तीज-त्योहार

शुभ फलप्रदाता माँ कालरात्रि

 

नवदुर्गा के सभी स्वरूपों की क्रमशः आराधना आध्यात्मिक ऊर्जा का संवर्धन करती है। साधक का अंतर्मन आलोकित होता है। जगदम्बा के सभी नौ रूप कल्याणकारी होते हैं। देवी दुर्गा का पंचम स्वरूप अति कल्याणकारी है। इस रूप में मां का सहज स्वभाविक वात्सल्य भाव है.
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दुर्गा पूजा के पांचवें दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है। कुमार कार्तिकेय सनत कुमारएस्कंद कुमार नाम से भी प्रतिष्ठित है। मां का यह रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है। जब आसुरी शक्तियों का प्रकोप बढ़ता है तब माता सिंह पर सवार होकर उनका अंत करती हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। वह अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कंद या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिए बैठी हैं। मां का चैथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे है। देवी स्कंद माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी पुकारा जाता है। पर्वत राज की पुत्री होने से इन्हें पार्वती कहा गया। इनका विवाह शिव जी से हुआ। इस रूप में वह माहेश्वरी है। वह गौर वर्ण की है। इसलिए इन्हें गौरी कहा गया। किसी भी नाम रूप से इनकी आराधना हो सकती है। स्कंदमाता नाम इनको भी प्रिय है.
वंदे वांछित कामार्थे चंद्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कंदमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुद्ध चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
नवरात्र के छठे देवी कात्यायनी की आराधना होती है। वह ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में अवतरित हुई थीं। इसलिए कात्यायनी के नाम से प्रतिष्ठित हुईं।पौराणिक कथाओं के अनुसारए ऋषि कात्यायन ने देवी दुर्गा की कठोर तपस्या की थी। ऋषि की तपस्या से देवी दुर्गा प्रसन्न हुईं और उनके सामने प्रकट होकर दर्शन दिए। देवी ने ऋषि कात्यायन से कहा कि वत्स मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूंएवर मांगों। ऋषि कात्यायन ने मां दुर्गा से कहा आप मेरे घर पुत्री बनकर जन्म लीजिए। देवी यह वरदान दे दिया। इसके बाद देवी ऋषि के घर पुत्री बनकर जन्म लिया। दिव्य रूप देवी कात्यायनी चार भुजा धारी हैं। उनकी कांति स्वर्ण के समान है। उनका वाहन सिंह है। उनके एक हाथ में तलवार दूसरे में पुष्प कमल है। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। यजुर्वेद में प्रथम बार ष्कात्यायनीष् नाम का उल्लेख मिलता है। देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए आदि शक्ति देवी के रूप में महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं। वह असुरों का नाश करती हैं।
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
सप्तम स्वरूप में देवी कालरात्रि की उपासना होती है। इनको काली का रूप भी माना जाता है। इनकी उत्पत्ति देवी पार्वती से हुई है.
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नमः
देवी भागवत पुराण के अनुसार मां कालरात्रि शुभ फल प्रदान करती है। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है। इनकी श्घ्वास से अग्नि निकलती है। मां के बाल बिखरे हुए हैं इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति चमकती है।
इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की भांति हैं। जिनसे विद्युत की भांति किरणें निकलती रहती हैं। चार हाथ हैं। वज खडग्ए लौह अस्त्र धारण करती है। दो हाथ अभय व वरदान मुद्रा में है। उनका वाहन वाहन गर्दभ है। देवी का यह रूप ऋद्धि.सिद्धि प्रदान करने वाला है।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिताए लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणाए वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी।
नवदुर्गा के अष्टम दिवस पर मां गौरी की उपासना होती है.
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिरू। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा। महागौरी गौरवर्ण है। इसलिए इन्हें महागौरी कहा गया। उन्होंने कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था।उन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरीएधन ऐश्वर्य प्रदायिनीए चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला भी कहा गया। वह माता महागौरी है। इनके वस्त्र और आभूषण आदि भी सफेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है। इनकी उपासना से शुभ प्रवृत्त कर्मों का जागरण होता है। सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। नैतिक व पवित्र आचरण का बोध प्राप्त होता है। सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्।
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्।
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्। (हिफीद्)

डॉ दिलीप अग्निहोत्री.हिफी फीचरद्

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button