
रावण भी जान गया कि संभवतः भगवान ने अवतार लिया है, इसलिए हठ करके वैर मोल लेना चाहता है। सीता का हरण करने के लिए वह मामा मारीच के पास गया। मारीच तो श्रीराम की प्रभुता को समझ चुका है क्योंकि मुनि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करते हुए प्रभु श्रीराम ने बिना फल के तीर मारा था जिससे वह सौ योजन दूर समुद्र के तट पर गिरा। इसलिए मारीच भी रावण को समझाने लगा कि वे साधारण मनुष्य नहीं बल्कि साक्षात भगवान हैं लेकिन रावण तो प्रभु के वाणों से ही मरना चाहता है इसलिए उसने मारीच को धमकाया। मारीच ने समझा कि इस पापी के हाथों मरने से अच्छा है कि प्रभु श्रीराम के हाथों से मृत्यु प्राप्त हो। इसके साथ ही उसने यह समझा कि शस्त्र धारण करने वाले, भेद को जानने वाला, समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान, वैद्य, भाट, कवि और रसोइया ऐसे नौ लोग हैं जिनके विरोध करने से कल्याण नहीं होता। इस प्रसंग में यही बताया गया है कि अभी तो रावण मारीच को शूर्पणखा की कथा बता रहा है-
दसमुख सकल कथा तेहि आगें, कही सहित अभिमान अभागें।
होहु कपट मृग तुम्ह छलकारी, जेहि विधि हरि आनौं नृप नारी।
तेहि पुनि कहा सुनहु दससीसा, ते नर रूप चराचर ईसा।
तासों तात बयरु नहिं कीजै, मारें मरिअ जिआएं जीजे।
मुनि मख राखन गयउ कुमारा, बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा।
सत जोजन आयउं छन माहीं, तिन्ह सन बयरु किएं भल नाहीं।
भइ मम कीट भृंग की नाई, जहं तहं मै देखउं दोउ भाई।
जौं नर तात तदपि अति सूरा, तिन्हहिं विरोधि न आइहि पूरा।
जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड।
खर दूषन तिसिरा बधेउ, मनुज कि अस बरबंड।
दशमुख वाले अभागे रावण ने पूरी कथा अभिमान के साथ मारीच को सुनाई और कहा तुम छल करने वाले कपट मृग बनो, जिस उपाय से मैं उस राजबधू को हरण करके ले आऊं। मारीच ने कहा हे दसशीश सुनिए, वे मनुष्य के रूप में चराचर ईश्वर हैं। हे तात, उनसे बैर न कीजिए। उन्हीं के मारने से मरना और जिलाने से जीना होता है। यही राजकुमार मुनि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए गये थे। उस समय श्री रघुनाथ जी ने बिना फल का वाण मुझे मारा था जिससे मैं क्षण भर में सौ योजन पार आ गिरा। उनसे बैर करने में भलाई नहीं है। मेरी दशा तो उस समय से भ्रंगी के कीड़े की तरह हो गयी है। अब मैं जहां-तहां श्रीराम-लक्ष्मण दोनों भाइयों को ही देखता हूं और हे तात, यदि वे मनुष्य हैं तो भी बड़े शूरवीर हैं। उनसे विरोध करने में पूरा नहीं पड़ेगा अर्थात् सफलता नहीं मिलेगी। मारीच ने कहा कि जिसने ताड़का और सुबाहु को मारकर शिव जी का धनुष तोड़ दिया। खर-दूषण और त्रिशिरा का वध कर डाला, ऐसा प्रचंड बली भी कहीं मनुष्य हो सकता है?