स्वास्थ जगत

जीवनरक्षक दवा के नाम पर मौत की डोज!

 

आज का इंसान धन के लिए शैतान बन गया है। धन अर्जित करना गलत नहीं है लेकिन किसी को जीवन घातक रोग के महंगे ईलाज के लिए लाखों रूपए अदा करने के बाद यदि दवा के स्थान पर नकली पानी भरा इंजेक्शन बेच दिया जाए तो इस से बड़ा पाप या अनैतिक व्यापार क्या हो सकता है। वेश्या तो धन के लिए सिर्फ शरीर बेचती है लेकिन जीवन रक्षक महंगी दवाओं के नाम पर पानी या नकली दवा बेचने वाले तो अपनी आत्मा को ही बेच रहे हैं। इससे ज्यादा घृणित अपराध क्या हो सकता है? तमाम कानून और औषधि पेटेंट व मानक नियंत्रण व्यवस्था के बावजूद खांसी जुकाम से लेकर कैंसर लिवर हार्ट की बीमारी की नकली दवा भी धड़ल्ले से बिक रही हैं।

इन दिनों नकली दवाओंका बढ़ता कारोबार न केवल चिन्ता का विषय है, बल्कि यह दवा नियमन के जिम्मेदार महकमे और कानून-व्यवस्था को भी कटघरे में खड़ा करता है। भारत में नकली और अवैध दवाओं का धंधा तेजी से पांव पसार रहा है, जिसकी वजह से रोगियों की जान जोखिम में है। कैंसर जैसी घातक बीमारी की भी बांग्लादेश सहित दूसरे देशों से आने वाली नकली और अवैध दवाएं रोगियों को जीवनदान देने की जगह धीरे-धीरे मौत की तरफ ढकेल रही हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक बड़ी फार्मा कंपनियों के नाम पर कैंसर की ऐसी नकली दवाएं बनाई जाती हैं और उनकी खेप को बाजार में खपाया जाता है। कैंसर और लीवर से जुड़ी गंभीर बीमारियों की नकली दवा औषधि विभाग से बिना मंजूरी लिये बाजार में लायी जा रही है जिससे ग्रे मार्केट को बढ़ावा मिल रहा है। हालात यह है कि नकली दवाओं के इस अवैध कारोबार ने बेहद बड़ा रूप ले लिया है। ऐसे कारोबारियों को अधिकारियों, पुलिस और राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त है। इसीलिए यह अवैध कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है और प्रशासनिक तंत्र इसे रोक पाने में पूरी तरह से विफल है। परिणामस्वरूप नकली दवाएं न केवल देशके विभिन्न क्षेत्रों में भेजी जा रही है, बल्कि भारत से ऐसी दवाओं की आपूर्ति चीन और अमेरिका सहित अन्य देशों को भी की जा रही है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांचने ऐसे ही अन्तरराष्ट्रीय गिरोह का भण्डाफोड़ किया है और इस मामले में सात आरोपियों को भी हिरासत में ले लिया है। दिल्ली राजधानी क्षेत्र में कैंसर की नकली दवाओं के उत्पादन और उसके विपणन में संलिप्त इस गिरोह में शामिल दो लोग ऐसे भी हैं, जो दिल्ली के जाने-माने कैंसर अस्पताल के कर्मचारी हैं। गिरफ्तार आरोपियों ने स्वीकार किया है कि वे कैंसर के एक लाख 96 हजार रुपये के इंजेक्शन में नकली दवाइयां भरकर बेचते थे। सात अन्तरराष्ट्रीय और दो भारतीय ब्राण्ड की नकली कैंसर की दवाएं भी बरामद की गयी हैं।

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने नकली दवाओं के एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया है।इस रैकेट में शामिल अब तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें से दो आरोपी दिल्ली के बड़े कैंसर अस्पताल के कर्मचारी हैं। पुलिस ने आरोपियों के पास से कैंसर की कुल नौ ब्रांड्स की नकली दवाइयां बरामद की हैं। इनमें से सात दवाइयां विदेशी ब्रांड्स की जबकि दो भारत में बनाई जाने वाली नकली दवाइयां हैं।

