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पारिजात व बलिया का अमर पीपल

 

हमारी दुनिया आश्चर्य से भरी है तो इसमंे भारत की धरोहरें ज्यादा हैं। भगवान परशुराम की जन्मस्थली बलिया जिले के खैराडीह गांव मंे पीपल का एक पेड़ है जो विश्वविख्यात है। इसके बारे में कहा जाता है कि प्रकृति का प्रकोप भी इस तरुवर को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचा पाया है। कई बार प्राकृतिक आपदाएं आयीं लेकिन यह पीपल का पेड़ टस से मस नहीं हुआ। इसी प्रकार यूपी के बाराबंकी मंे पारिजात का विशाल वृक्ष है। इस पेड़ के तने की परिधि लगभग 50 फीट बतायी जाती है। लोगों को कहना है कि इसकी शाखाएं कभी टूटती या सूखती नहीं हैं बल्कि मूल वूक्ष मंे ही विलीन हो जाती हैं। पारिजात अर्थात् कल्प वृक्ष को स्वर्ग का पेड़ कहा जाता है जो सभी इच्छाओं की पूर्ति की क्षमता रखता है।

धरती पर लाखों प्रकार के पेड़-पौधे हैं। लेकिन भारत में एक पीपल की ख्याति देश-दुनिया में फैली हुई है। हम बात कर रहे हैं खैरा पीपल की, एक से एक विषम परिस्थितियां आईं, लेकिन इस पेड़ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। कहा जाता है कि ‘चक डोले चक बंबक डोले खैरा पीपल कभी न डोले’। यह पेड़ न केवल प्राचीन है, बल्कि ऐतिहासिक भी है। इस पीपल के पेड़ पर पुरातत्व विभाग भी सर्वे कर चुका है। जिले के सरहद से सटे सरयू नदी के तट पर स्थित खैराडीह का एक अपना अलग ही इतिहास है। यह धरती ऋषि परशुराम की जन्मस्थली रही है। खैराड़ीह ने गांव तीन बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपना अस्तित्व तो खो दिया। लेकिन पीपल का पेड़ आज भी विद्यमान है। इतिहासकार डॉ। शिवकुमार सिंह कोशिकेय बताते हैं कि यह खैर पीपल वास्तव में ऐतिहासिक है। कई बार प्राकृतिक आपदा भी आई। लेकिन यह खैर पीपल टस से मस नहीं हुआ। इसका वर्णन गजेटियर में भी आता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. के.के. सिन्हा के नेतृत्व में हुए पुरातात्विक सर्वे में यहां से ढेर सारे पुरावशेष पाए गए, जो विभिन्न कालखंडों के थे। इतिहासकार बताते हैं कि वास्तव में यह खैरा पीपल ऐतिहासिक है और 1981 ईस्वी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो। के।के सिन्हा के नेतृत्व में यहां पुरातात्विक सर्वे हुआ। आंशिक रूप से खुदाई भी हुई। यहां विभिन्न प्रकार के पुरावशेष पाए गए, जो विभिन्न कालखंडो के थे। जिसमें कुषाण कालीन, बौद्ध कालीन और पौराणिक कालीन अवशेष पाए गए थे। जिसमें से कुछ अवशेष अभी भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संग्रहालय में रखे गए हैं। बाकी कुछ अवशेष सरयू नदी के कटान में बह गए और कुछ चोरी हो गए। माना जाता है कि जब पानी खैर पीपल के जड़ों से टकराती है, तो इसकी जड़े उस पानी को डाइवर्ट करती हैं। जहां बाढ़ के विभीषिका में बड़े-बड़े गांव बह जाते हैं तो वहीं यह पीपल का पेड़ एक बड़ी लगभग 25,000 की आबादी को सैकड़ों वर्षों से बचा रहा है। इसी ऐतिहासिक धरा पर महाभारत काल के वीर योद्धा भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शास्त्र की शिक्षा देने वाले गुरु महर्षि जमदग्नि के पुत्र ऋषि परशुराम के जन्म होने की कथा का भी उल्लेख मिलता है।
परिजात एक प्रकार का कल्पवृक्ष है, कहा जाता है कि यह केवल स्वर्ग में होता है और जो कोई इस पेड़ के नीचे मनोकामना करता है, वह जरूर पूरी होती है। धार्मिक और प्राचीन साहित्य में, हमें कल्पवृक्ष के कई संदर्भ मिलते हैं, लेकिन केवल किन्तुर (बाराबंकी) को छोड़कर इसके अस्तित्व के प्रमाण का विवरण विश्व में कहीं और नहीं मिलता।

