राजनीति

महाराष्ट्र: बोया पेड़ बबूल का…

 

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से दक्षिण भारत में पार्टी की स्थिति मजबूत करने की अपेक्षा की जाती थी लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं दिख रहा है। पहली बात तो यही कि राष्ट्रीय अध्यक्ष होते हुए भी श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी का चेहरा ही पार्टी को चला रहा है। सोनिया गांधी अस्वस्थ रहती हैं तो राहुल गांधी राजनीति में अब तक अपरिपक्व ही हैं। हाल ही में शक्ति वाला बयान इसका ज्वलंत उदाहरण है। हम बात दक्षिण भारत के राज्य महाराष्ट्र की करंे तो यहां भी कांग्रेस ने सरकार बनाकर भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी का बहुत अच्छा अवसर पाया था लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी वीर सावरकर का मामला उठाकर शिवसेना को चिढ़ाते रहे। आज उसी का नतीजा है कि विभाजित शिवसेना और राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी की रणनीति को विफल कर रही है। कांग्रेस ने महाराष्ट्र में प्रकाश आम्बेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अधाड़ी को महागठबंधन में साथ लेने की कोशिश की थी क्योंकि इसी पार्टी के चलते 2019 में कांग्रेस लगभग आधा दर्जन सीटें हार गयी थी। वंचित बहुजन अधाड़ी को 14 फीसदी वोट मिले थे। इस प्रकार कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिलने के आसार दिखाई पड़ रहे थे लेकिन कांग्रेस के संजय निरूपम जैसे नेता शिवसेना के खिलाफ जहर उगल रहे थे। पार्टी ने उनके खिलाफ एक्शन लिया तो संजय निरूपम ने पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाये कि पार्टी में पांच पावर सेंटर बन गये हैं। कांग्रेस वैचारिक रूप से बिखर गयी है। प्रकाश आम्बेडकर के खिलाफ भी कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारा। इसलिए महाराष्ट्र में कांग्रेस को चुनाव में संकट का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि कमजोर तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार भी दिख रहे हैं।

महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को एक उम्मीद की किरण दिख रही थी। बीते 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में एक नया गठबंधन महाविकास अघाड़ी बना था। उस गठबंधन के नेतृत्व में राज्य में सरकार बनी थीं, हालांकि शिवसेना में दो फाड़ होने की वजह से यह सरकार गिर गई। बाद में एनसीपी भी दो फाड़ हो गई। इसके बावजूद कांग्रेस राज्य में इस गठबंधन को मजबूती देने के लिए इसमें वंचित बहुजन अघाड़ी को शामिल करने पर जोर दे रही थी। बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में वंचित अघाड़ी ने अकेले चुनाव लड़ा था और उसे 14 फीसदी वोट मिले थे। ये वोट इतने थे कि करीब एक दर्जन सीटों के नतीजे बदल सकते थे। इसी मकसद से 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने वंचित अघाड़ी से गठबंधन की भरपूर कोशिश की, लेकिन अंततः इसमें सफलता नहीं मिली। 2019 की तरह इस लोकसभा चुनाव में भी वंचित बहुजन अघाड़ी ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो वंचित के फैसले से कांग्रेस गठबंधन को करीब सात सीटों पर झटका लग सकता है। बीते लोकसभा चुनाव में वंचित के 15 उम्मीदवारों को नब्बे हजार से तीन लाख तक वोट मिले थे। वहीं सात सीटों पर वंचित के प्रत्याशियों ने कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशियों को हरवाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस बार महाविकास अघाड़ी ने वंचित बहुजन अघाड़ी को भी साथ लेने की कोशिश की, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। 2019 में प्रकाश अंबेडकर और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने वंचित बहुजन अघाड़ी बनाया था। सांसद इम्तियाज जलील एआईएमआईएम के टिकट पर छत्रपति संभाजीनगर लोकसभा क्षेत्र से विजयी हुए थे।
ध्यान रहे पिछली बार बुलढाणा से राकांपा प्रत्याशी डॉ. राजेंद्र शिंगणे 1,33,287 वोटों से हार गए थे। वंचित के बलिराम सिरस्कर को इस सीट पर 172667 वोट मिले थे।

