जंगलराज से बिहार का बचाव
यह सही है कि अमित शाह सहित भाजपा के अनेक नेताओं ने नीतीश कुमार के लिए पार्टी के दरवाजे बंद रखने का ऐलान किया था। यह फैसला नीतीश के परिवारवाद और घोटाले के आरोपों से घिरी राजद के पाले में जाने के बाद लिया गया था लेकिन आज उसी बिहार को परिवारवाद और भ्रष्टाचार घोटालों से बचाने के लिए भाजपा को निर्णय बदलना पड़ा। यह निर्णय उस विचार के अनुरूप है कि राष्ट्र और जनहित पहले, पार्टी बाद में। बिहार का हित इसी में था। भाजपा ने भारत रत्न से विभूषित कर्पूरी ठाकुर के विचारों पर अमल किया। बिहार को परिवारवाद के वर्चस्व की तरफ बढ़ने से रोक दिया। कर्पूरी ठाकुर परिवारवाद और भ्रष्टाचार के घोर विरोधी थे। वह जिस झोपड़ी में जन्मे थे, वही जीवन के अंत तक उनकी सम्पत्ति थी जबकि वह दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री,एक बार उप मुख्यमंत्री, एक बार सांसद बने। दशकों तक विधायक रहे। वह उस समय जनसंघ के सहयोग से ही मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री बने थे। आज नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान दिया है। उनके विचारों को भी सम्मान दिया है। बिहार को राजद के परिवारवाद और भ्रष्टाचार से बचाने का कार्य किया है।
राजद प्रमुख अपने पुत्र को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नीतीश पर निर्णयक दबाव बना चुके थे। जातिगत जनगणना के बाद से लालू यादव का नीतीश पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने का दबाव ज्यादा बढ़ गया था क्योंकि जातिगत जनगणना से उनका एमवाई समीकरण मजबूत दिखाई दे रहा था। दूसरी तरफ नीतीश कमजोर दिखाई देने लगे थे लेकिन नीतीश कुमार को आत्मचिंतन अवश्य करना चाहिए। भाजपा के साथ केंद्र में मैत्रीपूर्ण फिर मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी सुशासन बाबू की छवि बनी थी। वह छवि राजद से हाथ मिलाते ही चैपट हो गई। नीतीश को अपनी धूमिल हो चुकी छवि को सँवारने का एक और अवसर मिला है।
बिहार की राजनीति में भाजपा और राजद दो विपरीत ध्रुव हैं। भाजपा राष्ट्रवादी विचारधारा और कैडर पर आधारित पार्टी है। दूसरी तरफ राजद परिवार आधारित पार्टी है। इसके संस्थापक मुख्यमन्त्री रहते हुए ही घोटालों के आरोपी बने थे। उस समय उनके पुत्र छोटे थे। इसलिए अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमन्त्री बना दिया था। लालू यादव आज भी वहीं है। अब उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता। छोटे पुत्र तेजस्वी बड़े हो गए। नीतीश कुमार को वही डील कर रहे थे। कहने को तेजस्वी उपमुख्यमंत्री थे लेकिन नीतीश के मुकाबले लगभग दो गुना संख्याबल था। ऐसी सरकारें खास अंदाज में चलती हैं। मुख्यमन्त्री को अपने उप मुख्यमन्त्री की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता था। भाजपा और जेडीयू की बात अलग थी। दोनों ने मिल कर चुनाव लड़ा था। गठबंधन के नेता नीतीश कुमार थे। उन्हीं को भावी मुख्यमन्त्री के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इसी गठबन्धन को जनादेश मिला था। इसमें भी जेडीयू का संख्याबल भाजपा से कम था लेकिन भाजपा ने जनादेश का सम्मान किया। नीतीश के नेतृत्व में सरकार को जन आकांक्षा के अनुरूप चलाया जा रहा था। राजग की तरफ का नीतीश पर कोई दबाव नहीं था। राजद का पूरा कुनबा ही घोटालों के आरोप में घिरा है। बताया जाता है कि लालू यादव ने अपनी भ्रष्ट कार्य शैली से पूरे कुनबे को लाभान्वित किया था।