जनपद बाराबंकी मंे कल्प वृक्ष अर्थात् पारिजात है। पांडव की मां कुंती के नाम पर रखा गया, किन्तूर गांव, जिला मुख्यालय बाराबंकी से लगभग 38 किलोमीटर पूर्वी दिशा में है। इस जगह के आसपास प्राचीन मंदिर और उनके अवशेष हैं। यहां कुंती द्वारा स्थापित मंदिर के पास, एक विशेष पेड़ है जिसे ‘परिजात’ कहा जाता है। इस पेड़ के बारे में कई बातें प्रचलित हैं जिनको जनता की स्वीकृति प्राप्त है। जिनमें से यह है, कि अर्जुन इस पेड़ को स्वर्ग से लाये थे और कुंती इसके फूलों से शिवजी का अभिषेक करती थी। दूसरी बात यह है, कि भगवान कृष्ण अपनी प्यारी रानी सत्यभामा के लिए इस वृक्ष को लाये थे। ऐतिहासिक रूप से, यद्यपि इन बातों को कोई माने या न माने, लेकिन यह सत्य है कि यह वृक्ष एक बहुत प्राचीन पृष्ठभूमि से है। परिजात के बारे में हरिवंश पुराण में निम्नलिखित कहा गया है। परिजात एक प्रकार का कल्पवृक्ष है, कहा जाता है कि यह केवल स्वर्ग में होता है। जो कोई इस पेड़ के नीचे मनोकामना करता है, वह जरूर पूरी होती है। धार्मिक और प्राचीन साहित्य में, हमें कल्पवृक्ष के कई संदर्भ मिलते हैं, लेकिन केवल किन्तुर (बाराबंकी) को छोड़कर इसके अस्तित्व के प्रमाण का विवरण विश्व में कहीं और नहीं मिलता। जिससे किन्तूर के इस अनोखे परिजात वृक्ष का विश्व में विशेष स्थान है। वनस्पति विज्ञान के संदर्भ में, परिजात को ‘ऐडानसोनिया डिजिटाटा’ के नाम से जाना जाता है, तथा इसे एक विशेष श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि यह अपने फल या उसके बीज का उत्पादन नहीं करता है, और न ही इसकी शाखा की कलम से एक दूसरा परिजात वृक्ष पुनः उत्पन्न किया जा सकता है। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यह एक यूनिसेक्स पुरुष वृक्ष है, और ऐसा कोई पेड़ और कहीं नहीं मिला है।

निचले हिस्से में इस वृक्ष की पत्तियां, हाथ की उंगलियों की तरह पांच युक्तियां वाली हैं, जबकि वृक्ष के ऊपरी हिस्से पर यह सात युक्तियां वाली होती हैं। इसका फूल बहुत खूबसूरत और सफेद रंग का होता है और सूखने पर सोने के रंग का हो जाता है। इसके फूल में पांच पंखुड़ी हैं। इस पेड़ पर बेहद कम बार बहुत कम संख्या में फूल खिलता है, लेकिन जब यह होता है, वह ‘गंगा दशहरा’ के बाद ही होता है, इसकी सुगंध दूर-दूर तक फैलती है। इस पेड़ की आयु 1000 से 5000 वर्ष तक की मानी जाती है। इस पेड़ के तने की परिधि लगभग 50 फीट और ऊंचाई लगभग 45 फीट है। एक और लोकप्रिय बात जो प्रचलित है कि, इसकी शाखाएं टूटती या सूखती नहीं, किंतु वह मूल तने में सिकुड़ती है और गायब हो जाती हैं। आसपास के लोग इसे अपना संरक्षक और इसका ऋणी मानते हैं, अतः वे इसकी पत्तियों और फूलों की रक्षा हर कीमत पर करते हैं। स्थानीय लोग इसे बहुत उच्च सम्मान देते हैं, इस के अलावा बड़ी संख्या में पर्यटक इस अद्वितीय वृक्ष को देखने के लिए आते हैं। (हिफी)

(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)

 

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