सम-सामयिक

मतदान से मोहभंग क्यों?

 

18वीं लोकसभा के लिए पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों के लिए तथा दूसरे चरण में 26 अप्रैल को देश के 13 राज्यों की 89 लोकसभा सीटों पर मतदान संपन्न हो गया है। दोनों ही चरण का मतदान 2019 की तुलना में कम हुआ है। यह अपने आप में चिंतनीय हो जाता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिकों द्वारा मताधिकार का उपयोग नहीं करना अपने आप में गंभीर चेतावनी है।क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था से इस देश की करीब आधी आबादी का मोहभंग तो नहीं हो गया है? मतदान के प्रति इतनी अरूचि की वजह क्या है?

दरअसल मतदाता दो विचार धारा के आमने सामने खड़ा है। एक विचार सबका साथ सबका विकास का पक्षधर है जबकि दूसरी विचार धारा साम्यवाद वर्ग विशेष के तुष्टिकरण को स्वीकार करती है। एक पक्ष कहता है कि आप का एक वोट देश से आतंकवाद के सफाए की मुहिम को बल दे सकता है आपका एक वोट समान नागरिकता कानून को मूर्त रूप दे सकता है यह तय करेगा कि देश शरियत से चलेगा या संविधान से चलेगा। यह तय करेगा कि स्कूल जाती बेटियों को सुरक्षित वातावरण कौन देगा? यह तय करेगा कि तुष्टिकरण के चलते माफिया और दंगाइयों को सत्तर साल तक मिला संरक्षण खत्म होगा या नहीं? यह तय करेगा कि देश में अराजकता बदअमनी पत्थरबाजी करने वालों पर नियंत्रण किया जाएगा या नहीं? यह तय करेगा कि देश की सीमाओं की सुरक्षा होगी या नहीं? यह तय करेगा कि भारत की ओर आंख उठा कर देखने वालों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने वाला नेतृत्व मिलेगा या नहीं।

गौर तलब है कि एक ओर हम निर्वाचित सरकार से तमाम तरह की अपेक्षाएं रखते हैं और रखनी भी चाहिए, वही हम अपनी सरकार चुनने के लिए घर से मतदान करने के लिए भी निकलने के लिए तैयार नहीं हैं। आखिर इतने गैर जिम्मेवार नागरिक हम कैसे हो सकते हैं? यहां देश की सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी ध्यान देने योग्य है कि जब हम मतदान के दायित्व को पूरा नहीं कर सकते हैं तो फिर चुनी हुई सरकार से सवाल करने या उससे किसी तरह की अपेक्षा रखने का हक भी हमें नहीं होना चाहिए। एक एनजीओ द्वारा दायर पीएल को इसी टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया गया था। वैसे भी हमारा दायित्व हो जाता है कि लोकतंत्र के इस महापर्व में हम समय निकाल कर अपने मताधिकार का प्रयोग करें। पांच साल में एक बार सरकार चुनने के लिए मिलने वाले अवसर को नकारात्मक सोच या गैर जिम्मेदारी से खो देना किसी भी हालात में उचित नहीं माना जा सकता। लोकतंत्र के महायज्ञ में प्रत्येक मतदाता को अपने मताधिकार का उपयोग कर मतदान करके अपनी आहुति देने का अवसर मिलता है। ऐसे में मतदान का वहिष्कार या फिर लापरवाही के कारण मतदान नहीं करना किसी अपराध से कम नहीं है। नोटा के प्रावधान को लेकर पक्ष-विपक्ष में अनेक तर्क दिए जा सकते हैं पर समय आ गया है कि उस पर भी विचार हो और उसको अधिक प्रभावी या कारगर बनाने के प्रावधान किये जायंे।

सजग व जिम्मेदार नागरिक के रूप में प्रत्येक मतदाता का दायित्व हो जाता है कि वह अपने मताधिकार का प्रयोग करे। निर्वाचन आयोग ने काफी हद तक मतदान को सुविधाजनक भी बना दिया है। बुजुर्ग व दिव्यांग मतदाताओं को घर बैठे मतदान का अवसर प्रदान कर दिया गया, वहीं मतदाताओं के लिए जागरुकता अभियान से लेकर निष्पक्ष चुनाव के लिए कारगर कदम उठाये जाने लगे हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने चुनाव, तिथियों की घोषणा करते समय साफ कर दिया कि आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने को प्रतिवद्ध है और उसकी सूक्ष्म निगरानी की जा रही है।

