लेखक की कलम

कसमसाती धरती और हमारी लापरवाही

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

पिछले कुछ समय से दुनिया के कई हिस्सों में आ रहे भूकम्प संकेत दे रहे हैं कि धरती की बेचैनी कहीं न कहीं बहुत बढ़ गई है और यह आने वाली विनाशकारी आशंका की सूचना दे रही है। हाल ही में नेपाल की भूमि हिल गई। 6.4 तीव्रता वाले इस भूकम्प का केंद्र काठमांडो से तीन सौ इकतीस किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में दस किलोमीटर जमीन के नीचे था। नेपाल में इसका असर सबसे ज्यादा देखा गया, लेकिन भारत में भी पिछले कुछ समय से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जिस तरह लगातार भूकम्प से तबाही के मामले सामने आ रहे हैं, उससे यह आशंका उभरती है कि कहीं धरती के भीतर कोई व्यापक उथल-पुथल तो नहीं हो रही है। गत 3 नवम्बर को आए भूकम्प को नेपाल में इससे पहले 2015 में आए विनाशकारी भूकम्प के बाद सबसे घातक और खतरनाक माना जा रहा है। गौरतलब है कि 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.8 तीव्रता का जबरदस्त भूकम्प आया था, जिसमें जानमाल की व्यापक हानि हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, इसमें करीब दस हजार लोगों की मौत हो गई, दस लाख घरों को नुकसान पहुंचा और करीब अट्ठाईस लाख लोग विस्थापित हुए थे । यो नेपाल में पिछले तीन सालों में 505 तीव्रता वाले भूकम्प पांच बार आ चुके हैं। भारत के भी कई राज्यों में पिछले कुछ समय से जिस तरहकम या ज्यादा तीव्रता वाले भूकम्प आ रहे हैं। इसके बावजूद हम पर्यावरण की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। भूकम्प आने का एक यह भी कारण है।
अब नेपाल से लेकर उत्तर भारत के एक बड़े इलाके में जिस तरह से भूकम्प ने तबाही मचाई है, उसे एक तरह से चेतावनी माना जाना चाहिए कि समय रहते खतरे से बचाव का इंतजाम कर लेना चाहिए। गनीमत रही कि इस भूकंप ने अपनी विनाशलीला से भारत को बचाए रखा वर्ना नेपाल जैसा ही बड़े जानमाल का नुकसान हो सकता था। नेपाल में डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की जान इस विनाशकारी भूकंप ने लील ली। इस बार धरती हिलने की जैसी घटना देखी गई, उससे भविष्य को लेकर कई तरह की आशंकाएं पैदा होना स्वाभाविक है। बता दें कि 6.4 तीव्रता वाले इस भूकम्प का केंद्र काठमांडो से तीन सौ इकतीस किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में दस किलोमीटर जमीन के नीचे था। इसलिए नेपाल में इसका असर सबसे ज्यादा देखा गया, लेकिन भारत में भी दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में देखा गया, जहां काफी देर तक लोगों ने धरती हिलते हुए महसूस किया। काफी समय से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जिस तरह लगातार भूकम्प के झटके सामने आ रहे हैं, उससे यह आशंका स्वाभाविक है कि कहीं धरती के भीतर कोई व्यापक उथल-पुथल तो नहीं हो रही है।
गत 3 नवम्बर को आए भूकम्प को नेपाल में इससे पहले 2015 में आए विनाशकारी भूकम्प के बाद सबसे घातक और खतरनाक माना जा रहा है। बता दें कि 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.8 तीव्रता का जबरदस्त भूकम्प आया था, जिसमें जानमाल की व्यापक हानि हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, इसमें करीब दस हजार लोगों की मौत हो गई थी, जबकि दस लाख घरों को नुकसान पहुंचा और करीब अट्ठाईस लाख लोग विस्थापित हुए थे। नेपाल में पिछले तीन सालों में 5.5 तीव्रता वाले भूकम्प पांच बार आ चुके हैं। भारत के भी कई राज्यों में पिछले कुछ समय से जिस तरह कम या ज्यादा तीव्रता वाले भूकम्प के झटके लग रहे हैं, उसे एक तरह से बचाव के इंतजामों को लेकर सचेत रहने की चेतावनी माना जाना चाहिए।
विदित हो कि विज्ञान कितना भी तरक्की कर चुका है लेकिन अभी तक भूकम्प एक ऐसी आपदा है, जिसके आने के वक्त के बारे में कोई पक्की और तात्कालिक सूचना हासिल करने या अनुमान लगा पाने की कोई तकनीक अभी तक विकसित नहीं की जा सकी है। ज्यादा तीव्रता वाला भूकम्प आने के बाद जिस तरह से राहत कार्य चलाया जाता है, उस पर निर्भर करता है कि कितने लोगों की जान बचाई जा सकी। इससे पहले सिर्फ यही रास्ता बचता है कि इंसान अपनी रिहाइश के ऐसे तौर-तरीके और बचाव के इंतजाम विकसित करे, जिसमें बड़े भूकम्प में भी ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके। इसके लिए सबसे आसान यही होगा कि घर बनाते समय हल्के वजन के घर या भूकम्परोधी बुनियाद पर इमारत खड़ी की जाए ताकि अचानक आए भूकम्प की स्थिति में बचाव की गुंजाइश बनी रहे। इसके साथ जो इलाके भूकम्प के लिहाज से संवेदनशील माने जाते हैं, उसमें भूकम्प के समय घरों में फंसने पर बचाव के छोटे-छोटे इंतजामों को लेकर जागरूकता का प्रसार, खतरे की चेतावनी प्रणाली सहित राहत और बचाव इंतजामों के प्रति पूरी तरह चौकसी बरती जाए। इससे जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है। इसे स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता है, लेकिन उससे बचाव के हर संभव तरीके अपना कर जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है।
भूकम्प एक ऐसी आपदा है, जिसके आने के वक्त के बारे में अनुमान लगा पाने की कोई तकनीक विकसित नहीं हो सकी है। ज्यादा तीव्रता वाला भूकम्प आने के बाद यह राहत के स्वरूप पर निर्भर करता है कि कितने लोगों की जान बचाई जा सकी। इससे पहले सिर्फ यही रास्ता बचता है कि इंसान अपनी रिहाइश के ऐसे तौर-तरीके और बचाव के इंतजाम विकसित करे जिसमें बड़े भूकम्प में भी ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बच सके। घर बनाते समय हल्के वजन के घर या भूकम्परोधी बुनियाद पर इमारत का निर्माण अचानक आए भूकम्प की स्थिति में बचाव की एक गुंजाइश देता है। इसके साथ जो इलाके भूकम्प के लिहाज से संवेदनशील माने जाते हैं, उसमें भूकम्प के समय घरों में फंसने पर बचाव के साधन व तौर तरीकों के बारे में वहां के वासिंदो को आगाह व पूर्व प्रशिक्षण जरूरी है हम तमाम गैर जरूरी पाठ्यक्रम पाठ्य पुस्तकों में शामिल करते हैं लेकिन भूकंप और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के बारे में करिकुलम शामिल करने के लिए सचेत नहीं है। ऐसे में सिर्फ भगवान ही दुनिया का मालिक माना जा सकता है। (हिफी)

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