अखिलेश ने बदली यूपी की कमान
इस बार के लोकसभा चुनाव किस करवट बैठेंगे, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन सभी दलों के नेता भरपूर जोर आजमाइश कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भले ही तीसरी बार सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त दिखने का प्रयास कर रही है लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमितशाह और स्टार प्रचार को में सबसे प्रमुख सीएम योगी आदित्य नाथ तपती धूप में रैली, रोडशो और जनसभाएं करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी के साथ कूटनीति भी चल रही है। मतदान के तीन चरण पूरे होने के साथ ही दल-बदल का दौर भी चल रहा है। यह अपने विपक्षी को कमजोर करने की कूटनीति है। विपक्षी दलों में भी इसी तरह की जोर आजमाइश चल रही है। देश को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) ने कांग्रेस के साथ
गठबंधन करके चुनाव की रणनीति बनायी है। सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव पिछड़े दलित और आदिवासी (पीडीए) का फार्मूला बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसी के तहत चुनावों के मध्य उन्होंने श्याम लाल पाल को यूपी का नया अध्यक्ष बनाया है। अब तक नरेश उत्तम पटेल प्रदेश की कमान संभाल रहे थे। अखिलेश ने मतदान के तीसरे चरण के करीब यह कदम क्यों उठाया, इसको लेकर कहा जा रहा है कि पाल समाज को सपा से जोड़ने का प्रयास किया गया है। नरेश उत्तम पटेल को फतेहपुर से चुनाव लड़वाया जा रहा है और प्रदेश अध्यक्ष बदलने का यह अच्छा बहाना मिल गया लेकिन पाल बिरादरी को साधने की कहानी भी सामने आ रही है। ओबीसी में पाल बिरादरी की 4.43 फीसद की हिस्से दारी है। इसके साथ ही अखिलेश यादव अपनी सरकार की उपलब्धियंा भी गिनाते हैं।
सपा ने श्याम लाल पाल को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। इसके सहारे प्रदेश के पाल वोटरों को साधने का प्रयास कर रही है। श्याम लाल पाल प्रयागराज के रहने वाले हैं। ऐसे में प्रदेश में संगठन की जिम्मेदारी श्याम लाल पाल को दी गई है। श्याम लाल पाल एक इंटर कॉलेज से प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। श्याम लाल पाल लगभग 20 सालों से समाजवादी पार्टी में हैं। वह नरेश उत्तम पटेल की समिति में उपाध्यक्ष के पद पर थे।
श्याम लाल पाल 2002 में अपना दल के टिकट पर प्रतापपुर सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़े चुके थे। हालांकि, इसके कुछ दिन बाद ही वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। वह सपा में अलग-अलग पदों पर रहकर लगातार काम करते रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा के बीच कई लोकसभा सीटों पर कांटे की टक्कर है। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने रुख पर कायम रही, तो सपा ने चाल बदल ली। टिकट वितरण में सपा ने मुस्लिम और यादव की जगह ओबीसी कार्ड खेला है।यूपी में भाजपा अपने ब्राह्मण, क्षत्रिय और कुर्मी कार्ड पर कायम है, जबकि सपा ने माय (मुस्लिम-यादव) की रणनीति बदल दी है। इस बार उसने कुर्मी और मौर्य-शाक्य-सैनी-कुशवाहा जाति के प्रत्याशी ज्यादा उतारे हैं। भाजपा ने सबसे ज्यादा टिकट ब्राह्मणों-ठाकुरों को दिए हैं, तो सपा ने ओबीसी कार्ड खेला है।प्रदेश में भाजपा 75 और उसके सहयोगी दल 5 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने अपने कोटे की सीटों में 21 प्रतिशत ब्राह्मण और 17 प्रतिशत ठाकुर प्रत्याशी दिए हैं, जबकि, उसके 8 प्रतिशत उम्मीदवार कुर्मी हैं। भाजपा ने कमोबेश यही रणनीति वर्ष 2019 के चुनाव में अपनाकर अपने 78 में से 73 प्रत्याशी जिताए थे। तब भाजपा के ब्राह्मण, ठाकुर और कुर्मी प्रत्याशी क्रमशः 22, 18 और 9 प्रतिशत थे। यहां बता दें कि वर्ष 2019 में भाजपा ने दो सीटें सहयोगी अपना दल (एस) को दी थीं। