विविध

उल्लू व कछुआ से नहीं पुरुषार्थ से मिलती लक्ष्मी

 

हमारे शास्त्रों मंे कहा गया है कि लक्ष्मी उद्यमी पुरुष को ही मिलती है। प्रगति और सम्पन्नता का एक मात्र साधन उद्यम अर्थात् पुरुषार्थ है। भाग्य पर भरोसा करना अथवा तंत्र-मंत्र पर विश्वास करने वालों को लक्ष्मी त्याग कर पुरुषार्थ करने वालों का ही वरण करती हैं। इस बार दीपावली पर इसका सभी लोग ध्यान रखें तो लक्ष्मी जी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।

एक तथाकथित ज्योतिषाचार्य बता रहे थे कि दीपावली के दिन अगर सफेद उल्लू के दर्शन हो जाएं तो आप पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहेगी। इसी तरह से तांत्रिकों को यकीन रहता है कि दीपावली की रात को उल्लू की बलि चढ़ाने से उनको दैवीय शक्ति मिल जाती है। कछुए को लेकर भी ऐसी धारणा है कि अगर घर में कछुआ पाल लें तो लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहेगी। लक्ष्मी अर्थात् समृद्धता पुरुषार्थ से मिलती है। उल्लू कछुआ आदि जानवरों को किसी भी प्रकार सताकर लक्ष्मी नहीं प्राप्त की जा सकती बल्कि कछुआ जैसे प्रतिबंधित जीवों को पालना अपराध की श्रेणी में आता है और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत जुर्माना देने के साथ जेल की भी हवा भी खानी पड़ सकती है। यह सच है कि खुशहाल जीवन के लिए लक्ष्मी अर्थात् धन की महत्वपूर्ण भूमिका है। दीपावली पर हम गणेश जी के साथ लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी धन-धान्य की देवी हैं और उनका वाहन उलूक अर्थात् उल्लू बताया जाता है। इस दृष्टि से भी हम लक्ष्मी जी के वाहन की बलि चढ़ाकर लक्ष्मी जी की कृपा पाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? हमारे शास्त्रों मंे कहा गया है कि लक्ष्मी उद्यमी पुरुष को ही मिलती है। प्रगति और सम्पन्नता का एक मात्र साधन उद्यम अर्थात् पुरुषार्थ है। भाग्य पर भरोसा करना अथवा तंत्र-मंत्र पर विश्वास करने वालों को लक्ष्मी त्याग कर पुरुषार्थ करने वालों का ही वरण करती हैं। इस बार दीपावली पर इसका सभी लोग ध्यान रखें तो लक्ष्मी जी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।

कछुए को पालना अपराध है
भारत में कछुए को लोग लक्ष्मी मां का प्रतीक मानते हैं। यही वजह है कि लोगों के हाथों में आपने अक्सर कछुए की अंगूठी देखी होगी। इसके अलावा कई लोग तो कछुए को ही खरीद कर अपने घर के एक्वेरियम में रख लेते हैं। यह सोचकर कि इससे उनके ऊपर धन की वर्षा होगी, लेकिन कछुआ पालना आपको सलाखों के पीछे पहुंचा सकता है। इसके साथ आपके ऊपर भारी जुर्माना भी लग सकता है। बता दें कि भारत में कछुओं की 29 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें से 28 प्रजातियां प्रतिबंधित हैं। जबकि 25 प्रजातियां शेड्यूल वन में आती हैं। यानी जिन्हें सबसे ज्यादा लीगल प्रोटेक्शन मिला हुआ है। ऐसे में अगर आपने किसी भी प्रकार का कछुआ पाल रखा है, तो आपको भारी पड़ सकता है। टर्टल सर्वाइवर अलायंस इंडिया के निदेशक डॉ. शैलेंद्र सिंह के अनुसार कछुए को धर्म से जोड़कर उनको एक्वेरियम में रखना गैर कानूनी है। उन्होंने बताया कि भारत में 29 प्रजाति में से 28 प्रतिबंधित हैं। वहीं, 25 प्रजातियां शेड्यूल वन में आती है। ऐसे में किसी भी प्रकार के कछुए को घर में नहीं पाल सकते हैं। डॉ. शैलेंद्र सिंह के अनुसार किसी भी शेड्यूल वन में आने वाले जानवर को अगर घर में पाला जाए तो लोगों को तीन से सात साल की सजा हो सकती है। इसके साथ एक लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। डॉ। शैलेंद्र सिंह के मुताबिक, अगर आपने अभी भी घर में कछुए को पाल रखा है तो सजा और कार्रवाई से बचने के लिए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को इसकी सूचना दे सकते हैं। उनको कछुए को लौटा सकते हैं। अगर किसी और की सूचना पर आपके घर में कछुआ मिलता है और आपके ऊपर गैर कानूनी ढंग से उसे पालने का दोष साबित हो जाता है। इस कारण आपको कम से कम तीन से सात साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना तो झेलना ही पड़ेगा।
लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू तो बलि क्यों?

दिवाली प्रकाश का पर्व है। दिवाली के आने के साथ दियों, मिठाइयों, पटाखों, सोना, चांदी और नए कपड़ों सहित कई चीजों पर चर्चा शुरू हो जाती है। दिवाली पर उल्लू भी काफी चर्चा में रहता है। विश्व वन्यजीवन कोष ने उल्लू को लेकर जागरुकता फैलाने और इसकी तस्करी को बंद करने की आवश्यकता बताई है। दरअसल, दिवाली के त्योहार पर उल्लू एक अंधविश्वास की बलि चढ़ जाता है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने उल्लू की बलि को लेकर ही यह फैसला लिया है। तो आज हम आपको बताते हैं कि दिवाली पर उल्लू की चर्चा क्यों होती है। साथ ही उस कानून के बारे में भी जानेंगे, जिसमें उल्लू की बलि को लेकर सजा का प्रावधान है।

दिवाली के त्योहार पर कई सारे उल्लू अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाते हैं। भारत में उल्लुओं को लेकर यह अंधविश्वास फैला हुआ है कि अगर दीपावली के मौके पर इस पक्षी की बलि दी जाए तो धन-संपदा में वृद्धि होती है। ऐसे में कई लोग अपने इस अंधविश्वास के अधीन होकर उल्लुओं की बलि दे देते हैं, जिसके कारण हर साल काफी संख्या में इस प्रजाति को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। भारत में उल्लू की कुल 36 प्रजातियां पायी जाती हैं। इन सभी प्रजातियों को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत शिकार, कारोबार या फिर किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से संरक्षण प्राप्त है। उल्लू की कम से कम 16 प्रजातियों की अवैध तस्करी और कारोबार किया जाता है। इन प्रजातियों में से खलिहानों में पाया जाने वाला उल्लू, ब्राउन हॉक उल्लू, कॉलर वाला उल्लू, काला उल्लू, पूर्वी घास वाला उल्लू, ब्राउन फिश उल्लू, जंगली उल्लू, धब्बेदार उल्लू, पूर्वी एशियाई उल्लू, चितला उल्लू आदि शामिल हैं। भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को इसके जरिए देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने और अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया था। इस कानून के में 66 धाराएं हैं और 6 अनुसूचियां हैं। इसकी अलग-अलग अनुसूचियों में अलग-अलग सजा का प्रावधान है। इसमें 10000 रुपये जुर्माना से लेकर 10 साल की सजा तक का भी प्रावधान है। इसलिए किसी भी प्रकार के अंधविश्वास से बचें वरना लक्ष्मी की जगह मुसीबत सिर पड़ेगी। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button