तीज-त्योहार

सूर्य उपासना का पर्व छठ पूजा

 

उगते सूर्य को तो सभी नमन करते हैं। यह कहावत भी है और व्यावहारिक सच्चाई भी लेकिन सूर्य उपासना का पर्व छठ पूजा हमें यह सिखाता है कि उगते सूर्य ही नहीं अस्ताचलगामी सूर्य की भी उपासना करनी चाहिए। यह सूर्य के उपकार के प्रति कृतज्ञता है। सूर्य हमारे प्रत्यक्ष देवता हैं। उनके अभाव में जीवन की संभावना ही समाप्त हो जाती है। हमारे हिन्दू धर्म मंे जिस तरह से दीपावली का पर्व पांच दिन तक मनाया जाता है, उसी तरह छठ माता का पर्व भी चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय के साथ यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से ही प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार इस बार सूर्य उपासना के इस पर्व की शुरुआत 17 नवम्बर से होगी।

पंचांग के अनुसार छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत चतुर्थी तिथि से नहाय-खाय के साथ हो जाती है और सप्तमी तिथि को व्रत का पारण किया जाता है। लोकआस्था का महापर्व छठ पूरे चार दिनों तक चलता है।

छठ पर्व शुरू होने से काफी पहले चारों ओर छठ पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है और घर-घर छठ मईया व सूर्य देव के गीत भी गाए जाते हैं। चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व उषा, प्रकृति, जल, वायु और सूर्यदेव की बहन षष्ठी माता को समर्पित है। इसमें विशेष रूप से सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आज भी लोग भक्तिभाव और पूर्ण श्रद्धा के साथ इसे मनाते हैं। इसलिए इसे लोकआस्था का महापर्व कहा जाता है। छठ पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है और इसमें व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती है। इसलिए छठ व्रत को कठिन व्रतों में एक माना गया है। इस साल छठ पर्व की शुरुआत 17 नवंबर से हो रही है। इस दिन व्रती नहाय-खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत करेगी। वहीं 20 नवंबर को ऊषा अर्घ्य और पारण के साथ छठ पर्व का समापन हो जाएगा। छठ व्रत सुहाग की लंबी आयु, संतान के सुखी जीवन और घर पर सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है। आइए जानते हैं 17-20 नवंबर तक चलने वाले छठ पर्व में किस दिन क्या किया जाएगा? छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है। इसलिए यह दिन बहुत खास होता है। इस साल नहाय-खाय शुक्रवार 17 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 06 बजकर 45 मिनट पर होगा और सूर्यास्त शाम 05 बजकर 27 मिनट पर होगा। नहाय खाय के दिन व्रती सुबह नदी स्नान करती है और इसके बाद नए वस्त्र धारण कर प्रसाद ग्रहण करती है। छठ पूजा के नहाय-खाय में प्रसाद के रूप में कद्दू चना दाल की सब्जी, चावल आदि बनाए जाते हैं। सभी प्रसाद सेंधा नमक और घी से तैयार होता है। व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के अन्य सदस्य भी इस सात्विक प्रसाद को ग्रहण करते हैं। छठ पर्व के दूसरे दिन खरना होता है, जो कि इस साल शनिवार 18 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06 बजकर 46 मिनट और सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा। खरना के दिन व्रती केवल एक ही समय शाम में मीठा भोजन करती है। इस दिन मुख्य रूप से चावल के खीर का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इसके बाद सीधे पारण किया जाता है।

छठ पूजा का महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन घर-परिवार के सभी लोग घाट पर जाते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस साल छठ पूजा का अस्तचलगामी अघ्र्य रविवार 19 नवंबर को दिया जाएगा। इस दिन सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा। इस दिन सूप में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि प्रसाद को सजाकर और कमर तक पानी में रहकर परिक्रमा करते हुए अघ्र्य देने की परंपरा है।

छठ पूजा अंतिम और चैथा दिन यानी सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इस साल ऊषा अघ्र्य सोमवार 20 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर होगा। इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर पारण करती है।

छठ पर्व की परम्परा में वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व भी छिपा हुआ है। षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है। जिस समय धरती के दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य रहता है और दक्षिणायन के सूर्य की अल्ट्रावॉइलट किरणें धरती पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। इन दूषित किरणों का सीधा प्रभाव जनसाधारण की आंखों, पेट, त्वचा आदि पर पड़ता है। इस पर्व के पालन से सूर्य प्रकाश की इन पराबैंगनी किरणों से जनसाधारण को हानि न पहुंचे। इस अभिप्राय से सूर्य पूजा का गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है। इसके साथ ही घर-परिवार की सुख- समृद्धि और आरोग्यता से भी छठ पूजा का व्रत जुड़ा हुआ है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति, पत्नी, पुत्र, पौत्र सहित सभी परिजनों के लिए मंगल कामना है।

छठ पर्व की सांस्कृतिक परम्परा में चार दिन का व्रत रखा जाता है। यह व्रत भैया दूज के तीसरे दिन यानि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से आरंभ हो जाते है। व्रत के पहले दिन को नहा-खा कहते हैं। जिसका शाब्दिक अर्थ है स्नान के बाद खाना। इस दिन पवित्र नदी में श्रद्धालु स्नान करते हैं। वैसे तो यह पर्व मूल रूप से गृहिणियों द्वारा मनाया जाता है लेकिन आजकल पुरुष भी इसमें समान रूप से सहयोग देते हैं।

छठ का पौराणिक महत्व अनादिकाल से बना हुआ है। रामायण काल में सीता ने गंगा तट पर छठ पूजा की थी। महाभारत काल में कुंती ने भी सरस्वती नदी के तट पर सूर्य पूजा की थी। इसके परिणाम स्वरूप उन्हें पांडवों जैसे पुत्रों का सुख मिला था। द्रौपदी ने भी हस्तिनापुर से निकलकर गढ़ गंगा में छठ पूजा की थी। छठ पूजा का सम्बंध हठयोग से भी है जिसमें बिना भोजन ग्रहण किए हुए लगातार पानी में खड़ा रहना पड़ता है। इससे शरीर के अशुद्ध जीवाणु परास्त हो जाते हैं।
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे मे एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था।

लोक परम्परा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई। छठ पूजा अथवा छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। छठ से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं और लोक गाथाओं पर गौर करें तो पता चलता है कि भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी राजाओं का यह मुख्य पर्व था। छठ के साथ स्कंद पूजा की भी परम्परा जुड़ी है। भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कंद की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा रक्षा की थी। इसी कारण स्कंद के छह मुख हैं और उन्हें कार्तिकेय नाम से पुकारा जाने लगा। कार्तिक से संबंध होने के कारण षष्ठी देवी को स्कंद की पत्नी देवसेना नाम से भी पूजा जाने लगा। (हिफी)

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