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गाल नहीं बढ़ाता, अब ईंट से ईंट बजाता है भारत : एस. जयशंकर

नई दिल्ली। भारत अब थप्पड़ खाकर किसी के आगे अपना दूसरा गाल नहीं बढ़ाएगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, श्भारत पिछले 10 वर्षों में बदल चुका है और अब यह ईंट का जवाब पत्थर से देने की नीति पर बढ़ चला है। उन्होंने आतंकवाद पर अपना विचार खुलकर रखते हुए कहा कि भारत को इसका सामना पहले दिन से ही करना पड़ा है।
विदेश मंत्री ने कहा कि, दुनिया में पिछले 80 सालों में आतंकवाद को जिस तीव्रता और लंबे समय तक हमने सहा है, शायद किसी और देश ने सहा हो। यह मत समझिए कि आतंकवाद कल शुरू हुआ या सिर्फ कश्मीर या पंजाब की बात है। ये तो आजादी के साथ ही शुरू हुआ था, जब तथाकथित कबायली पाकिस्तान से आए थे। ये लोग जिन्होंने बाद में ये सब चलाया, उन्होंने अपने संस्मरणों में इसे गौरवपूर्ण उपलब्धि बताई है।
जयशंकर ने कहा कि मुंबई पर खौफनाक आतंकी हमले से पहले तो लोग आंतवकाद को लेकर उलझन में थे। उन्होंने कहा, श्मुझे लगता है कि आज इस देश में जो बदला है, खासकर मुंबई 26/11 मेरे लिए एक टर्निंग पॉइंट था। 26ध्11 के नंगे सच, उसके खौफनाक प्रभाव को देखने से पहले बहुत लोग भ्रम में थे।
उन्होंने कहा कि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी बढ़ा दो की नीति अब नहीं चलने वाली। विदेश मंत्री बोले, श्अब हमें सबसे पहले उसका जवाब देना चाहिए क्योंकि कुछ लोग कहते हैं कि थप्पड़ लगने पर हमारी श्दूसरा गाल बढ़ानेश् की रणनीति बहुत शानदार थी। मुझे नहीं लगता कि यह देश का मिजाज है। मुझे नहीं लगता कि यह समझदारी है। अगर कोई सीमा पार आतंकवाद कर रहा है तो जवाब देना ही होगा, उससे निपटने के लिए पैसे खर्च करने ही होंगे।
जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद से लड़ने के लिए तीन मोर्चों पर काम होना चाहिए जो हो भी रहा है। उन्होंने कहा, श्पहली महत्वपूर्ण बात है कि हम खुद ऐसी क्षमता, मानसिकता और इच्छाशक्ति कैसे विकसित करें। और पिछले एक दशक में आप ये बदलाव देख सकते हैं। दूसरा, आतंकवाद को नाजायज ठहराना होगा। बाकी दुनिया को नहीं सोचना चाहिए कि ये भारत-पाकिस्तान का कोई पुराना झगड़ा है। हमें ये स्पष्ट करना होगा कि आतंकवाद देशों के बीच वैध प्रतिस्पर्धा से बाहर है। हां, देश आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे, लेकिन कुछ नियम तो हैं। कोई उन नियमों को नहीं तोड़ सकता। इसलिए कूटनीति, राजनीति, कानून, सुरक्षा सभी इसमें शामिल हैं। उदाहरण के लिए गृह मंत्री जी श्नो मनी फॉर टेररश् के लिए बहुत काम कर रहे हैं। आखिरकार, आतंक को पैसों से ही बढ़ावा मिलता है। उन्होंने आगे कहा, श्तीसरा, 2030 में क्या होगा? एहसास होगा कि उनका ही नुकसान होता है, जैसे पड़ोसी देश में हो रहा है।
उन्होंने इन ताकतों को पाला, वही ताकतें अब उनके पीछे पड़ रही हैं। तो विकास में मिसाल बनने की तरह, विनाश में भी मिसाल बन सकते हैं। दुनिया यह देखेगी कि जो देश आतंक को पोषित करता है, वही खुद उसका शिकार हो जाता है। मुझे उम्मीद है कि 2030 तक ये चीजें मिलकर दुनिया में बदलाव लाएंगी।

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