सम-सामयिक

ईवीएम-वीवीपैट को क्लीन चिट

 

देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात् सुप्रीम कोर्ट की अपनी अलग गरिमा है। संविधान के दायरे मंे यह काम करता है लेकिन जरूरत पड़ने पर केन्द्र सरकार पर भी जुर्माना लगाने में हिचकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए केन्द्र सरकार पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा है कि केन्द्र सरकार के पास विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से आदेश को चुनौती देने का कोई तुक या औचित्य नहीं है। इसलिए मौजूदा याचिका कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। याचिकाकर्ता (केन्द्र) को यह चेतावनी भी दी गयी कि भविष्य मंे ऐसी अगंभीर याचिका दायर न करें। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट इस तरह का क्रांतिकारी फैसला लेता है तो दूसरी तरफ अपने अधिकारों की सीमा में भी रहता है। देश का निर्वाचन आयोग भी एक स्वायत्तशासी संस्था है। हालंाकि इस पर सवाल उठाये जा सकते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गत 24 अप्रैल को स्पष्ट रूप से कहा था कि हम चुनाव आयोग के लिए नियंत्रक अथारिटी नहीं बन सकते। दरअसल देश मंे 18वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव को लेकर भी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वैरिफिएबल पेपर आडिट ट्रेल (वीवीपैट) का सवाल खड़ा किया गया। मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंचा। आरोप लगाने वालों के पास कोई ऐसे सबूत भी नहीं मिले जिनको आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करता। कोर्ट ने सवाल किया था कि क्या वह (कोर्ट) सिर्फ हैकिंग और हेर फेर के संदेह पर ही ईवीएम के बारे मंे आदेश जारी कर सकता है? कोर्ट को लगा कि यह आधार पर्याप्त नहीं है। इसलिए 25 अप्रैल को ईवीएम और वीपीपैट को लेकर दायर सभी याचिकाएं खारिज कर दी गयी हैं। कहा जा सकता है कि ईवीएम-वीवीपैट को इस प्रकार क्लीन चिट मिल गयी है।

सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम-वीवीपैट को लेकर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने सभी 100 फीसदी सत्यापन की याचिकाएं खारिज की है। जजों ने यह फैसला सहमति से लिया है। आपको बता दें कि कोर्ट ने वीवीपैट के साथ ईवीएम के वोटों के 100 फीसदी सत्यापन की मांग करने वाली याचिका पर यह फैसला दिया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते समय पेपर बैलेट की मांग को भी खारिज कर दिया है। फैसला सुनाते हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हमने सभी याचिकाओं को खारिज किया है। लोकतंत्र अपने विभिन्न स्तंभों के बीच विश्वास पर आधारित है। इस पर कोर्ट के साक्ष्यों पर आधारित रहा है। वहीं जस्टिस दीपांकर दत्ता ने फैसला सुनाते समय कहा कि किसी प्रणाली पर आंख मूंदकर संदेह करना सही नहीं है। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं। उनमें ईवीएम में सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी होने पर, सिंबल लोडिंग इकाई को सील कर दिया जाना चाहिए और कंटेनरों में सुरक्षित किया जाना चाहिए। उम्मीदवार और उनके प्रतिनिधि मुहर पर हस्ताक्षर करेंगे। सीलबंद कंटेनरों को नतीजों की घोषणा के बाद 45 दिनों तक ईवीएम के साथ स्टोर रूम में रखा जाएगा। अपने दूसरे निर्देश में कोर्ट ने कहा कि विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र प्रति संसदीय क्षेत्र में घोषणा के बाद ईवीएम के निर्माताओं के इंजीनियरों एक टीम द्वारा जांच और सत्यापन किया जाएगा। उम्मीदवार 2 और 3 के लिखित अनुरोध पर परिणाम घोषित हो जाने के 7 दिनों में ये जांच होनी चाहिए। वास्तविक लागत अनुरोध करने वाले उम्मीदवार द्वारा वहन की जाएगी। ईवीएम से छेड़छाड़ पाए जाने पर खर्चा वापस किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह वोटों की पर्चियों की गिनती के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन के सुझाव की जांच करे और क्या चुनाव चिन्ह के साथ-साथ प्रत्येक पार्टी के लिए एक बार कोड भी हो सकता है। कोर्ट ने कहा है कि ऐसा अनुरोध परिणाम घोषित होने के एक सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को वीवीपैट की गिनती में मशीन की मदद लेने की संभावना को तलाशने का सुझाव दिया है। दो जजों की पीठ ने वीवीपैट की गिनती के मुद्दे पर समवर्ती लेकिन अलग-अलग फैसले सुनाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई प्रत्याशी वेरिफिकेशन की मांग करता है तो उस स्थिति में इसका खर्चा उसी से वसूला जाए, अगर ईवीएम में कोई छेड़छाड़ मिलती है तो उसे खर्चा वापस किया जाए। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से चार अहम सवाल पूछे थे। साथ ही न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव आयोग (ईसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी को कुछ सवालों के जवाब देने के लिए अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा था।

कोर्ट ने आयोग से सवाल पूछे थे कि क्या माइक्रो कंट्रोलर कंट्रोलिंग यूनिट में लगा होता है या फिर वीवीपैट में ? क्या माइक्रो कंट्रोलर वन टाइम प्रोग्रेमबल होता है ? आयोग के पास चुनाव चिन्ह अंकित करने के लिए कितने यूनिट उपलब्ध हैं और आपने कहा कि चुनाव याचिका दायर करने की सीमा अवधि 30 दिन है और इस प्रकार स्टोरेज और रिकॉर्ड 45 दिनों तक बनाए रखा जाता है लेकिन लिमिटेशन डे 45 दिन है, आपको इसे सही करना होगा।

उच्चतम न्यायालय ने चुनाव में सभी ‘वीवीपैट’ पर्चियों की गिनती का अनुरोध करने वाली याचिका पर निर्वाचन आयोग और केंद्र से जवाब मांगा था। वर्तमान में, वीवीपैट पर्चियों के माध्यम से केवल पांच चयनित ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के सत्यापन का नियम है। ‘वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) एक स्वतंत्र वोट सत्यापन प्रणाली है, जो मतदाता को यह देखने की अनुमति देती है कि उसका वोट उसी उम्मीदवार को गया है या नहीं, जिसे उसने वोट दिया है। याचिका में कहा गया है कि सरकार ने लगभग 24 लाख वीवीपैट की खरीद पर लगभग 5,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन वर्तमान में, केवल लगभग 20,000 वीवीपैट पर्चियां ही सत्यापित हैं।

कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अहम हलफनामा दाखिल किया है। चुनाव आयोग ने इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के साथ वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) का बचाव किया है। चुनाव आयोग ने कहा है कि, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ईवीएम को बदनाम करने का एक और प्रयास किया जा रहा। यह कोशिश बार- बार होती रहेगी। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में वकील अमित शर्मा के माध्यम से हलफनामा दाखिल किया था। चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि, यह याचिका अस्पष्ट और आधारहीन आधारों पर है। साथ ही ईवीएम की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करने का एक और प्रयास है। भारत निर्वाचन आयोग का अनुमान है कि ईवीएम-वीवीपैट प्रणाली पर संदेह जताने वाली वर्तमान याचिका 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ऐसी आखिरी याचिका नहीं होगी। इन्हीं सब आधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी हैं। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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