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क्यों अवसाद में हैं आईआईटी के मेधावी

अपने उच्चतम तकनीकी शैक्षिक स्तर के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय प्रोधोगिकी संस्थान (आईआईटी) में छात्र छात्राओं की आत्महत्या का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। अब एम टैक की छात्रा ममिता नायक ने 7 अगस्त को मौत को गले लगा लिया है।
देश के लिए बेहतरीन इंजीनियर तैयार करने वाले इन संस्थानों में हर वर्ष प्रवेश के लिए जेईई मेन व एडवांस्ड की परीक्षा आयोजित की जाती है जिसके लिए कईलाख की संख्या में अभ्यर्थी आवेदन करते हैं, लेकिन मात्र 2 से 3 हजार स्टूडेंट्स का सलेक्शन हो पाता है। आईआईटी अपने प्रवेश प्रक्रिया, अकादमिक माहौल, प्लेसमेंट, रिसर्च आदि के लिए विशेष दर्जा रखती है। लेकिन अब हर साल आईआईटी छात्रों की सुसाइड को लेकर भी चर्चा में रहता है। इसको लेकर समय-समय पर विशेषज्ञों की कमेटी की तरफ से कई तरह के सुझाव भी दिए जाते हैं लेकिन इस सबके बावजूद आईआईटी के मेघावी छात्रों की आत्महत्या के मामले इन संस्थानों के नीरस व बोझिल माहौल को इंगित करते हैं। उच्च मेघावी छात्र अचानक जीवन के प्रति नैराश्य से भर जाते हैं और अपने मां बाप की उम्मीदों और अपने सपनों को तोड़कर जिंदगी से किनारा कर लेते हैं?।
ताजा घटना भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद में सामने आई है। यहां की एक छात्रा ने कथित मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या कर ली। 21 वर्षीय ममिता नायक 7 अगस्त की रात अपने छात्रावास के कमरे में लटकी हुई पाई गई। ओडिशा की रहने वाली ममिता एम.टेक प्रथम वर्ष की छात्रा थी। पुलिस को कथित तौर पर उसके कमरे से एक सुसाइड लेटर मिला है जिसमें उसने लिखा है कि उसकी आत्महत्या के लिए कोई जिम्मेदार नहीं। ओडिशा की रहने वाली इक्कीस साल की ममिता नायक ने पिछले महीने एम.टेक प्रथम वर्ष में एडमिशन लिया था। ममिता का शव छत के पंखे से लटका हुआ पाया गया, जिसके बाद उसके दोस्तों ने छात्रावास अधिकारियों को सतर्क किया और उन्होंने संगारेड्डी ग्रामीण पुलिस को सूचित किया। पीड़िता का शव पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया।पुलिस को कथित तौर पर उसके कमरे से एक सुसाइड लेटर मिला है जिसमें उसने लिखा है कि उसकी आत्महत्या के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। उसने लिखा कि वह मानसिक तनाव के कारण यह कदम उठा रही है।
रिपोर्ट्स के अनुसार हैदराबाद के पास संगारेड्डी जिले के कांडी में स्थित आईआईटी हैदराबाद में एक महीने से भी कम समय में छात्र द्वारा यह दूसरी आत्महत्या है। इससे पहले 21 वर्षीय कार्तिक ने विशाखापत्तनम में समुद्र में डूबकर आत्महत्या कर ली थी क्योंकि वह अपने बैकलॉग से परेशान हो गया था।बी.टेक (मैकेनिकल) द्वितीय वर्ष के छात्र ने 17 जुलाई को अचानक कॉलेज छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद उसका शव 25 जुलाई को विशाखापत्तनम समुद्र तट पर बरामद किया गया था। नलगोंडा जिले के मिरयालगुडा का रहने वाला छात्र परीक्षाओं में बैकलॉग पास न कर पाने से परेशान था। एक साल में आईआईटी हैदराबाद के चार छात्रों ने आत्महत्या से की है।
विगत वर्ष सितंबर में, राजस्थान की मूल निवासी मेघा कपूर ने आईआईटी हैदराबाद परिसर के पास, संगारेड्डी शहर में एक लॉज से कूदकर जान दे दी थी। उसने तीन महीने पहले आईआईटी से बी.टेक पूरा किया था और एक लॉज में रह रही थी। अगस्त में, आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के नंद्याल के मूल निवासी और एम.टेक द्वितीय वर्ष के छात्र राहुल ने अपने छात्रावास के कमरे में फांसी लगा ली थी।