अब भारत में भी नोटा का अधिकार मौजूद है हालांकि अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में नोटा के प्रावधान को हटाया जा चुका है। यूं कहे कि कई देशों में नोटा के प्रावधानों को कारगर नहीं पाने के कारण हटाया गया है। अमेरिका में नोटा का प्रावधान रहा है पर 2000 आते-आते उसे हटा दिया गया जबकि रूस ने 2006 और पाकिस्तान में 2013 में नोटा को हटाया जा चुका है। देश के प्रबुद्ध नागरिकों, बुद्धिजीवियों, राजनीतिक विश्लेषकों, कानूनविदों के बीच नोटा को लेकर गंभीर वहस छेड़नी होगी जिससे नोटा को चुनावों में हथियार के रूप में उपयोग किया जा सके। आज की तारीख में बात करें तो नोटा केवल और केवल आपके विरोध को दर्ज कराने तक ही सीमित माना जा सकता है।
मौजूदा दोनों चरण के मतदान के दौरान देश के कई हिस्सों में कई मतदान केन्द्रों पर मतदान का बहिष्कार की इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़कर इस बार चुनाव काफी शांति पूर्ण तरीके से व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न हो रहा है।।पश्चिमी बंगाल और कुछ अशांत अन्य क्षेत्रों में चुनाव आयोग ने केंद्रीय बल की बड़ी तादाद में तैनाती की है जिसके परिणाम स्वरूप अपेक्षाकृत बेहतर ढंग से सम्पन्न हो रहा है।

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की व्यवस्था बनाए रखने के लिए नागरिकों का भी फर्ज है। देश भर में आम चुनाव के लिए मतदान केन्द्र कुछ ही दूरी पर बनाए जाते है ताकि अपनी सुविधा के अनुसार मतदाता मतदान कर सके। इन दिनों गर्मी का मौसम और शादी विवाह का सीज होने के वावजूद हमें समय निकाल कर मतदान तो करना ही चाहिए। एक दूसरी बात और जिस पर गंभीर चिंतन की आवश्यघ्कता है। आजादी के 75 साल बाद और दुनिया की सबसे बेहतरीन चुनाव व्यवस्था के वावजूद मतदान प्रतिशत होना यह जाहिर करता है कि आधे नागरिक मतदान करने को ही गैरजरूरी मान बैठे हैं। यह उदासीन मानसिकता बेहद खतरनाक संकेत है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के भविष्य को चुनौती है।

लोकतंत्र की व्यवस्था यह सुनिश्चित करती कि देश का हर एक नागरिक सत्ता की बागडोर को सौंपने की प्रकिया में भागीदारी करे। देश में भाषा क्षेत्र जाति धर्म वर्ण के आधार पर किसी को मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। कोई भी किसी को मतदान के अधिकार से जोर जबरदस्ती या अन्य कारण से नहीं रोक सकता है। हमारी व्यवस्था को सारी दुनिया द्वारा सराहा जाता है। इस सबके बावजूद मतदान का प्रतिशत कम होना गंभीर है। ऐसे में मतदान का वहिष्कार या मतदान नहीं करना जिम्मेदार मतदाता का काम नहीं हो सकता। पांच साल में एक वार आने वाले इस अवसर का उपयोग सकारात्मक सोच व उपलव्ध विकल्पों के आधार पर ही बेहतर तरीके से किया जा सकता है। भारतीय चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव करा सकता है। इसलिए मतदान को अपन कर्तव्य समझ कर घर से वाहर निकलें और मताधिकार का उपयोग अवश्य करें। ताकि यह आजादी जिसके लिए अनगिनत पूर्वजों ने बलिदान दिया तब गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजादी हासिल की है। इसके महत्व को समझना होगा और मतदान पर्व को पर्व की तरह ही मनाना होगा। ताकि लोकतंत्र जीवित रहे। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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