अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

अज्ञान से उत्पन्न होता तमोगुण

गीता-माधुर्य-27

 

गीता-माधुर्य-27
योगेश्वर कृष्ण ने अपने सखा गांडीवधारी अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में जब मोहग्रस्त देखा, तब कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का गूढ़ वर्णन करके अर्जुन को बताया कि कर्म करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, फल तुम्हारे अधीन है ही नहीं। जीवन की जटिल समस्याओं का ही समाधान करना गीता का उद्देश्य रहा है। स्वामी रामसुखदास ने गीता के माधुर्य को चखा तो उन्हें लगा कि इसका स्वाद जन-जन को मिलना चाहिए। स्वामी रामसुखदास के गीता-माधुर्य को हिफी फीचर (हिफी) कोटि-कोटि पाठकों तक पहुंचाना चाहता है। इसका क्रमशः प्रकाशन हम कर रहे हैं।
-प्रधान सम्पादक

।। ऊँ श्रीपरमात्मने नमः ।।
चैदहवाँ अध्याय
भगवान् बोले- जिसको जानकर सब-के-सब मननशील मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो गये हैं, सम्पूर्ण ज्ञानों में उस उत्तम और परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा।। 1।।
उस ज्ञान की और क्या महिमा है भगवन् ?
उस ज्ञान का आश्रय लेकर जो मनुष्य मेरी सधर्मता को प्राप्त हो गये हैं अर्थात् मेरे समान हो गये हैं, वे महासर्ग में भी पैदा नहीं होते और महाप्रलय में भी व्यथित नहीं होते।। 2।।
महासर्ग में प्राणी कैसे पैदा होते हैं?
हे भारत! मेरी मूल प्रकृति तो उत्पत्ति स्थान है और मैं उसमें जीव (चेतन)-रूप गर्भ-स्थापन करता हूँ, जिससे सम्पूर्ण प्राणी पैदा होते हैं। अतः हे कौन्तेय! अलग-अलग योनियों में जितने भी प्राणी पैदा होते हैं, उन सबकी उत्पत्ति में माता के स्थान पर मेरी मूल प्रकृति है और बीज स्थापन करनेमें पिता के स्थान पर मैं हूँ’।। 3-4।।
आप सब जीवों के पिता हैं तो फिर वे जीव बन्धन में क्यों पड़ जाते हैं?
हे महाबाहो ! सत्त्व, रज और तम ये तीनों गुण पैदा तो प्रकृति से होते हैं, पर इनका संग करने से ये अविनाशी देही को देह में बाँध देते हैं।। 5।।
सत्त्वगुण का क्या स्वरूप है और वह देही को देह में कैसे
बाँधता है भगवन्?
हे निष्पाप अर्जुन ! उन तीनों गुणों में सत्त्वगुण स्वरूप से तो निर्मल होने के कारण प्रकाशक और निर्विकार है, पर वह सुख और ज्ञान की आसक्ति से देही को देह में बाँध देता है।। 6।।
रजोगुण का क्या स्वरूप है और वह देही को कैसे बाँधता है?
हे कुन्तीनन्दन ! तृष्णा और आसक्ति को पैदा करने वाले रजोगुण को तू राग-स्वरूप समझ। वह कर्मों की आसक्ति से देही को देह में बाँधता है।। 7।।
तमोगुण का क्या स्वरूप है और वह देही को कैसे बाँधता है?
हे भरतवंशी अर्जुन ! तमोगुण अज्ञान से उत्पन्न होता है और सम्पूर्ण प्राणियों को मोहित करने वाला है। वह प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा देही को देह में बाँधता है।। 8।।
बाँधने से पहले तीनों गुण क्या करते हैं भगवन्? हे भारत! सत्त्वगुण तो सुख में लगाकर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है, रजोगुण कर्ममें लगाकर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है और तमोगुण ज्ञान को ढककर तथा प्रमाद में लगाकर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है।। 9।।