चिमूर की गढ़चिरौली सीट पर कांग्रेस के नामदेव उसेंडी 77,526 वोटों से हार गए। वंचित के रमेश गजबे को एक लाख 11 हजार वोट मिले। सांगली में कांग्रेस उम्मीदवार विशाल पाटिल 1,64,352 वोटों से हार गए। वंचित के गोपीचंद पडलकर को 3 लाख 234 वोट मिले। परभणी में प्रमुख उम्मीदवार राजेश व्हाइटकर 42,199 वोटों से हारे, जबकि वंचित के आलमगीर को 1,49,946 वोट मिले। हटकनंगले से स्वाभिमानी के राजू शेट्टी 96 हजार 39 वोटों से हारे, जबकि वंचित के असलम सैयद को 1 लाख 23 हजार 419 वोट मिले। सोलापुर से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे 158608 वोटों से हार गए। वंचित के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर को एक लाख 70 हजार वोट मिले। इस प्रकार वंचित पार्टी ने कांग्रेस और एनसीसी का खेल बिगाड़ा था।
कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद संजय निरुपम ने कहा है कि एक खिचड़ी चोर को टिकट दिया गया, उसको हम मदद नहीं कर सकते हैं। मैंने रात में मल्लिकार्जुन खरगे को इस्तीफा भेज दिया था। कांग्रेस संगठन को तौर पर बिखरी हुई पार्टी है। इस समय कांग्रेस पार्टी में 5 पावर सेंटर है। संजय निरुपम ने आरोप लगाया कि, खरगे के पास ऐसे ऐस लोग हैं जिनका कोई जनाधार नहीं है। कांग्रेस का संगठन लगातार गर्त में जा रहा है। मैने बहुत दिन तक धीरज रखा लेकिन आखिरकार धीरज टूट गया। अयोघ्या में रामलला का विरोध हो रहा था। संजय निरुपम ने राम मंदिर को लेकर कहा, रामलला विराजमान का जो एक कार्यक्रम था, उसके उद्घाटन के लिए कई लोगों को बुलाया गया था। सभी सरकार से सहमत थे ऐसा नहीं था लेकिन सभी ने बहुत ही प्यार से कहा कि आपकी चिट्ठी मिली उसके लिए धन्यवाद आज हमें फुर्सत नहीं है बाद में हम कभी आ जाएंगे लेकिन किसी ने अभी उस पूरे आयोजन और उत्सव के ऊपर सवाल नहीं उठाया। सिर्फ कांग्रेस पार्टी की चिट्ठी है जो कहती है कि नहीं ये भारतीय जनता पार्टी का प्रचार है और उस आधार पर उन्होंने राम के अस्तित्व के ऊपर सवाल उठाए।

शिवसेना-यूबीटी ने सांगली सीट को लेकर यह साफ कर दिया है कि वह यहां फ्रेंडली फाइट के मूड में नहीं हैं। उद्धव ठाकरे गुट ने महाविकास अघाड़ी के तहत पहले ही इस सीट पर प्रत्याशी उतार दिए हैं जिसको लेकर कांग्रेस भी अड़ी हुई है। उद्धव ठाकरे ने कहा, फ्रेंडली फाइट जैसी कोई बात नहीं होती है। या तो फ्रेंडशिप करें या फाइट।

महाराष्ट्र की अकोला लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस ने उम्मीदवार की घोषणा की है। पार्टी ने अभय काशीनाथ पाटिल को टिकट दिया है। वहीं
दूसरी तरफ इस सीट से वंजित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर चुनावी मैदान में हैं। प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस को विदर्भ की सीटों पर समर्थन की बात कही थी, बदले में अकोला में समर्थन मांगा था। अकोला सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के संजय शामराव धोत्रे यहां से सांसद चुने गए। इस प्रकार महाराष्ट्र मंे कांग्रेस अच्छे नतीजों की उम्मीद किस आधार पर कर रही है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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