370 को हटाने पर सुप्रीम मुहर
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पास देश के अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं है। उन्होंने कहा, …भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर (भी) लागू हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना और यह अनुच्छेद-एक एवं 370 से स्पष्ट है। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को स्थायी निकाय बनाने का कभी इरादा नहीं था।
आखिरकार देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के मोदी सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी है। यह इस देश के शीर्ष नेतृत्व की अदम्य राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत निर्णयात्मक क्षमता व सामथ्र्य पर भी मुहर है। सत्तर साल तक इस देश के भीतर कुछ नेतृत्वकारी वंशानुगत तौर पर येन केन प्रकारेण सत्ता में काबिज होते रहे और देश की एकता-अखंडता के बड़े-बड़े दावे और नारे लगाते रहे लेकिन देश के नक्शे में शीश पर जम्मू-कश्मीर को दो संविधान दो झंडे और 370 सरीखी व्यवस्था लागू कर काश्मीर को देश में पृथक बनाए रखने की साजिश का अंग बने रहे। अंततः समय ने करवट बदली, नेतृत्व बदला तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के 370 हटाने के वायदे को पूरा करने के लिए शिद्दत से काम किया। क्योंकि सात दशक से जिस कानून के कारण जम्मू-कश्मीर में अराजकता और आतंकवाद का सिलसिला जारी था, उसे काबू करना आसान नहीं था। मोदी सरकार की अदम्य राष्ट्रभावना और अद्भुत इच्छा शक्ति ने असंभव समझे जाने वाले इस मिशन को पूरा कर दिखाया। सरकार के इस फैसले को चुनौती देने के लिए देश में ही मौजूद कथित प्रगतिशील, निरपेक्ष लोगों और संगठनों ने 23 याचिकाएं शीर्ष अदालत के सामने दाखिल की थीं। उन्हें यकीन था कि अदालत उनके अजेंडे को तवज्जो देगी लेकिन अदालत ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया और 370 को हटाने के निर्भीक, निडर, निष्पक्ष निर्णय को न सिर्फ सही ठहराया वरन इसके औचित्य को भी खारिज कर दिया।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार का यह अनुच्छेद निरस्त करने का निर्णय ही न केवल अत्यंत साहसिक था, अपितु ऐतिहासिक भी था। अब उच्चतम न्यायालय ने उस निर्णय पर अपनी मुहर लगाकर उसकी स्वर्णिम स्याही को और अमिट बना दिया है। यह फैसला अलगाववादियों व उनके समर्थकों का मुंह बंद करने के लिए पर्याप्त है। मोदी सरकार ने जब 5 अगस्त, 2019 को नासूर बन चुकी कश्मीर समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 370 को निरस्त किया था, उसी समय स्पष्ट कर दिया था कि यह अनुच्छेद पूर्ण रूप से अस्थायी था और देशहित में, प्रदेश में शांति लाने एवं वहां केंद्रीय कानूनों को लागूकर प्रदेश का विकास करने के लिए इसे निरस्त करना जरूरी था।
अब उच्चतम न्यायालय ने भी वही बात कही है। देश के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे रद्द करने की शक्ति है। शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को अलग करने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखा। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पास देश के अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं है। उन्होंने कहा, …भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर (भी) लागू हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना और यह अनुच्छेद-एक एवं 370 से स्पष्ट है। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को स्थायी निकाय बनाने का कभी इरादा नहीं था। जम्मू-कश्मीर में युद्ध की स्थिति के कारण संविधान का अनुच्छेद 370 अंतरिम व्यवस्था थी। यह रियासत भारत का अभिन्न अंग बनी और यह अनुच्छेद-एक एवं 370 से स्पष्ट है।
उच्चतम न्यायालय ने अगले वर्ष 30 सितंबर तक वहां विधानसभा चुनाव कराने और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल करने के भी निर्देश दिए।
उच्चतम न्यायालय ने जो निर्णय सुनाया, वह देश की भावना के अनुरूप है। जब 2019 में केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया था, उस दिन देश में दीपावली जैसी खुशी थी। अब उस कदम पर उच्चतम न्यायालय की मुहर से वह खुशी स्थायी हो गई है। हालांकि, अलगाववादी सोच वाले कश्मीरी राजनीतिक दलों ने निर्णय पर मायूसी जताते हुए कहा है कि हम हार नहीं मानेंगे। स्पष्ट है कि कश्मीर को स्थायी एवं पूर्ण रूप से अखंड भारत का अंग बनाना अब भी उनके गले नहीं उतर रहा है। इसका कारण यह है कि उन राजनीतिक दलों की पूरी राजनीति ही भारत विरोध पर टिकी थी, जिसे पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर सहायता मिलती थी। वहां के राजनीतिक दल अब भी अनुच्छेद 370 को पुनः बहाल करने की कामना करते हैं, क्योंकि इससे उन्हें दोनों हाथों से लूट की खुली छूट मिल जाती थी। जब तक यह अनुच्छेद लागू था, तब तक केंद्र सरकार की ओर से दिए गए अरबों-खरबों रुपये का वहां के सत्ताधारी दल मनमाना उपयोग करते थे। स्थिति यह थी कि उन्होंने कितना पैसा किस योजना में खर्च किया, उसमें कितना भ्रष्टाचार हुआ, कितना पैसा वास्तव में लोगों के हित में उपयोग हुआ, इसकी जांच के लिए ऑडिट तक नहीं कराया जा सकता था। न वहां आरक्षण कानून लागू था, न सूचना का अधिकार कानून, न शिक्षा का अधिकार कानून… मोटे तौर पर वे अपने खुद के बनाए नियमों को कानून बताकर, उनके अनुरूप मनमर्जी चलाते थे। अनुच्छेद 370 निरस्त होते ही देश के सभी कानून वहां लागू हो गए। हमारे जवानों पर पत्थर बरसाने एवं हमले करने के लिए पाकिस्तान से आने वाला पैसा बंद हो गया और आतंकी हमले भी बहुत कम हो गए। धीरे-धीरे कश्मीर सही रास्ते पर लौट रहा है। उच्चतम न्यायालय ने यह भी अच्छा किया कि चुनाव के लिए लगभग एक वर्ष का समय और दे दिया। इससे वहां का माहौल और सुधर जाएगा। दशकों से नासूर बनी कश्मीर समस्या का यही सही उपचार था।उच्चतम न्यायालय के निर्णय से इसकी पुनः पुष्टि हो गई।
मोदी सरकार के इस कदम की जितनी सराहना की जाए, कम ही होगी। सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ से जुड़े राजनीतिक दलों के नेताओं के बस की बात नहीं थी यह सिर्फ राष्ट्रीय हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाले नेतृत्व द्वारा ही संभव हो पाया है। आज काश्मीर अमन की ओर लौट रहा है। हर साल 15 लाख पर्यटकों वाले इस सूबे में अब दो करोड़ सैलानी आ रहे हैं। अब किसी पडोसी देश की हिम्मत नहीं है कि वह काश्मीर की स्वायत्तता को लेकर हो हल्ला करें। देश को ऐसे नेतृत्व की ही जरूरत थी। आगे आने वाले समय में भी जन सरोकार की कोशिशों का सूरज और परवान चढ़ेगा। (हिफी)
(मनोज कुमर अग्रवाल-हिफी फीचर)