तीनों गुणों में से एक-एक गुण मनुष्य पर अपना अधिकार कैसे जमाता है भगवन्?
हे भरतवंशी अर्जुन! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण बढ़ता है, सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण बढ़ता है तथा सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ता है।। 10।।
बढ़े हुए सत्त्वगुण के क्या लक्षण होते हैं?
जब इस मनुष्य शरीर में सम्पूर्ण इन्द्रियों और अन्तःकरण में स्वच्छता
और जानने की शक्ति विकसित होती है, तब जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा है।। 11।।
बढ़े हुए रजोगुण के क्या लक्षण होते हैं भगवन्?
हे भरतवंश में श्रेष्ठ अर्जुन! जब अन्तःकरण में धन आदिका लोभ, क्रिया करने की प्रवृत्ति, भोग और संग्रह के उद्देश्य से नये- नये कर्मों का आरम्भ करना, अशान्ति, स्पृहा आदि की वृत्तियाँ बढ़ती हैं, तब जानना चाहिये कि रजोगुण बढ़ा है।। 12।।
बढ़े हुए तमोगुण के क्या लक्षण होते हैं?
हे कुरुनन्दन! इन्द्रियों और अन्तःकरण में स्वच्छता (समझने की शक्ति) नहीं रहती, किसी कार्य को करने का मन नहीं करता, मनुष्य करने लायक काम को नहीं करता तथा न करने लायक काम में लग जाता है, अन्तःकरण में मोह छाया रहता है, तब (ऐसी वृत्तियों के बढ़ने पर) समझना चाहिये कि तमोगुण बढ़ा है।। 13।।
गुणों के तात्कालिक बढ़ने पर यदि कोई मनुष्य मर जाय, तो उसकी क्या गति होती है?
सत्त्वगुण के बढ़ने पर मरने वाला मनुष्य पुण्यात्माओं द्वारा प्राप्त करने योग्य निर्मल (उत्तम) लोकों में जाता है, रजोगुण के बढ़ने पर मरने वाला मनुष्ययोनि में जन्म लेता है और तमोगुण के बढ़ने पर मरने वाला पशु, पक्षी आदि मूढ़योनियों में जन्म लेता है।। 14-15।।
इन गुणों से ऐसी गतियाँ क्यों होती हैं भगवन्?
कारण कि गुणों की वृत्तियाँ जैसी होती हैं, वैसे ही कर्म होते हैं। इसलिये सात्त्विक कर्मका फल निर्मल होता है, राजस कर्म का फल दुःख होता है और तामस कर्म का फल अज्ञान (मूढ़ता) होता है। तात्पर्य है कि जैसे सात्त्विक आदि गुणों की वृत्तियों का फल होता है, ऐसे ही सात्त्विक आदि कर्मों का भी फल होता है।। 16।।
वृत्तियों और कर्मोंके मूलमें क्या है?
तीनों गुण हैं। सत्त्वगुण से ज्ञान पैदा होता है, रजोगुण से लोभ पैदा होता है और तमोगुण से प्रमाद, मोह तथा अज्ञान पैदा होता है।। 17।।
इन तीनों गुणों में स्थित रहने वालों की क्या गति होती है भगवन्?
सत्त्वगुण में स्थित रहने वाले स्वर्गादि ऊँचे लोकों में जाते हैं, रजोगुण में स्थित रहने वालों का मनुष्य लोक में जन्म होता है और निन्दनीय तमोगुण में स्थित रहने वाले नरकों आदि में जाते हैं।। 18।।
तो फिर आपको कौन प्राप्त करता है?
जो मात्र कर्मों के होने में गुणों के सिवाय अन्य को कर्ता नहीं देखता और अपने को गुणों से अतीत अनुभव करता है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त हो जाता है तथा वह विवेकी मनुष्य देह को उत्पन्न करने वाले इन तीनों गुणों का अतिक्रमण करके जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्था रूप दुःखों से मुक्त होकर अमरता का अनुभव करता है। 19-20।। (हिफी) (क्रमशः साभार)

(हिफी डेस्क-हिफी फीचर)

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