राज्यपालों को ‘सुप्रीम झिड़की’
पंजाब के मुख्यमंत्री और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के बीच जिस तरह रस्साकशी चल रही है, उस पर सुप्रंीम कोर्ट ने मीठी झिड़की लगाते हुए कहा राज्यपालों को अंतरात्मा की तलाश करनी चाहिए अर्थात् राज्य के प्रथम नागरिक और राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होने के चलते उनको अपने विवेक से फैसले करने चाहिए।
देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात् सुप्रीम कोर्ट राजनीति में दखल देने से बचता है लेकिन राजनीति खुद बखुद कभी-कभी राजभवन की दीवारों पर सींग मारने लगती है। ऐसे मंे सुप्रीम कोर्ट कभी-कभी तीखे शब्दों में तो कभी-कभी चाश्नी में लपेट कर फटकार भी लगाता है। ऐसा अवसर राज्यपाल और उपराज्यपाल अक्सर देते हैं। उत्तराखण्ड और कर्नाटक में राज्यपालों के स्वविवेक पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी। उत्तराखण्ड मंे हरीश रावत की सरकार को दुबारा बहाल भी करा दिया था। महाराष्ट्र मंे तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की चूक के चलते सुप्रीम कोर्ट ऐसा नहीं कर पाया लेकिन उसकी भावना इन शब्दों में सभी को मालूम हो गयी थी कि मैं घड़ी की सुइयों को पीछे नहीं कर सकता। राज्यपालों का विवाद कई राज्यों मंे वहां की सरकार से चल रहा है। दस महीने पहले ही तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने राज्यपाल पर सरकार के कार्य मंे बाधा खड़ी करने का आरोप लगाया था। इसी प्रकार का आरोप पंजाब की भगवंत सिंह मान की सरकार ने भी लगाया है। सुप्रीम कोर्ट को पता है कि इन राज्यों के राज्यपाल सरकार के कार्य में अड़ंगा अपनी मर्जी से नहीं लगाते बल्कि उनका रिमोट किसी और के पास रहता है इसलिए पंजाब के मुख्यमंत्री और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के बीच जिस तरह रस्साकशी चल रही है, उस पर सुप्रंीम कोर्ट ने मीठी झिड़की लगाते हुए कहा राज्यपालों को अंतरात्मा की तलाश करनी चाहिए अर्थात् राज्य के प्रथम नागरिक और राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होने के चलते उनको अपने विवेक से फैसले करने चाहिए।
पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में की जा रही कथित देरी को लेकर राज्य सरकार की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों को अंतरात्मा की तलाश करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले ही राज्यपाल को कार्रवाई करनी चाहिए। राज्यपाल केवल तभी कार्रवाई करते हैं, जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है। पंजाब सरकार ने याचिका में विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी के लिए राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को निर्देश देने का अनुरोध किया है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की असांविधानिक निष्क्रियता से पूरा प्रशासन ठप पड़ गया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ के सामने सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल के पास बिल को सुरक्षित रखने का अधिकार है। इस पर पंजाब सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल पूरी विधानसभा से पारित सात विधेयकों को रोके हुए हैं। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये दो राज्य हैं, जहां जब कि किसी को एब्यूज करना हो, तो सदन का सत्र बुला लिया जाता है। ऐसा संवैधानिक इतिहास में कभी नहीं हुआ है। तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल बिल का अध्ययन करके बिल पास कर रहे हैं। हम सारा ब्यौरा सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेंगे। इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सात बिल पास हुए। राज्यपाल कुछ कर नहीं रहे। स्पीकर ने विधानसभा को फिर से बुलाया है। विधानसभा ने 7 विधेयक पारित किये हैं। राज्यपाल बाध्य है- वह या तो विधेयक वापस कर सकते हैं, लेकिन वह यह कहते हुए हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं कि सत्र खत्म होने पर आप दोबारा बैठक नहीं कर सकते। सीजेआई ने कहा कई राज्यो में इसी तरह की स्थिति देखने को मिल रही है। पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी के लिए राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को निर्देश देने का अनुरोध किया है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की असांविधानिक निष्क्रियता से पूरा प्रशासन ठप पड़ गया है। सरकार ने दलील दी कि राज्यपाल अनिश्चितकाल के लिए विधानसभा से पारित विधेयकों को रोक नहीं सकते हैं। याचिका में पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव को पहले प्रतिवादी के रूप में रखा गया है। याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सरकार द्वारा दी गई सहायता और सलाह के अनुसार राज्यपाल को विधानसभा को बुलाना पड़ता है। पंजाब सरकार के कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल से विधानसभा का बजट सत्र तीन मार्च से बुलाने की अनुमति मांगी थी। हालांकि, राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने बजट सत्र को बुलाने से इनकार कर दिया था। साथ ही एक पत्र लिखकर कहा कि मुख्यमंत्री सीएम के ट्वीट और बयान काफी अपमानजनक और असंवैधानिक थे। इन ट्वीट पर कानूनी सलाह ले रहे हैं। इसके बाद बजट सत्र को बुलाने पर विचार करेंगे।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने लिखा था कि उनकी सरकार 3 करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह है न कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किसी राज्यपाल के प्रति। इसके बाद से मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच उक्त पूरे मामले ने विवाद का रूप ले लिया।
तमिलनाडु में राज्यपाल के अभिभाषण को लेकर इतना हंगामा हुआ कि राज्यपाल को भाषण अधूरा छोड़कर ही विधानसभा से जाना पड़ा। सवाल यह उठता है कि राज्यपाल ने ऐसा क्या कह दिया जो हंगामा इतना बढ़ गया। दरअसल, राज्यपाल ने तमिलनाडु राज्य का नाम ही बदलने को कह दिया। उन्होंने कहा इस राज्य का नाम तमिलनाडु की बजाय तमिझगम होना चाहिए। सत्तारूढ़ दल और कांग्रेस ने इस पर आपत्ति की। कहा कि राज्यपाल यहाँ आरएसएस और भाजपा का एजेंडा चलाना चाहते हैं। ऐसा हम होने नहीं देंगे।इसके बाद तो राज्यपाल पर आरोपों की झड़ी लग गई। राजनीतिक दलों ने कहा कि राजभवन से भाजपा का एजेंडा चलाया जा रहा है। राज्यपाल कहते हैं कि पिछले पचास सालों में द्रविड दलों ने यहाँ के लोगों के साथ धोखा किया है। हम राज्यपाल से कहना चाहते हैं कि वे भाजपा के दूसरे प्रदेशाध्यक्ष के रूप में काम करना बंद कर दें।
राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर जब तक राजनीतिक नियुक्तियाँ या रिटायर्ड राजनेताओें को पदस्थ किया जाता रहेगा, झगड़े इसी तरह होते रहेंगे और महामहिम की इसी तरह छीछालेदर होती रहेगी। पहले इस पद पर किसी विषय विशेषज्ञ या वरिष्ठ विद्वान की नियुक्ति होती थी, लेकिन अब केंद्र में जिसकी सरकार हो, प्रायः उसी दल के किसी बुजुर्ग व्यक्ति को नियुक्त किया जाने लगा है, समस्या इसीलिए बढ़ गई है। राज्यपाल पद पर पहले कांग्रेस ने भी खूब राजनीतिक नियुक्तियाँ कीं, लेकिन तब समस्या इसलिए नहीं आती थी क्योंकि ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार होती थी और उसी के राज्यपाल। अब ऐसा नहीं है। कई राज्यों में सरकार दूसरे दलों की है और राज्यपालों की नियुक्तियाँ दूसरे दलों ने की हैं। समस्या इसीलिए है। सरकार और राज्यपाल की विचारधारा समान नहीं होती, इसलिए विवाद होते रहते हैं। विवाद इसलिए भी होते हैं क्योंकि राज्यपाल केंद्र सरकार की विचारधारा चलाते हैं और दूसरे दल की राज्य सरकार इस विचारधारा से सहमत नहीं होती। इलाज एक ही है- राज्यपाल जैसे पदों पर निष्पक्ष व्यक्ति की नियुक्ति। जैसे राष्ट्रपति पद पर डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम की नियुक्ति की गई थी। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)