चीन के कई प्रमुख शहरों में भी आई थी, जिसके दबा वहां लॉकडाउन लगाकर प्रदूषण को नियंत्रित किया गया था।

राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वाहन हैं, जिसे हर सरकार जानती है, किन्तु मानती नहीं। यदि सच में दिल्ली को प्रदूषण से बचाना है तो कड़े कदम उठाने होंगे। सबसे पहला कदम हो सकता है कि नए वाहनों का पंजीकरण अत्यंत सीमित कर दया जाए, 10 वर्ष से पुराने सभी वाहनों को जब्त कर लिया जाए, जिनके पास पार्किंग नहीं है, उन्हें नए वाहन खरीदने की अनुमति न दी जाए। सार्वजनिक परिवहन को सुदृढ़ कर ऐसे कदम उठाए जा सकते हैं। साथ ही, दिल्ली में प्रदूषण के प्रमुख कारकों- कारखानों व कोयला संचालित विद्युत संयंत्रों को वहां से हटाने की जरूरत है। केवल कुछ दिन के लिए चुनिंदा वाहनों पर रोक से समस्या का स्थायी समाधान नहीं होगा।

देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की चर्चा फिर चारों ओर शुरू हो गई है। हवा जहरीली हो गई है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 80 गुना तक विषैली हो गई है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने चार वर्ष पुरानी योजना फिर निकाल ली है सम विषम कार योजना दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने- घोषणा की कि वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने की कवायद के तौर पर शहर में 13 से 20 नवंबर तक सम-विषम कार योजना लागू की जाएगी।

यहां बता दें कि हमारे यहां तमाम सरकारी नियम सिर्फ कागजों पर दौड़ रहे हैं आपको अपनी गाड़ी का प्रदूषण सर्टिफिकेट लेना है तो सिर्फ प्रदूषण जांच केन्द्र पर जाइए सुविधा शुल्क दीजिए बदले में वह आपको तुरंत मनमाना सूचकांक लिखकर सर्टिफिकेट जारी कर देगा चाहे आपकी गाड़ी मानक से 2 गुना प्रदूषण फैला रही हो। जब प्रदूषण मापने का काम जिन लोगों को सोपा गया है वह लोग इस तरह की ड्यूटी निभा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में प्रदूषण पर नियंत्रण करने की सोच रखना भी बेमानी होगी। हमारे यहां तमाम नियम सिर्फ कागजों पर दौड़ते हैं। तमाम गाड़ियों में प्रदूषण सर्टिफिकेट के आधार पर छूट दे दी जाती है जबकि प्रदूषण सर्टिफिकेट जारी करने के सेंटर्स पर सिर्फ 200 रुपए सुविधा शुल्क लेकर पूरी राजधानी के स्वास्थ्य को दाव पर लगाया जा सकता है। इसी तरह तमाम प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी तमाम फैक्ट्री को कल कारखानों को तथा बड़ी यूनिटों को रिश्वत लेकर नियंत्रित प्रदूषण के सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं। भ्रष्टाचार हमारे जड़ों तक पहुंच गया है और इस प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार है। जरूरत इस बात की है कि प्रदूषण नियंत्रण का सर्टिफिकेट जारी करने वाले तमाम संस्थाओं यूनिटों व सरकारी मशीनरी की सत्यनिष्ठा की सख्ती से पड़ताल की जाए, तभी प्रदूषण की गंभीर होती समस्या से निजात मिलने की कुछ आशा बन सकती है। जब तक तली के सुराख बने रहेंगे, समस्या विकराल होती रहेंगी। जब प्रदूषण नियंत्रण विभाग खुद ही भ्रष्टाचार के प्रदूषण से प्रदूषित है तो वह प्रदूषण दूर कैसे करेगा? (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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