कैसे राजा दशरथ का संपर्क हुआ शनि देव से

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राजा दशरथ के राज्य अयोध्घ्या की प्रजा उनके सुशासन में सुखी जीवन यापन कर रही थी सब तरफ सुख और शांति का माहौल था। तभी एक दिन ज्योतिषियों ने शनि को कृत्तिका नक्षत्र के अन्तिम चरण में देखकर कहा कि अब यह रोहिणी नक्षत्र का भेदन कर जायेगा। जिसे ‘रोहिणी-शकट-भेदन’भी कहा जाता है, और शनि का रोहणी में जाना देवता और असुर दोनों ही के लिये कष्टकारी और भय प्रदान करने वाला है। इसके प्रभव से बारह वर्ष तक अत्यंत दुःखदायी अकाल पड़ता है। ज्योतिषियों से ये बात सुन कर राजा दशरथ ने प्रजा की परेशानी को समझ कर वशिष्ठ ऋषि और अन्घ्य ज्ञानी पंडितों से कहा कि इस समस्या का कोई समाधान शीघ्र ही बताइए। इस पर वशिष्ठ जी ने कहा कि इसका हल कोई नहीं है और शनि के रोहिणी नक्षत्र में भेदन होने से प्रजाजन का सुखी रहना संभव नहीं क्घ्योंकि इस योग के दुष्प्रभाव से तो ब्रह्मा एवं इन्द्रा जैसे देवता भी रक्षा करने में असमर्थ हैं।
वशिष्ठ जी की बात सुनकर राजा सोचने लगे कि यदि वे इस संकट की घड़ी को न टाल सके तो उन्हें कायर समझा जाएगा। अतः वे दिव्य धनुष तथा दिव्य आयुधों से युक्त होकर अपने रथ को तेज गति से चलाते हुए चन्द्रमा से भी 3 लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल में ले गए। मणियों तथा रत्नों से सुशोभित स्वर्ण-निर्मित रथ में बैठे हुए महाबली राजा ने रोहिणी नक्षत्र के पीछे आकर रथ को रोक दिया। श्वेत अश्वो से युक्त और ऊँची-ऊँची ध्वजाओं से सुशोभित मुकुट में जड़े हुए बहुमुल्य रत्नों से प्रकाशमान राजा दशरथ उस समय आकाश में दूसरे सूर्य की तरह चमक रहे थे। शनि को कृत्तिका नक्षत्र के पश्चात् रोहिनी नक्षत्र में प्रवेश का इच्छुक देखकर राजा दशरथ धनुष पर बाण चढ़ा कर शनि के सामने डटकर खड़े हो गए।
अपने सामने देव असुरों के संहारक अस्त्रों से युक्त दशरथ को खड़ा देखकर शनि हैरान हो गए और हंसते हुए राजा से कहा कि उन्होंने ऐसा पुरुषार्थ किसी में नहीं देखा, क्योंकि देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और सर्प जाति के जीव शनि देखने मात्र से ही भयग्रस्त हो जाते हैं। वे राजा दशरथ के तप और पुरुषार्थ से अत्यन्त प्रसन्न हुए और इच्छानुसार वर मांगने को कहा। तब राजा ने कहा कि हे सूर्य-पुत्र शनि यदि आप प्रसन्न हैं तो जब तक नदियां, सागर, चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी इस संसार में है, तब तक आप रोहिणी शकट भेदन बिलकुल न करें।
राजो के इस पहले अनुरोध पर शनि ने एवमस्तु कहकर वर दे दिया। राजा दशरथ भी अपने को धन्य समझ कर वापस जाने लगे। तभी शनि देव ने रोक कर कहा कि वे उनसे बहुत ही प्रसन्न हैं इसलिए वे एक और वर भी मांग सकते हैं। तब दशरथ ने प्रसन्न होकर शनि से दूसरा वर मांगा, और शनि ने उन्घ्हें निर्भय करते हुए आश्घ्वस्घ्त किया कि 12वर्ष तक उनके राज्य में कोई भी अकाल नहीं पड़ेगा। उनकी यश-कीर्ति तीनों लोकों में फैलेगी। तब प्रसन्घ्न दशरथ ने शनि स्घ्त्रोत गा कर उनकी स्घ्तुति की।