अध्यात्म

रघुनाथ जी की शरण मै जाने से ही कल्याण होगा

जाहु भवन कुल कुसल विचारी, सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी।

जाहु भवन कुल कुसल विचारी, सुनत जरा दीन्हिसि बहु गारी।
गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा, कहु जग मोहि समान को जोधा।
तब मारीच हृदयं अनुमाना, नवहि विरोधें नहिं कल्याना।
सस्त्री, मर्मी, प्रभु सठ, धनी, बैद, वंदि कबि भानस गुनी।
उभय भांति देखा निज मरना, तब ताकिसि रघुनायक सरना।
उतरु देत मोहि बधव अभागें, कस न मरौं रघुपति सर लागे।
अस जियं जानि दसानन संगा, चला राम पद प्रेम अभंगा।
मन अति हरष जनाब न तेही, आजु देखिहउं परम सनेही।
निज परम प्रीतम देखि लोचन सुफल करि सुख पाइहौं।
श्री सहित अनुज समेत कृपानिकेत पद मन लाइहौं।
निर्वान दायक क्रोध जाकर भगति अबसहि बसकरी।
निज पानि सर संधानि सो मोहि बधिहि सुख सागर हरी।
मम पाछें धर धावत धरें सरासन बान।
फिरि फिरि प्रभुहिं बिलोकिहउं धन्य न मो सम आन। 

 

मारीच रावण से कहता है कि अपने कुल की कुशल विचार कर आप घर लौट जाइए। यह सुनकर रावण क्रोधित हुआ और उसने बहुत सी गालियां दीं। कहने लगा, अरे मूर्ख, तू गुरु की तरह मुझे ज्ञान सिखाता है, बता तो, मेरे समान इस संसार में कौन योद्धा है? तब मारीच ने हृदय में अनुमान किया कि शस्त्री (शस्त्रधारी), मर्मी (भेद जानने वाला), समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान, वैद्य, भाट, कवि और रसोइया- इन नौ लोगों से विरोध करने से कल्याण नहीं होता। मारीच ने दोनों प्रकार से अपनी मृत्यु देखी, तब उसने श्री रघुनाथ जी की शरण तकी अर्थात् उनकी शरण में ही जाने से कल्याण समझा। उसने सोचा यदि रावण की बात का उत्तर देता हूं तो यह अभागा मुझे मार डालेगा, तो श्री रघुनाथ जी के बाण लगने से ही क्यों न मरूं। हृदय में ऐसा समझकर वह रावण के साथ चला। श्री राम जी के चरणों में उसका अखंड प्रेम है। उसके मन में इस बात का अत्यंत हर्ष है कि आज मैं अपने परम सनेही श्री रामजी को देखूंगा लेकिन उसने अपनी यह खुशी रावण को नहीं बतायी। वह मन ही मन सोचने लगा अब मैं अपने परम प्रियतम को देखकर नेत्रों को सफल करके सुख पाऊंगा। जानकी जी और छोटे भाई लक्ष्मण समेत कृपा निधान श्रीराम जी के चरणों में मन लगाऊंगा। वह सोच रहा है कि जिनका क्रोध भी मोक्ष देने वाला है और जिनकी भक्ति उन अवश अर्थात् किसी के वश में न होने वाले भगवान को भी वश में करने वाली है, अहा, वे ही आनंद के समुद्र श्री हरि अपने हाथों से वाण संधान कर मेरा वध करेंगे। धनुष वाण धारण किये वे (प्रभु) मेरे पीछे-पीछे पृथ्वी पर अर्थात् मुझे पकड़ने के लिए दौड़ेंगे, ऐसे प्रभु को मैं मुड़-मुड़कर देखूंगा। मेरे समान दूसरा कोई धन्य नहीं है।

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