तीज-त्योहार

गोवर्द्धन पर मथुरा हो जाता कृष्णमय

 

दीपावली का प्रत्यक्ष संबंध भगवान राम से है तो उसके दूसरे दिन अर्थात् प्रतिपदा को गोवर्द्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से है। इस बार दीपावली के तीसरे दिन अर्थात् 14 नवम्बर को प्रतिपदा है इसलिए गोवर्द्धन पूजा उसी दिन की जाएगी। यह पर्व पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन मथुरा मंे गोवर्द्धन पर्वत है। इसलिए गोवर्धन पूजा पर देश के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री श्यामाश्याम के आशीर्वाद की उम्मीद में मथुरा की ओर खिंचे चले आते हैं।

दीपावली और गोवर्धन पूजा पर चूंकि हजारों विदेशी कृष्ण भक्त भी गोवर्धन आते हैं इसलिए जिला प्रशासन के लिए यह दो दिन विशेष चुनौती के होते है। इस बार दीपावली का पर्व 12 नवंबर को और गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर को है। जिलाधिकारी शैलेन्द्र सिंह ने दोनो पर्वों पर की गई व्यवस्था के बारे में बताया कि व्यवस्थाएं इस प्रकार की जा रही हैं कि किसी भी तीर्थयात्री को मन्दिरों में दर्शन करने या गोवर्धन की परिक्रमा करने में कोई परेशानी न हो किंतु सुरक्षा से कोई समझौता नही किया जाएगा। तीर्थयात्रियों का जमघट गोवर्धन में लगने के कारण 100 अतिरिक्त बसें विभिन्न मार्गों से गोवर्धन पहुंचने के लिए लगाई जाएंगी तथा तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ने पर बसों की संख्या बढ़ा दी जाएगी। उन्होंने कहा कि जहां गोवर्धन में शुद्ध खाद्य पदार्थों की बिक्री सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र गोवर्धन में चिकित्सा के इन्तजाम इस प्रकार किये गए हैं कि हर समय कोई न कोई चिकित्सक मौजूद रहे।इसके अलावा एम्बुलैन्स के साथ दो मेडिकल टीमें थाने के पास मौजूद रहेंगी तथा आवश्यकता पड़ने पर तुरंत मौके पर पहुंचेंगी।
जिलाधिकारी ने यह भी बताया कि जंजीर खींचने, जेबकटी रोकने एवं महिलाओं से अभद्रता करने की घटनाओ को रोकने के लिए प्रमुख मंदिरों में सादा वर्दी में पुलिसकर्मी लगाए जाएंगे।

दीपावली के दिन हजारों तीर्थयात्री जहां मानसी गंगा के घाटों पर मिट्टी के दीपक जलाकर श्यामाश्याम का आशीर्वाद लेते हैं, वहीं गोवर्धन पूजा पर गोवर्धन महराज का अभिषेक एवं पूजन कर उसकी सप्तकोसी परिक्रमा करते है। इस दिन बहुत से तीर्थयात्री दूध की धार से भी गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं।

गोवर्धन परिक्रमा का सबसे अधिक भावपूर्ण दृश्य उस समय देखने को मिलता है जब हजारों विदेशी कृष्ण भक्त सिर पर प्रसाद की डलिया रखकर गोवर्धन महराज का पूजन करने के लिए एक साथ जाते हैं। इनमें से सैकड़ो कृष्ण भक्त गोवर्धन की परिक्रमा भी करते हैं। दानघाटी मन्दिर गोवर्धन के प्रमुख सेवायत आचार्य मथुरा प्रसाद कौशिक ने बताया कि गोवर्धन पूजा उसी प्रकार की जाती है जिस प्रकार द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर ब्रजवासियों ने की थी। उनका यह भी कहना था कि गोवर्धन पूजा वास्तव में ब्रजवासियों पर कान्हा की कृपा की पुनरावृत्ति है।

एक पौराणिक दृष्टांत देते हुए उन्होंने बताया कि सात साल के कान्हा ने सात दिन तक गोवर्धन को अपनी छोटी उंगली पर धारण कर ब्रजवासियों की इन्द्र के कोप से रक्षा की थी क्योंकि कान्हा के कहने पर ब्रजवासियों ने इन्द्र की पूजा बन्द कर दी थी और इन्द्र ने अपने संवर्तक मेघों से ब्रज को डुबोने का आदेश दिया था। बाद में जब इन्द्र्र को असलियत का पता चला तो उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना भी की थी। उनका कहना था कि दोनों ही दिन गोवर्धन में भक्ति रस की गंगा ऐसी प्रवाहित होती रहती है कि गोवर्धन का कण कण कृष्णमय हो जाता है।

इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। भगवान श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन इन्द्र का मानमर्दन कर गिरिराज पूजन किया था। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में हल जोतकर अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसी दिन अन्नकूट भी किया जाता है। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन है जिसमें पूरा परिवार एक जगह बनाई गई रसोई से भोजन करता है। इस दिन चावल, बाजरा, कढ़ी, साबुत मूंग सभी सब्जियां एक जगह मिलाकर बनाई जाती हैं। मंदिरों में भी अन्नकूट बनाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। सायंकाल गोबर के गोवंश की पूजा की जाती है।

वेदों में इस दिन वरुण, इन्द्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इसी दिन गोवर्धन पूजा होती हैं। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर, फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। उस समय लोग इन्द्र भगवान की पूजा करते थे तथा छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था।

इस दिन प्रातः गाय के गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसको मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है, फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं। शाम को गोवर्द्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की जय बोलते हुए उनकी सात परिक्रमाएं लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य जौ लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।

महाराष्ट्र में यह दिन बलि प्रतिपदा या बालि पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वामन जो कि भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बालि पर विजय और बाद में बलि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्य स्मरण किया जाता है। यह माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बलि इस दिन पाताल लोक से पृथ्वी लोक आता है। अधिकतर गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नव वर्ष के दिन के साथ मिल जाता है जो कि कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा उत्सव गुजराती नव वर्ष के दिन के एक दिन पहले मनाया जा सकता है और यह प्रतिपदा तिथि के प्रारम्भ होने के समय पर निर्भर करता है।

अन्नकूट में चंद्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है। इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णतः बंद रहते हैं। घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है। (हिफी)

(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)

 

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