गीता से गांधी जी ने ली थी प्रेरणा
गीता हिन्दुओं का पवित्र धर्मग्रंथ है। गीता ने कई व्यक्तियों को प्रेरणा दी है। प्रायः भवगतगीता को मोक्ष व अध्यात्म प्राप्ति के साधन के रूप में देखा जाता है। गीता कई दृष्टियों से जीवन के लिए प्रेेरणास्पद है। गीता हमें कर्म की प्रेरणा देती है। लोकमान्य तिलक ने गीता के ‘‘कमयोग’’ सिद्धान्त को महत्व दिया है। तिलक ने ‘‘कमयोग’’ के रूप में इस विचार की व्यावहारिकता पर बल दिया है। गांधी जी गीता के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। वास्तव मे तिलक की ‘‘गीता रहस्य’’ वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराती है। पुस्तक में ‘‘गीता’’ की सरल व्याख्या है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गीता के ‘‘कमयोग’’ सिद्धान्त से उन्हें प्रेरणा मिली थी। गांधी जी भी इसी विचार पर चल कर कर्तव्य पथ पर अग्रसर हुये।
गंाधी जी ने कहा था गीता से विरोध हिन्दू धर्म का विरोध है। एक सनातन धर्मी को यह समझना चाहिए कि गीता का जो भक्त होगा। वह जीवन में कभी निराश नहीं होगा। गीता में सभी धर्मो का आदर है। इसमें किसी भी धर्म का विरोध नहीं है। गांधी जी के विचार मानव मात्र की भलाई के लिए थे। गांधी जी ने जीवनपर्यन्त जो उपदेश दिये वे भगवतगीता से प्रेरित थे। सत्य आचरण की प्रेरणा उन्हें भगवतगीता से ही मिली थी।
गांधी जी जब विलायत मंे थे तो तब उन्हें ‘‘गीता’’ के बारे में ज्ञान हुआ। एडविन आर्नल्ड ‘‘गीता’’ का अनुवाद पढ़ रहे थे। तभी गांधी जी के मस्तिष्क में विचार आया कि जब एक विदेशी ‘गीता’ के प्रति अनुरागी है। तो वह ‘गीता’ के अध्ययन से क्यों अनभिज्ञ हो। बस उन्होंने गीता पढ़ने की ठान ली। उन्होंने गीता के एक-एक श्लोक का अध्ययन किया। ये श्लोक उनकी दिल की गहराईयों में उतरते चले गये। कहते है कि गांधी जी ने तिलक की ‘‘गीता रहस्य’’ की पुस्तक का अध्ययन किया और गीता के बारे में उन्हें सरल अर्थो मंे ज्ञान हुआ। तब गांधी जी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को ‘गीता’ का अध्ययन करना चाहिए। इसके अध्ययन से कोई भी व्यक्ति अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। गांधी जी ने सत्य, अहिंसा, प्रेम व सद्आचरण को जीवन में अंगीकार किया। देश को स्वतंत्र करने के लिए उन्होंने सत्याग्रह पर जोर दिया। सत्य व अहिंसा के द्वारा ही हम देश को स्वतंत्र कर सकते हैं। दृढ़ इच्छा शक्ति, कमर्ठता, ध्येय के प्रति निष्ठा, कर्म करने की प्रेरणा, बाधाओं पर विजय प्राप्त करने का साहस आदि गुणांे को उन्होंने भगवतगीता से प्राप्त किया था। उनकी विचारधारा विश्व भर में लोकप्रिय हुयी।
गांधी जी ने भगवतगीता के संबंध में कहा था कि जब मैं उदास होता हूं तो इसके अध्ययन से मुझमें आशा की किरण फूटती है। तब मैं पुनः मुस्करा उठता हूं। इसलिए गीता का अध्ययन कर कोई निराश नहीं होता। गांधी जी ‘‘सर्वधर्म सम्भाव’’ पर विश्वास रखते थे। ईश्वर का कोई धर्म नहीं होता है। जो दूसरों का दुख-दर्द बांटता है, वही असली धार्मिक है। उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए सभी को एकजुट किया। सत्याग्रह के विचार ने देश बिना अधिक हिंसा के स्वतंत्र हुआ।
शांति दूत के रूप में गांधी जी को जाना जाता है। इस रूप मंे उन्हें विश्वव्यापी ख्याति मिली। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनिया गुटेरेस ने ळ.20 सम्मेलन के दौरान गांधी जी की प्रशंसा की क्योंकि उन्होंने अहिंसापूर्ण ढंग से देश को आजाद कराया। गीता में कहा गया है कि ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ गांधी जी पर इस श्लोक की गहरी छाप थी। श्री कृष्ण भगवतगीता में कहते हैं कि तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना है, फल तुम्हारा अधिकार नहीं है।
बाल गंगाधर तिलक व गांधी जी पर इस ‘कर्मयोग’ का अच्छा प्रभाव था जिसकों उन्होंने जीवन में शिरोधार्य किया। उन्होंने ग्रंथ के माध्यम से संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया था। गांधी जी ने गीता के रहस्य को समझा था। (हिफी)
(बृजमोहन पन्त-हिफी फीचर)