आपको बता दें कि आईआईटीज में पढ़ने वाले छात्रों की सुसाइड को लेकर एक चैंकाने वाली जानकारी सामने आई है। आईआईटी-एनआईटी में सबसे ज्यादा छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। हाल ही में इस संबंध में शिक्षा मंत्रालय द्वारा एक सवाल के जवाब में राज्यसभा को बताया गया है कि प्रमुख आईआईटी में पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक छात्र आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। 2018 से 2023 के आंकड़ों के मुताबिक भारत के शीर्ष उच्च शिक्षा संस्थानों में आत्महत्या से होने वाली कुल 98 मौतों में से 39 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में हुईं। वहीं, इसके बाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एनआईटी) और केंद्र-वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में 25-25 मौतें हुईं। 2019 से अब तक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में ऐसी 13 अन्य मौतें दर्ज की गईं है। देश की सर्वश्रेष्ठ तकनीकी शिक्षा व रिसर्च के आधार केंद्र इन संस्थानों में छात्रों की इतनी बड़ी संख्या में आत्महत्या की घटनाएं चिंता जनक हैं। सवाल उठता है कि इतनी घटनाओं के बावजूद सरकार इस संबंध में जरूरी कदम उठाने में नाकाम क्यों बनी है? आखिर इस तरह प्रतिभाओं की असमय मौत कितनी कष्टकारी है? यह आत्महत्या की घटनाएं परिवार पर कहर बन कर टूटती हैं। किसी परिवार की जब इकलौती संतान सुसाइड कर लेती है तो उनके सामने जीवन जीने का उद्देश्य ही छिन्न भिन्न हो जाता है। एक बच्चे को आईआईटी संस्थान तक पहुंचाने में मां बाप व परिवार की जिंदगी के कई महत्वपूर्ण साल लग जाते हैं तब कहीं मुश्किल से परवरिश कर एक बच्चे को आईआईटी में प्रवेश का सपना पूरा कराने में सफलता मिलती है और वही बच्चा जब मां-बाप के सपनों को तोड़ कर जिंदगी से हार मान लेता है तो उस पूरे परिवार की स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है।
हमारे प्रौद्योगिकी संस्थानों में छात्र छात्राओं के कोर्स करिकुलम इतनी अधिक है कि उन पर पढ़ाई का बहुत अधिक बोझ बन जाता है। छात्रों में मानसिक तनाव रहता है जिसके चलते बच्चे डिप्रेशन का शिकार बन जाते हैं। हमारा सुझाव है कि इन संस्थानों में छात्र-छात्राओं की समस्याओं को सुलझाने के लिए काउंसलिंग की नियमित व्यवस्था की जाए तथा इन छात्र-छात्राओं के व्यवहार में किसी भी परिवर्तन को रीड करने के लिए अलग से प्रशिक्षित काउंसलर स्टाफ अप्वॉइंट किया जाए जो इन छात्र-छात्राओं की गतिविधि में होने वाले किसी भी असहज परिवर्तन को आकलन कर सके और समय रहते इन छात्रों की काउंसलिंग कर उनकी जिंदगी में प्रोत्साहन उमंग व प्रसन्नता का वातावरण लौटाने की कोशिश की जानी चाहिए। इसके साथ-साथ इन संस्थानों में समुचित मनोरंजन व विचार-विमर्श के लिए संसाधनों का इंतजाम किया जाना चाहिए। साथ ही योग व्यायाम सूर्य नमस्कार आदि अनिवार्य करने चाहिए। सबसे पहले जरूरी यह है कि बच्चों को इंजीनियर बनने से पहले एक अच्छा इंसान बनाने की पहल की जाए ताकि वह जिंदगी में छोटे-मोटे संघर्ष व्यवधान अडचन की कोई भी चुनौती स्वीकार करने का आत्मविश्वास व आत्मक्षमता को विकसित कर सके। हमें लगता है कि हम इंजीनियर तो बना रहे हैं लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बना पा रहे हैं जबकि सबसे पहली जरूरत है एक अच्छा इंसान बनाने की है। यदि हम एक अच्छा इंसान बना देंगे तो वह जिंदगी के
हर मोर्चे पर संघर्ष और चुनौती के लिए खुद को तैयार करने में सफल होगा और इस तरह की वारदातों
से भी काफी हद तक मुक्ति मिलेगी। सरकार को तत्काल इस ओर ध्यान देकर देश की मेघा को संरक्षित करना चाहिए। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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