नीतीश ने जब पहली बार पाला बदल कर राजद के साथ सरकार बनाई थी, तब भी राजद ने अपनी मूल प्रकृति का परित्याग नहीं किया था। उस सरकार में तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री थे। उनके बड़े भाई स्वास्थ मंत्री थे। दोनों मिल कर लालू यादव की विरासत को बढ़ाने में जुटे थे। सुशासन बाबू यह देख कर बेचैन हो गए थे। उन्हें लगा भाजपा के साथ रहकर जो छवि निर्मित हुई थी, सब तार-तार हुई जा रही है। इसलिए नीतीश कुमार उस गठबंधन से पीछा छुड़ा कर भाजपा में वापस आ गए। नीतीश और लालू परिवार के बीच फिर अमर्यादित आरोपों की बौछार शुरू हो गई थी।
ऐसा लगा जैसे नीतीश अब कभी लालू के कुनबे की तरफ पलट कर नहीं देखेंगे लेकिन फिर बैतलवा डाल पर की कहावत चरितार्थ हुई थी। एक दूसरे पर हमला बोलने वाले एक पाले में आ गए थे। विधानसभा में विश्वासमत भी हासिल कर लिया था। राजद यह विश्वास के साथ नहीं कह सकती कि नीतीश कब तक उसके चंगुल में रहेंगे। इसलिए तेजस्वी यादव राजद की परम्परा के अनुरूप ही खुल कर कार्य कर रहे थे। बेमेल गठबंधन की पिछली सरकार में तो विसंगति दिखाई देने में कुछ समय लगा था लेकिन दूसरी बार नीतीश तेजस्वी सरकार की शुरुआत ही विसंगति से हुई थी। राजद ने अपरोक्ष रूप में नीतीश कुमार को औकात बता दी थी यह संदेश दिया गया था कि उन्हें राजद के हिसाब से ही सरकार चलानी होगी। नीतीश ने भी इस संदेश को शिरोधार्य कर लिया था। नीतीश को शुरुआत में ही बता दिया था कि राजद कोटे के मंत्रियों पर लगे आरोपों पर वह मौन रहेंगे। नए कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह को लेकर विवाद शुरू हो गया था। इस पर नीतीश कुमार पूरी तरह लाचार दिखाई दिए थे। तब नीतीश ने कहा कि विवादित या आरोपी मंत्रियों पर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव निर्णय लेंगे। बार बार पाला बदलने के बाद नीतीश कुमार में नैतिक साहस नहीं बचा था। उन्होंने मान लिया था कि राजद कोटे के सभी मंत्रियों के लिए तेजस्वी ही अघोषित मुख्यमंत्री है। नीतीश केवल अपनी कुर्सी और अपनी पार्टी के मंत्रियों के क्रियाकलाप देखेंगे। इसलिए नीतीश कुमार ने कहा कि कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह पर लगे आरोपों के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं थी जबकि उनके खिलाफ अपहरण के एक मामले मंे कोर्ट ने वारंट जारी किया था। यह अकेला मामला नहीं था। नितीश सरकार में आधा दर्जन से ज्यादा क्रिमिनल और हिस्ट्रीशीटर शामिल थे।
वैसे राजद की समस्या यह थी कि वह अच्छी छवि वाले विधायक लाए भी कहाँ से। इस पार्टी में ऐसे लोगों का ही वर्चस्व है। लालू यादव ने कभी सिद्धांतो की राजनीति नहीं की। नीतीश का यह कहना गलत था कि उन्हें आरोपी मंत्रियों की जानकारी नहीं है। नीतीश पूरी राजद को जानते हैं। पहले वह इन सभी का कच्चा चिट्ठा होने का दावा करते थे। यह लाचारी नीतीश ने कुर्सी के लिए खुद स्वीकार की थी। कार्तिकेय सिंह को अपहरण मामले में सरेंडर करना था, वह सत्ता पक्ष की शोभा बढ़ा रहे थे। बिडम्बना यह कि उन्हें कानून मंत्री बनाया गया था। तब भाजपा ने कहा था कि नीतीश कुमार की मंत्रिपरिषद बेहद भयानक तस्वीर पेश कर रही है। एक व्यक्ति के इस तथ्य को कैसे छिपाया गया कि वह अपहरण के मामले में वांछित है। उसने बिहार के कानून मंत्री के रूप में शपथ ली थी। नीतीश कुमार का राजद के दबाव में झुकना बेहद शर्मनाक था। जाहिर हैं कि कुर्सी के लिए सिद्धांत विहीन आचरण करने वाले नीतीश कुमार ने खुद ही अपनी विश्वसनीयता समाप्त कर ली थी। ये बात अलग है कि तकनीकी आधार पर वह विश्वास मत हासिल करने में सफल रहे थे। राजग में शामिल होना उनके लिए प्रायश्चित की तरह है। (हिफी)