सत्ता संग्राम

कमाल के अपने भइयन गुरु

भइयन गुरु खांटी प्रगतिवादी

भइयन गुरु खांटी प्रगतिवादी हैं। गतिशीलता उनके प्रगतिवाद का मूल है। वह स्थायित्व को जड़ता मानते हैं।वह किसी भी विचारधारा को ओढ़ते-दशाते नहीं। परिवर्तन प्रकृति का नियम है इसी सिद्धांत को उन्होंने आत्मसात किया। वह ऐसी गाय भी नहीं जो एक खूंटे से बध कर चारा-पानी के लिए रम्भाती रहे और अपने मालिक पर निर्भर रहे। वह स्वच्छंदतावादी उस छुट्टे सांड की तरह हैं, जिसने जहाँ हरियाली देखी वहीं मुँह मार बैठा। वह परजीवी होते हुए भी आत्मनिर्भरतावादी हैं। खादी को उन्होंने कभी बिचार नहीं समझा बल्कि खादी स्वयं उनमें आत्मसात हो गयी।
भइयन गुरु खांटी खादीजीवी हैं। राजनीति में आने से पूर्व वह मैट्रिक फेल होने के बाद साईकिल की पंचर बनाते थे।राजनीति में जब उन्होंने अपना पहला कदम रखा था तो उन्हें चुनाव कार्यालय की साफ सफाई और आगंतुकों के देखभाल की जिम्मेदारी मिली थी। उस दौरान उनकी पार्टी हासिए पर थी, लोग नाम तक सुनना नहीं पसंद करते थे लेकिन वक्त ऐसा बदला कि पार्टी आलाकमान के भईयन गुरु खास बन गए। पहली बार टिकट मिलते ही विधायक बन गए। भइयन गुरु अब तो इतने अनुभवशील प्राणी हो गए हैं कि हर सरकार में वह कैबिनेटमंत्री रहते हैं। हर पांच साल बाद हवा का रुख देख कर पलटी मार जाते हैं। जात-पात की दुहाई देकर अपनी जीत पक्की कर लेते हैं।
भइयन गुरु सौ फिसदी चुनाव और सत्ताजीवी हैं।दलबदल तो उनके जीन में समाया है। वह अनगिनत टोपियां अपने पास रखते हैं। उन्हें जब जिस टोपी की जरुरत पड़ी उसे सर पर रख लिया। टोपी धारण करते ही उनकी धारणा बदल जाती है। गले में दूसरे दल का दुपट्टा सिर पर आते ही असली चुनावजीवी हो जाते हैं। यह फर्क करना मुश्किल होता है कि वह किस मिट्टी के बने हैं।
भइयन गुरु गतिशीलता और प्रगतिवाद में इतना अधिक भरोसा रखते हैं कि उनके विचार और दर्शन को समझना आसान नहीं है। वह कहते हैं कि खिड़कियां खोलकर रखो तो फिजाओं से हवा के रुख का पता चलता है। राजनीति का चतुर खिलाड़ी वहीं है जो तूफान की आहट को भाँप सुरक्षित ठिकाना तलाश ले। विपरीत मौसम से लड़ना भइयन गुरु समझदारी नहीं समझते। इसीलिए हर पांच साल में दल और दिल बदलते रहते हैं। चुनाव आते ही उनके विचार बदल जाते हैं और उनका हृदय परिवर्तन हो जाता है। कल तक जिसे वह गालियां देते थे आज उसे गले लगाने को बेताब दिखते हैं।
राजनीति में अब उनका बड़ा नाम है। भइयन गुरु की हर दल और सरकार में चलती है। क्योंकि वह जिस जाति से आते हैं वह सियासत की प्राणवायु है, जिसकी वजह से वह राजनीति के सदाबहार चेहरे हैं। किसी की मजाल जो उन्हें छेड़ दे। उनके पास समर्थकों की बड़ी फौज भी है। वह सरकार गिराने और बनाने का रिमोट खुद अपने हाथ में रखते हैं। वह कुर्सी का मोह कभी नहीं छोड़
पाते हैं। इसी वजह से चुनावी मौसम आते ही वह सुरक्षित ठिकाने की तलाश में लग जाते हैं। पार्टी के सत्ता में आते ही मंत्रिमंडल के पहले गठन में कैबिनेट मंत्री के रुप में शपथ लेते हैं। सरकार किसी की बने, इससे भइयन गुरु की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। (हिफी)

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