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दक्षिण भारत की राजनीति में भी श्रीराम की धमक

नई दिल्ली। उत्तर की तरह भाजपा यदि दक्षिण के माहौल को भी अयोध्या से जोड़ने में सफल हो गई तो दोनों राज्यों की सत्ताधीशों के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। यही कारण है कि बीच की राह तलाशी जा रही है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को भद्राचलम के राम मंदिर में ही अयोध्या नजर आने लगा है।
उन्होंने कहा है कि अयोध्या और भद्राचलम में कोई फर्क नहीं है। अयोध्या श्रीराम मंदिर आंदोलन से जुड़े श्रीकांत पुजारी की दो हफ्ते पहले गिरफ्तारी के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को भी अब दक्षिण में ही भगवान राम नजर आने लगे हैं। उन्होंने कहा है कि वह श्रीराम का अनुशरण करते हैं और अपने गांवों के राम मंदिरों का निरंतर दौरा करते हैं।
सामान्य तौर पर माना जाता है कि श्रीराम के अयोध्या से दक्षिण भारत के राज्यों का फासला बड़ा है, लेकिन भगवान राम को उत्तर और दक्षिण में बांटकर नहीं देखा जा सकता है। इस बार सभी दिशाओं के लोग आस्था में समान रूप से सराबोर नजर आ रहे हैं। इसका कारण भी है। सनातन के अधिकतर भव्य एवं बड़े मंदिर दक्षिण भारत में ही स्थित हैं।
सीता की खोज में श्रीराम तेलंगाना के भद्राचलम, केरल के त्रिसूर एवं तमिलनाडु के वदावुर मार्ग से ही गुजरे थे, जहां आज कई भव्य राम मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त अयोध्या में मंदिर निर्माण में दक्षिण के लोगों का भी कम योगदान नहीं है। मूर्तिकार अरुण योगीराज के अलावा कर्नाटक के स्वामी विश्व-प्रसन्ना भी मंदिर निर्माण से गहरे जुड़े हैं। वह मंदिर निर्माण ट्रस्ट के सदस्य हैं। बेंगलूरु के गोपाल नगरकट्टे विहिप के संयुक्त सचिव है, जो निर्माण कार्य की देखरेख कर रहे हैं।
दक्षिण भारत के धर्माचार्यों ने भगवान राम के पताका को कंबोडियो, इंडोनेशिया, मलेशिया एवं इंडोनेशिया तक पहुंचाया है। उत्तर भारत के भी सभी बड़े मंदिरों में दक्षिण भारत के ही पुजारी होते हैं। बद्रीनाथ, काशी विश्वनाथ और काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी भी दक्षिण के ही हैं। दरअसल, समर्थन और विरोध की पूरी राजनीति लोकसभा चुनाव से जुड़ी है। दक्षिण भारत के छह राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल एवं पुडुचेरी में लोकसभा की कुल 130 सीटें हैं। सिर्फ कर्नाटक एवं तेलंगाना में भाजपा की उपस्थिति है। पिछले चुनाव में कर्नाटक की 28 में 25 सीटें और तेलंगाना में 17 में सिर्फ चार सीटें भाजपा ने जीती थी। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं केरल में भाजपा को निराशा हाथ लगी थी।

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