पुलिस का कहना है कि आरोपी अस्पताल में मरीजों को कीमोथेरेपी में इस्तेमाल में लाए जाने वाले इंजेक्शंस की खाली शीशी जुटाते थे, फिर उन शीशियों में एंटी फंगल दवा भरकर बेचते थे। आरोपियों के टारगेट पर दिल्ली के बाहर से आने वाले मरीज होते थे, खासतौर से हरियाणा, बिहार, नेपाल या फिर अफ्रीकी देशों से आने वाले मरीजों को वे अपना शिकार बनाते थे।
पुलिस ने जिन आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया है। उनके नाम विफल जैन, सूरज शत, नीरज चैहान, परवेज, कोमल तिवारी, अभिनय कोहली और तुषार चैहान हैं। इनमें से नीरज गुरुग्राम का रहने वाला है जबकि बाकी के छह दिल्ली के अलग अलग इलाकों के रहने वाले हैं। सभी आरोपी किसी न किसी तरह से मेडिकल क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। गिरफ्तार आरोपियों में दो कोमल तिवारी व अभिनव कोहली वर्तमान में रोहिणी स्थित राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र के कीमोथेरेपी विभाग में ही काम कर रहे थे। इनमें कोमल कीमोथेरेपी विभाग का इंचार्ज था, जबकि अभिनव इस विभाग में मरीजों को कीमोथेरेपी देने यानी ग्लूकोज में कीमोथेरेपी की दवा मिलाने का काम करता था।तीसरा आरोपित नीरज चैहान, नकली दवा बनाने के बाद उसे बेचने का काम करता था। वह पहले धर्मशिला, पारस व बीएलके जैसे कैंसर अस्पतालों में काम कर चुका है। क्राइम ब्रांचकी विशेष पुलिस आयुक्त शालिनी सिंह का कहना है कि उनकी टीमने लगातार तीन महीने तक पैनी नजर रखने के बाद इस गिरोह का भण्डाफोड़ किया है। इसके लिए दिल्ली राजधानी क्षेत्रमें सात-आठ स्थानों पर एक साथ छापेमारी की गयी और फ्लैटोंमें नकली दवाइयां बनाते हुए आरोपियों को रंगे हाथ पकड़ा गया। कैंसर की दवा की खाली शीशियों में नकली दवाएं भरी जाती थीं। इसके लिए रीफिलिंग और पैकेजिंग यूनिट लगायी गयी थी। कैंसर अस्पताल के दो कर्मचारी खाली शीशियों की व्यवस्था करते थे। यह रैकेट कितने समय से सक्रिय है, इसकी कोई पक्की जानकारी तो नहीं मिल पायी है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सुनियोजित ढंग से यह रैकेट काफी समय से सक्रिय रहा है। कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारी के लिए नकली दवा बनाने और उसे बेचने वाले का कार्य मानवता को शर्मसार करने वाला है। नकली दवा की पहचान करना जांच प्रयोगशाला के लिए भी आसान नहीं है। नकली दवा का धंधा करने वाले असली के तमाम कंटेंट इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे जांच प्रयोगशाला में दवा अमानक के तौर पर सामने ही नहीं आ रही। औषधि नियंत्रण संगठन के अधिकारी नकली दवाओं के इस नए ट्रेंड से हैरान हैं और अब ऐसी दवाओं की पहचान के लिए दवा की असली निर्माता कंपनी पर ही निर्भर हैं। नकली दवा का इस तरह का कारोबार नामी दवा कंपनियों के नाम पर भी हो रहा है।

जानकारी के अनुसार नकली और अमानक दवा का कारोबार कुल कारोबार का 5.5 फीसदी माना जाता है। यदि इसे सही माना जाए तो हजारों करोड़ सालाना का दवा कारोबार नकली और अमानक हैं। कई नामी कंपनियों के ब्रांड पर बाजार में 25 से 50 प्रतिशत तक का डिस्काउंट दिया जा रहा है। जो इन दवाओं के मार्जिन से भी करीब दोगुना है। जानकारी के मुताबिक अमानक दवा की जांच तो आसान होती है, लेकिन नकली की पहचान मूल कंपनी की मदद से ही संभव हो पाती है। कई नकली निर्माता किसी नामी ब्रांड का फायदा उठाने के लिए उसके नाम का इस्तेमाल कर उसी गुणवत्ता की दवाइयां बना देते हैं, जिससे उस कंपनी को तो नुकसान होता ही है, साथ ही दवा की गुणवत्ता कमजोर होने पर नकली दवा निर्माता बच निकलता है।नकली दवाएं चाहे जिस भी बीमारी की हों, इस पर नियंत्रण और नियमन करने का दायित्व सरकार और उसके दवा नियमन विभाग और प्रशासनिक मशीनरी का होता है ताकि नकली दवा के कारोबारियों में भय उत्पन्न हो और लोग जीवन का मूल्य चुका कर दवा के स्थान पर मौत की डोज न खरीदें। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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