अध्यात्म

Theory of karma (कर्म का सिद्धांत)

हालाहल विष किसने पिया था, शिव ने

जब भी कोई अमृत मंथन करते हैं आप जब भी कोई दिव्य कार्य लेकर चलते हैं तो वो पहले तमोगुण ऊपर आता है। ये सिद्धांत याद रखना कोई भी project या नया business ले के चलो। सेवा करने निकलो धर्म करने निकलो, साधना करने निकलो ।
ये सिद्धांत है पहले तमोगुण निकलेगा। उभर के बाहर आएगा। फिर रजो गुण आएगा। जब देवाताओं ने अमृत मंथन किया था तो पहले क्या चीज निकला था? अमृत निकला था न…..नहीं विष निकला था और अगर तुम्हारा सिद्धांत बाबा मान ले तो? उस विष को जो देख रहा है और वापस ढकेल दे समुंदर में तो तमो गुण बाहर कैसे आएगा। फिर वो विष बाहर आएगा ही नहीं और जब तक हालाहल विष बाहर नहीं आएगा तब तक रजो गुण को रास्ता नहीं मिलेगा। जिन की बाहर लाइन लगी है बाबा ये कहता है कि जो होना है वो जल्द हो और जो release होना है जल्दी हो।
जिनको भगाना है भाग जाए जिनको रूकना है वेा रूक जाएगा जो होना है वो जल्द हो जाएwhole process should act immediately तुम डरते हो। इस जहर को तुरंत ही बाहर निकाल दो।
एक उदाहरण मैं दूंगा, मैं नहीं डरता, डरना भी नहीं चाहिए। पहला तो हलाहल विष तुम्हारे बाहर आएगा और बाद में शिव का ध्यान, शिव ध्यान ही परमात्मा है जो तुम्हारे भीतर की आत्मा है आत्मा ही तो परमात्मा कर ………बोलो हैं न, परमात्मा के बीच का………….. यही आत्मा है शिव भीतर है शिव बाहर है।
विष किसने कपया था? हालाहल विष किसने पिया था, शिव ने, शिव ही ने ही पिया था हलाहल विष, किसने पिया था? शिव ही ने तो पिया था। अमृत देवी देवताओं ने पिया। शिव ने विष पिया ओर नीनकण्ठ कहलाए। दिव्य महादेव शम्भु, सारी दुनिया भी उसी का नाम लेती है तो एक आनंद की लहर दौड़ जाती है उसने पिया। तुम्हारे जीवन में जब तुम कोई कार्य करते हो जो भी नया काम करोगे पहले हलाहल विष ही ऊपर आता है, कौन पियेगा, शिव ही! शिव, जन्म जन्मांतर से पीता चला आया है और अब भी पीना पड़ेगा। जो शिव रस की ओर जा रहा है, पिए। जो शिव रस की ओर नहींे जा रहा है, नहीं पहुंच रहा है वो उस विष को जलाने का काम करेगा। नष्ट करेगा। फेंकेगा। वो और लोगों को कष्ट पहुंचाए रहेगा और अगर खुद पी लेगा तो शिव, नीलकण्ठ हो जाएगा। तो जो भी तुम काम करोगे सच्चे मन से करोगे, पहले तुम्हारे कर्मों के अनुसार तमोगुण उत्पन्न होके बाहर आएगा। लोग विरोध करेंगे, लोग कहेंगे तुम क्या कर रहे हो ये तो तुम्हारा पागलपन है। लोग नहीं समझेंगे तुमने ही इस काम में हाथ क्यों डाला तुम इस काम के लायक ही नहीं हो। ये तमोगुण है शब्द है सिद्धान्त है, अगर तुम इसको पी गए तो तुम नीलकण्ठ हो जाओगे। अगर तुमने उस को लेकर लोगों से चिटकना शुरू कर दिया तो गलत है- अच्छा तू मुझे कहता है मैं तुझे बताता हूं तो उस समय तुम माया में फंस जाओगे। पहले वो निकालना है, उसके बाद जब अमृत मंथन हुआ हलाहल विष जब समाप्त हो गया। शिव ने उसको ग्रहण किया क्योंकि जितने भी पुराण है उन्होंने ये सिद्धान्त बताए हैं कि इसको तुम अपने जीवन में उतारो।
इसको कृपा रूप में नहीं लेना हैं। इसको जीवन में एज इट इज रियलटी लेना है। तुम में से जितने भी साधक अपने क्षेत्र में ध्यान खोज रहे थे- तो शुरू में विरोध हो सकता है अमृत मंथन है- अमृत निकालना है वे तुम्हें अमृत देता है। अमृत लोगांे तक पहुचाता है उनका जीवन सराहता है। उनके जीवन का कष्ट और दुख दूर करना है। तो जब तुम वो अमृत दोगे तो मंथन होगा। पहला सिद्धान्त तमो गुण बाहर आएगा। लोग विरोध करते हैं और अगर उसको शांति से सुन लिया तो तमोगुण आएगा, तमोगुण से उतना खतरा नहीं है। जितना रजोगुण से है। जब अमृत मंथन हुआ था तो जहर के बाद निकला क्या? हीरे जवाहरात बहुत धन, लक्ष्मी संपत्ति। लक्ष्मी भगवती लक्ष्मी जो रजोगुण का प्रतीक है। रजोगुण जो राजसीय देवे, संपत्ति देवे वो रजोगुण था। रजोगुण का नाम है। इसलिए जो कि सिद्ध मार्ग में सच्चे मार्ग में बढ़ता है साधना मार्ग की ओर बढ़ता है तो पहले तो उसके भीतर की कमी कर्म उभर