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अविश्वास अस्त्र का उल्टा असर

 

विपक्षी गठबंधन अपनी एकता प्रदर्शित करने को बेकरार था। इसके लिए उसने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लिया। उसका आकलन था कि इससे उसका नया नाम इंडिया भी चर्चित होगा। इस इंडिया की एकजुटता दिखाई देगी। सरकार पर दबाब बनेगा। जनता में संदेश जाएगा। विपक्षी इंडिया का विकल्प के रूप में विकास होगा लेकिन अविश्वास के इस अस्त्र का उल्टा असर हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपदा को अवसर बनाने में माहिर हैं। इसी तर्ज पर उन्होंने अविश्वास को भी सत्ता पक्ष के लिए अवसर बना दिया। कुछ दिन पहले सत्ता पक्ष ने सरकार के नौ वर्ष पूरे होने पर महा जनसम्पर्क अभियान चलाया था। इसके अंतर्गत नौ वर्ष की उपलब्धियां लोगों तक पहुंचाई गई थी। अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सरकार को लोकसभा में अपनी उपलब्धियों के उल्लेख का अवसर मिला। विपक्ष के समक्ष शांति के साथ इसको सुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अविश्वास प्रस्ताव उसी ने दिया था।
सत्ता पक्ष ने उनके सभी सवालों का जवाब दिया। अपनी उपलब्धियां गिनाकर उनके समक्ष चुनौती भी पेश की क्योंकि इसके जवाब में विपक्ष के पास कहने को कुछ नहीं था। विपक्ष के किसी भी नेता ने यूपीए के दस वर्षों का नाम नहीं लिया। मोदी सरकार उसके मुकाबले बहुत बड़ी लकीर खींच चुकी है। इसी प्रकार मणिपुर के मुद्दे पर भी विपक्ष का मंसूबा पूरा नहीं हुआ।यह संयोग था कि राहुल गांधी की लोकसभा में वापसी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुई। अमेठी के बाद लोकसभा में भी स्मृति ईरानी ने करारा जवाब दिया।पिछली बार भी अविश्वास प्रस्ताव के समय उनकी एक भंगिमा चर्चित हुई थी। इस बार एक दूसरा अंदाज चर्चा में आ गया। बीस से अधिक महिला सांसदों ने इस इशारे की शिकायत लोकसभा अध्यक्ष से की है। क्या होगा यह देखना होगा। विपक्षी गठबंधन में शामिल आप के राज्यसभा सदस्य की शिकायत सभापति के पास है। लोकसभा अध्यक्ष के पास राहुल गांधी की शिकायत है। इन सबके बाद भी दिल्ली सम्बन्धी विधेयक पारित हुआ। अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तो पूर्व निर्धारित था। कुल मिलाकर विपक्षी गठबंधन को निराश होना पड़ा।
इतना अवश्य है कि राहुल गांधी की लोकसभा में वापसी से सत्तापक्ष में उत्साह दिखाई दिया।उन्हें पता था कि राहुल का भाषण सत्तापक्ष को हमले का अवसर प्रदान करेगा। यही हुआ। राहुल गांधी को जवाब देने के लिए स्मृति ईरानी ही पर्याप्त थीं। यह भी सन्योग है कि स्मृति ईरानी से राहुल गांधी को अमेठी में भी परेशानी हुई थी।उनके कारण ही राहुल गांधी को अपनी परम्परागत अमेठी छोड़ कर सुदूर केरल के वायनाड़ जाना पड़ा था। विपक्षी पिछले दस दिन से मणिपुर पर हंगामा कर रहे थे। राहुल इस पर बोले तो मुद्दा ही बदल गया। उन्होंने भारत माता पर ही अनुचित टिप्पणी कर दी। हमारे चिंतन में भारत शाश्वत रचना है। अजर अमर। उसके प्रति ऐसे शब्दों का प्रयोग वर्जित है। राहुल बोलें और अडानी का नाम ना लें यह हो नहीं सकता।इस बार दांव उल्टा पड़ा। स्मृति ईरानी ने कांग्रेस सरकारों,रॉबर्ट वाड्रा और अडानी के बीच के सम्बन्धों का पूरा ब्यौरा पेश कर दिया।
इस तरह राहुल गांधी की विवादित टिप्पणियों से भाजपा का उत्साहित होना स्वाभाविक था। उनकी सदस्यता न्यायिक निर्णय के बाद समाप्त हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बहाल हुई। राहुल गांधी ने मोदी सरनेम पर अमर्यादित भाषण दिया था।कहा था कि सभी मोदी सरनेम वाले चोर क्यों होते हैं। वस्तुतःयह टिप्पणी समाज के एक पूरे समुदाय को अपमानित करने वाली थी। इसमें ऐसे लोग भी होंगे जिनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। उनको भी राहुल ने अपने बयान में घसीट लिया। सामाजिक संदर्भ में भी यह बयान अनुचित था। राहुल गांधी तो स्वय नेशनल हेराल्ड मामले में आरोप का सामना कर रहे हैं। उनके गठबंधन में भी घोटाले के आरोपियों की कमी नहीं हैं।यह ध्यान रखना चाहिए कि जब दूसरे पर उंगली उठाते हैं तो तीन उंगली अपनी तरफ होती हैं। यह आत्मचिंतन का अवसर प्रदान करती हैं। राहुल गांधी चैकीदार चोर का अभियान भी चला चुके हैं। लेकिन चैकीदार चोर है बयान पर उनको सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी थी।राहुल ने अवमानना के मामले में पहले दायर किए गए दो हलफनामों में सिर्फ खेद जताया था। इस पर कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई थी।सुप्रीम कोर्ट राफेल डील के लीक दस्तावेजों को सबूत मानकर मामले की दोबारा सुनवाई के लिए राजी हो गया था। इस पर राहुल ने कहा था कि कोर्ट ने मान लिया कि चैकीदार ही चोर है। इसके बाद भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ अवमानना का केस दायर कर दिया था। इस पर कोर्ट ने राहुल को बिना नोटिस जारी किए ही जवाब मांगा था। राहुल ने पिछले लोकसभा चुनाव में भी चैकीदार चोर को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था। प्रत्येक जनसभा में वह इसका नारा लगवाते थे लेकिन इससे कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा था।
लोकसभा में कांग्रेस अब तक की सबसे कमजोर स्थिति में पहुँच गई थी लेकिन न्यायिक और चुनावी दोनों प्रकार की फजीहत के बाद भी राहुल गांधी ने कोई सबक नहीं लिया। उन्होंने सभी मोदी सर नेम वालों को चोर बताया। इस पर गुजरात में अपील की गई थी। पहले की तरह राहुल के माफी मांगने या अपील करने के विकल्प उनके पास था लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। इसके विपरीत वह इस मसले पर महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर का नाम ले आए। कहा की वह सावरकर नहीं गांधी हैं। दिलचस्प यह कि राहुल पहले माफी मांग चुके हैं। सावरकर की तरह होना सबके लिए सम्भव ही नहीं। उन्होंने देश के लिए अमानवीय यातनाओं को झेला था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी उनके त्याग और राष्ट्रभक्ति की सराहना की थी। उनके ऊपर डाक टिकट का विमोचन किया था। राहुल गांधी को कम से कम इंदिरा गांधी के विचारों को समझना चाहिए था। (हिफी)

(डॉ दिलीप अग्निहोत्री-हिफी फीचर)

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