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन होने के बावजूद सपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। उसके खाते में सिर्फ पांच सीटें ही आई थीं। यही वजह है कि इस बार सपा ने टिकट देने की अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। 2019 में सपा ने यूपी में 37 सीटों पर चुनाव लड़ा था, तब उसने सबसे ज्यादा टिकट यादवों को दिए थे। दूसरे नंबर पर मुसलमान थे। उसके 27 प्रतिशत प्रत्याशी यादव और 11 प्रतिशत मुस्लिम थे। वहीं, कुर्मियों को आठ प्रतिशत टिकट दिए थे।
इस बार सपा यूपी में 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें से रॉबर्ट्सगंज को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर उसके प्रत्याशी घोषित किए जा चुके हैं। यादव और मुस्लिम मतदाता सपा के आधार वोटबैंक माने जाते हैं। मुस्लिमों की यूपी की आबादी में हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है। पर, सपा ने इस बार टिकटों में उन्हें आबादी के मुकाबले काफी कम, महज 6.5 फीसदी की ही भागीदारी दी है। पिछड़ी जातियों में आबादी के लिहाज से यादवों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है, लेकिन सपा ने इस बार यादव प्रत्याशियों के रूप में अखिलेश परिवार के ही पांच नेताओं को उतारा है। वर्ष 2019 के 27 प्रतिशत यादव प्रत्याशियों के मुकाबले यह आंकड़ा मात्र 8 फीसदी ही है। समाजवादी पार्टी ने कुर्मी, मौर्य- कुशवाहा-शाक्य-सैनी जातियों को तरजीह दी है। ओबीसी जातियों में कुर्मी-पटेल की हिस्सेदारी 7.5 प्रतिशत है, जबकि सपा ने इस बिरादरी के 10 प्रत्याशी उतारकर उन्हें टिकटों में 1.6 प्रतिशत की भागीदारी दी है। इसी तरह से ओबीसी जातियों में मौर्य-कुशवाहा- शाक्य-सैनी की भागीदारी सात फीसदी है, जिन्हें सपा ने 10 प्रतिशत टिकट दिए हैं।
सपा का अपने आधार वोट बैंक के बजाय अन्य जातियों को तरजीह देना उसकी सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा है। यादवों और मुसलमानों को उचित प्रतिनिधित्व न देना सपा को भले ही अभी फायदेमंद दिख रहा हो, पर इसके दूरगामी परिणाम नुकसानदायक हो सकते हैं। सपा ने वाल्मीकि, गुर्जर, राजभर, भूमिहार, पाल, लोधी के एक-एक उम्मीदवार उतारे हैं। यानी 1.6 फीसद हिस्सेदारी दी है। जबकि 2019 में लोधी, वाल्मीकि, कायस्थ, जाटव, कुशवाहा, नोनिया, चैहान, कोल, धानुक के एक-एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा था लेकिन प्रतिशत 2.7 ही था।
इसके साथ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी सरकार की उपलब्धियां भी गिनाते हैं। हमने महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराने के लिए वास्तविक समय में कदम उठाने के साथ-साथ समाज में लोगों को बढ़ावा देने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए 1090 महिलाओं की हेल्पलाइन की शुरुआत 2012 में की गई थी। महिलाओं का सामना करने वाली सामाजिक बीमारियों का समाधान खोजा जा सके।
लखनऊ मेट्रो का निर्माण ट्रांसपोर्ट नगर और चारबाग रेलवे स्टेशन के बीच 8.3 किलोमीटर के साथ 27 सितंबर 2014 को शुरू हुआ। इसने 5 सितंबर 2017 को वाणिज्यिक परिचालन शुरू किया। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे 6-लेन एक्सप्रेस-वे है, जो 8 लेन तक विस्तारित है। इस परियोजना का विकास उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में किया था। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)