के बाहर आते हैं। बहुत से लोग आके बोलते हैं बाबा जी साधना शुरू किया और शक्तिपात किया तो बुखार आ गया, जो इसको सह गया तो जहर इसके कर्मों से बाहर आ गया। जब वो साधना शुरू करता है तो हरि उसके पीछे धन ऐश्वर्य संपत्ति धीरे-धीरे चलना शुरू करता है। क्या करते हैं धन संपत्ति ऐश्वर्य जहां हाथ डालों वहीं, जहां न डालो वहीं यह भी एक बड़ी अजीब बात है लक्ष्मी तुम्हारे पीछे-पीछें चलती हैं लेकिन यदि तुमने घूम कर उसे पकड़ लिया, यदि धन की ओर देखकर तुमने धन को लपकने का प्रयास किया तो तुम उसके हकदार नहीं हो। तो तुम घिर जाओगे।
धार्मिक संस्थाए जो चलती हैं उनमें धन बरसता है इस धन को लूटने के लिए बहुत से लोग आ जाते हैं। मैं भी कुछ कमा लू कि कुछ ले जाऊं जो कमा गया, इस में वो मारा गया। शिव मंदिर का एक कंकड़ भी जो घर में ले गए तो बिनाश तय है। मेहनत की कमाई जो मैंने बताया जो तुमने कमाया है उसी धन के ऊपर अपना हक है। जो किसी और का है उसे प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। बड़े-बड़े महाऋषि बड़े-बड़े मुनि भी यही कहते हैं। दूसरी सीढ़ी पर आ कर जो उनकी संपत्ति आनी है वह तुम्हारे पास आएंगी ही। अगर आठों सिद्धियां तुम्हारे पास आनी हैं तो अष्ठ सिद्धियां वो तो आएंगी। शिव ऐसे लोग तुम्हारे चारों ओर खड़ा कर देगा। जिनके हाथ से उसने पुष्प बरसाया है ऐसे लोग अपने आप संसार से खीचे हुए तुम्हारे दरबाजे पर आ के खड़े हो जाएगें। बोलेगें वो क्योंकि शिव ने उनके हाथ से तुम्हें बनाया है। लेकिन यदि तुम अटक गए तुम फिसल गए। उस पुष्प की तुम अपने हित के प्रयोग में ले आए तो फल तय है।
इसलिए नारायण बोलते हैं कि यदि हमें प्राप्त करना है तो उससे पहले मैं तेरी परीक्षा लेता हूं। इन्द्र बोलता है मैं तेरी परीक्षा लेता हूं। इंद्र देवताओं का राजा है। राजा अर्थात रजोगुणी। राजा क्या हुआ रजोगुणी। तो जो मनुष्य को सत्य को प्राप्त कर लेगें। जो सत्य को प्राप्त करने के पास पहुंच जाता है तो हमारे पुराणों में लिखा है उसी समय राजा इंद्र वहां पहंुच जाता है तप भंग करने को। ये राजा इंद्र भी तुम्हारे ही कर्म हैं जो भीतर संचित बैठे हैं।
तमोगुण से रजोगुण आ जाता है। रजोगुण में स्वर्ग भी आता है और भी बहुत कुछ वासना भी ऐश्वर्य की बस्तुएं भी आ जाती हैं जो साधक है, तो आठों सिद्धिया उसके पीछे-पीछे निकलती हैं और अगर वो सिद्धियों की ओर खिच जाता है तो वो सिद्धियां उसको घेर कर उसे अपना गुलाम बना लेती है।
इसलिए जो नारायण बोलते हैं पहले जो साधक हैं वो मुझे प्राप्त करें। मैं खिलौने उसके आगे डालूगां। वो ये सिद्धियों के एक खिलौने ले ले। ये एश्वर्य के खिलौने ले ले। इंद्र बोलता है कि अप्सराओं के खिलौने ले ले। कुछ भी कर उन्हीं को प्राप्त कर। तुम भी शिव योग के साधक हो तो यह सब चीजें बहुत तेजी से तुम्हारे साथ होनी चाहिए।
तुमने और संस्थाओं ने भी देखा होगा यहां भी देखा होगा यहां जो भी होता है बड़ी तेजी से होता है। क्योंकि अमृत मंथन की प्रक्रिया बहुत तेज चलती है। तमोगुण बहुत तेजी से बाहर आता है। रजोगुण बहुत तेज बाहर आता है। कुछ तमोगुण से गायब तो कुछ रजोगुण को पकड़ लेते हैं वो संपत्ति को एश्वर्य को पैसे को भी प्रधानता देकर फिर वापस उसी जड़ा में फंा जरते हैं, वही 84 लाख योनियां, वहीं जीवन मरण का चक्कर। सब दरिद्रता कष्ट, दुख।
रजोगुण को भी जो नहीं पकड़ता है। और इन दोनों को छोड़ता हुआ साधक आगे बड़ता है तो तीसरा है। सतोगुण!
वह सतोगुण में प्रवेश करता है। सतोगुण में जब तुम प्रवेश करते हो तो तुमको असीम शांति की अनुभूति होती है। तुम्हारे भीतर से प्रेम जागिृत होता है। उस समय किसी की आपसी की गलती किसी भी आदमी में बुराई नहीं मिलती। उस समय जो सब में अच्छा देखता है अच्छा शिव की कृपा उसी को मिला करती है। http://hindustansamacharnews.com/uncategorized/brahma-vishnu-sadashiv-har-har-omkara/

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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