अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

आत्मा की अबूझ पहेली

आत्मा क्या है?

(बृजमोहन पन्त-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

मृत्यु एक कड़वा सच है। वैसे ही आत्मा/आइंस्टीन का नियम है ई बराबर एमसी2 1 इसे जैविक ऊर्जा भी कह सकते हैं। सी बराबर प्रकाश की गति। आत्मा का कोई भार नहीं होता जैसे प्रकाश यह जैविक चक्र है। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होगी। आत्मा मृत्यु के बाद प्रकाश के रूप में परिवर्तित हो जाती है। पुनर्जन्म पूर्व कर्मो के आधार पर होता है। सद्कर्म करने वाले को सदगति मिलती है। उनका दूसरा जन्म नहीं होता। जिनको भौतिक विश्व का मोह नहीं होता और जो संतुष्ट हैं, उन्हें प्रसन्नता मिलती है। आत्मा उच्च मार्ग का अनुसरण करती है। आत्मा अजर अमर है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जैसे मानव एक वस्त्र छोड़कर नये वस्त्र धारण करता है। वैसे ही आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है।

आत्मा क्या है? इसे आज तक कोई समझ नहीं पा सका है। यह एक रहस्य है। अधिकतर लोग आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। लेकिन आत्मा के अस्तित्व को अभी सिद्ध करना संभव नहीं हो पाया है। वैज्ञानिकों ने आत्मा के अस्तित्व की जांच के लिए प्रयोग भी किये हैं। वैज्ञानिकों ने एक मरणासन्न व्यक्ति को एक कांच के बर्तन में बंद किया जब उसकी मृत्यु हुयी तेा कांच का बर्तन चटक गया, तब वैज्ञानिकों ने ऐसा माना कि आत्मा एक प्रकार ऊर्जा है जिसके दाब से कांच का बर्तन टूट गया।
कई व्यक्तियों ने आत्मा का अनुभव किया है जो मर कर जीवित हो गये, श्मशान से वापिस घर लाये गये तो उन्होंने अपने अनुभव लोगों से साझा किये। उन्होंने बताया कि मृत्यु के बाद उन्हें असीम शांति अनुभव हो रही थी। उन्हें परिजनों के शोक का गम था लेकिन कर कुछ नहीं सकते थे। मरने के बाद जीवित लोग बताते हैं कि धर्मराज के आदमी उन्हें किसी स्थान पर ले गये जहां उनके कर्मो के आधार पर दण्ड दिया जाना था। धर्मराज ने अपने दूतों से कहा कि आप गलत व्यक्ति को पकड़ ले आये हो। इसे वापिस भेजो। उसी वक्त उसी नाम के दूसरे व्यक्ति की मृत्यु हो गयी।
कुछ जिन्दा व्यक्ति बताते हैं कि मृत्यु के बाद उन्होंने ऐसी जगह में स्वंय को पाया जहां सुगंधित पुष्प, बाग-बगीचे, हरियाली, सुंदर तितलियां, पक्षी एक खुशनुमा वातावरण पैदा कर रहे थे। ऐसे वातावरण में उन्हें असीम शांति मिल रही थी। उन्हें अनुभव हो रहा था कि उन्हंे समस्त भौतिक कष्ट, चिंताओ व पीड़ा से मुक्ति मिल गयी है।
हिन्दू धर्म के अनुसार आत्मा का पुनर्जन्म होता है। पुनर्जन्म की घटनायें समाचार पत्रों में चर्चा का विषय बनती रही है जो पुनर्जन्म की धारणा की पुष्टि करती है। पुनर्जन्म की याददाश्त अनुसार एक हत्या की घटना का पर्दाफाश हुआ है।
मृत्यु एक कड़वा सच है। वैसे ही आत्मा/आइंस्टीन का नियम है ई बराबर एमसी2 1 इसे जैविक ऊर्जा भी कह सकते हैं। सी बराबर प्रकाश की गति। आत्मा का कोई भार नहीं होता जैसे प्रकाश यह जैविक चक्र है। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होगी। आत्मा मृत्यु के बाद प्रकाश के रूप में परिवर्तित हो जाती है। पुनर्जन्म पूर्व कर्मो के आधार पर होता है। सद्कर्म करने वाले को सदगति मिलती है। उनका दूसरा जन्म नहीं होता। जिनको भौतिक विश्व का मोह नहीं होता और जो संतुष्ट हैं, उन्हें प्रसन्नता मिलती है। आत्मा उच्च मार्ग का अनुसरण करती है। आत्मा अजर अमर है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जैसे मानव एक वस्त्र छोड़कर नये वस्त्र धारण करता है। वैसे ही आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है।
आत्मा को प्रकाश ऊर्जा या ईश्वर तंरग भी कहा गया है। भौतिक शास्त्रियों ने बताया है कि प्रकाश को ले जाने वाला ईथर माध्यम है जो भ्रमित चमक रखने वाला व पारदर्शी है। उन्नीसवीं सदी के भौतिक शास्त्रियों ने बताया था कि यह चमत्कार भ्रमित करने वाला होता है। प्रकाश और दूसरी विद्युत चुम्बकीय तरंगे महाशून्य में निर्बाध रूप से संचरित होती है। ईथर व प्रकाश ऊर्जा (आत्मा) सदृश्य होती है। यह प्रकाश ऊर्जा पूर्व में शरीर की आकृति के अनुरूप होती है। बाद में आकाश मंे संचरण करती है। आत्मा की चमक किसी व्यक्ति के विचारों, कर्मा व गुणों के अनुसार मद्धिम या तीव्र होती हैं। संतों व महापुरूषों के आभा मण्डल यही प्रकाश चक्र है। इसका रंग लाल, पीला या सफेद होता है। यह चेतना ही है जिससे महान व्यक्तियों के शब्दों, विचारों, भावों में प्रभाव, इच्छाशक्ति, दृढ़ता होती है। जिससे लोग प्रभावित होते है। विश्व उनके विचारों को ग्रहण करता है। ये विचार समग्र ब्रहमांड में व्याप्त होती है। यह चेतना ही होती है जो मानव जाति का दिगदर्शन करती है और विश्व उनके भौतिक कार्यो का याद करेगा।
आत्मा चेतना ही है। चेतना का जैसा विकास होता है, उसी के अनुरूप कर्म, चरित्र व वैभव होता है। व्यक्ति का जैसा कर्म होगा। वैसा ही उसको फल प्राप्त होगा।
मनुष्य ही नहीं कीट-पंतगे, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों में भी चेतना होती है। पेड़-पौधे भी संगीत प्रेमी होते हैं। संगीत की ध्वनि तंरगों के बीच ये तेजी से विकसित होते हैं। जहां सद् आत्मायें हैं, वहीं दुरात्मायें भी होती हैं, जो हिंसा, घृणा फैलाने, द्वेष, शत्रुता, भ्रष्ट आचरण, छल कपट व कुकर्मो में लिप्त होती है। इनका अंत भी बुरा होता है। उच्च स्तर की चेतना मनुष्य को महापुरूष बना देती है। निर्जीव वस्तुओं में भी वैज्ञानिकों ने चेतना का पता लगाया है। इनके मोलेक्यूूल चेतना रखते हैं। इस तरह आत्मा अर्थात् चेतना आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है। (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button