लेखक की कलमसम-सामयिक

दागी माननीयों के लिए दुःखद खबर

 

¨ एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 24 लोकसभा सदस्यों पर कुल 43 आपराधिक मामले लंबित थे
¨ 111 विधायकों पर कुल 315 आपराधिक मामले 10 साल या उससे अधिक समय से लंबित थे
¨ अब माननीयों के गंभीर मामलों पर होगी त्वरित सुनवाई

नियम कानून को धता बताने वाले माननीय इस खबर को पढकर दुःखी हो सकते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में प्रदेश की सभी एमपी, एमएलए विशेष अदालतों को फांसी, उम्रकैद व पांच वर्ष से अधिक दंड वाले आपराधिक मामलों को प्राथमिकता के आधार पर जल्द तय करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि हाईकोर्ट या सत्र अदालत से सुनवाई पर रोक है तो माहवारी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया जाए। हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को ऐसे मामले जिनमें ट्रायल पर रोक है, सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है, ताकि सुनवाई कर अवरोध हटाया जा सके।

साथ ही मजिस्ट्रेट की विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ यदि सत्र अदालत में अपील या पुनरीक्षण अर्जी लंबित है तो जल्द सुनवाई कर तय करने का भी निर्देश दिया है। दरअसल हाईकोर्ट को इस तरह का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि कितने ही माननीय गंभीर मामलों में आरोपित होते हुए भी विधानसभा अथवा लोकसभा में पूरा कार्य काल गुजार देते हैं। उनके मामलों की सुनवाई टलती रहती है। अब उनके ऐसे मामलों की सुनवाई प्राथमिकता से की जाएगी। हाईकोर्ट ने जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को सभी एमपी, एमएलए विशेष अदालतों को मुकदमों के त्वरित निस्तारण की तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराने का भी आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि हाईकोर्ट के अनुमोदन की जरूरत हो तो सूचित किया जाए, जिसका हल प्रशासनिक तौर पर किया जा सके। कोर्ट ने महाधिवक्ता व शासकीय अधिवक्ता से इसमें सहयोग मांगा है और याचिका को सुनवाई हेतु 4 जनवरी 2024 को पेश करने का आदेश दिया है। यह आदेश एक्टिंग चीफ जस्टिस एमके गुप्ता और जस्टिस समित गोपाल की डिवीजन बेंच ने दिया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय केस में सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर 2023 को दिए गए आदेश के अनुक्रम में स्वतः कायम जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। कोर्ट इस याचिका के माध्यम से सांसदों विधायकों के खिलाफ विचाराधीन आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालतों की मॉनिटरिंग करेगी। कोर्ट को बताया गया कि इसी मामले में पहले ही एक जनहित याचिका विचाराधीन है, जिसमें समय-समय पर निर्देश जारी किए गए हैं। दोनों याचिकाओं की अब एक साथ सुनवाई होगी।

प्रदेश में सत्र अदालत व मजिस्ट्रेट स्तर की अलग अलग विशेष अदालतें सांसदों विधायकों के मुकदमों की सुनवाई कर रही हैं। वे हर माह प्रगति रिपोर्ट हाईकोर्ट को भेजती हैं, जिसमें उन केसों का जिक्र भी होती है जिनके कारण ट्रायल रूका हुआ हैं। हाईकोर्ट ने मौत, उम्रकैद व पांच साल से अधिक की सजा के आपराधिक मामलों को सुनवाई में वरीयता देने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि अपरिहार्य परिस्थितियों के अलावा सुनवाई अनावश्यक रूप में स्थगित न की जाए। कोर्ट ने जानकारी वेबसाइट पर अपडेट करते रहने का भी आदेश दिया है।

लगभग दो साल पहले की बात है। उस समय हमारे देश के 363 सांसद और विधायक किसी न किसी गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे थे। यदि इन मामलों में उनका दोष साबित हो जाता तो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत वे अयोग्य घोषित किए जा सकते थे। इसमें केंद्र के 33 मंत्री शामिल थे और कुछ राज्यों के मंत्री भी। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही थी। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच ने 2019 से 2021 तक 542 लोकसभा सदस्यों और 1,953 विधायकों के हलफनामों का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला था। ऐसे दागी जनप्रतिनिधियों की संख्या सबसे ज्यादा 83 भारतीय जनता पार्टी में थी। इनके दागी सांसदों/विधायकों की संख्या सबसे अधिक थी। उसके बाद कांग्रेस के 47 और टीएमसी के 25 जनप्रतिनिधि दागी पाये गये थे।

एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया था अर्थात 2,495 सांसदों और विधायकों में से 363 अर्थात लगभग 15 प्रतिशत ने हलफनामे में यह घोषणा की है कि अधिनियम में सूचीबद्ध अपराधों में उनके खिलाफ अदालतों ने आरोप तय किए हैं। ऐसे 296 विधायक और 67 सांसद हैं। मौजूदा 24 लोकसभा सदस्यों पर कुल 43 आपराधिक मामले लंबित हैं। वहीं 111 मौजूदा विधायकों पर कुल 315 आपराधिक मामले 10 साल या उससे अधिक समय से लंबित हैं। बिहार में ऐसे 54 विधायक हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं। इसके बाद केरल के 42 विधायकों पर भी ऐसे ही जघन्य अपराध के मामले चल रहे हैं।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम इनके लिए सुरक्षा कवच बना है। इस अधिनियम की धारा आठ की उप-धाराएं (1), (2) और (3) में कहा गया है कि कि यदि जनप्रतिनिधि को किसी अपराध के लिए किसी भी उपधारा में दोषी ठहराया जाता है दोषी ठहराने की तिथि से उनकी सदस्यता अयोग्य मानी जाएगी। रिहाई के बाद भी वह छह साल चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। धारा 8 (1), (2) और (3) के तहत सूचीबद्ध अपराध प्रकृति में गंभीर और जघन्य माने जाते हैं। हत्या, हत्या के प्रयास, डकैती आदि समेत गंभीर आपराधिक मामले इसमें शामिल है।

माननीयों की अयोग्यता किसी भी कारण से हो उस पर संविधान के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और कई विधायकों की अयोग्यता पर फैसले में स्पीकर राहुल नार्वेकर की ओर से हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी जताने को लेकर पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे ने हमला किया। इस पर राहुल नार्वेकर ने पलटवार किया। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे के बयान को लेकर कहा, संविधान में जिसे भी भरोसा है वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का आदर करेंगे। हम निर्णय को लेने में देरी नहीं करेंगे। जो भी फैसला वो नियम के आधार पर होगा। देरी का आरोप कोई भी लगा सकता है। मैं इस बेबुनियाद आरोप पर जवाब देना उचित नहीं समझता। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड, जस्टिस जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की पीठ ने कहा कि (अयोग्य ठहराये जाने की) कार्यवाही महज दिखावा नहीं होनी चाहिए और और वह (स्पीकर) कोर्ट आदेश को विफल नहीं कर सकते हैं।
शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘उनसे (विधानसभा अध्यक्ष) उम्मीद की जाती है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम करेंगे। उन्हें एक विशिष्ट समय सीमा में काम करना होगा और न्याय देना होगा। न्याय में देरी न्याय न मिलने के बराबर है।’ उन्होंने कहा कि हम कार्यवाही देखेंगे तो पता लगेगा कि अब वो स्पीकर नहीं रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अब दागी माननीयों के लिए गाइड लाइन हाईकोर्ट के माध्यम से तैयार की है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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