अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

स्वर्ग के राजा अदिति पुत्र

देवराज इन्द्र

देवताओं के राजा इन्द्र माने जाते हैं। हमारे हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है। सभी देवताओं के कार्य और उनका चरित्र भिन्न-भिन्न है। इंद्र के जीवन से मनुष्यों को शिक्षा मिलती है कि भोग से योग की ओर कैसे चलें। इंद्र बदनाम इसलिए हैं क्योंकि वे इंद्रिय सुखों अर्थात भोग और ऐश्वर्य में ही डूबे रहते हैं और उनको हर समय अपने सिंहासन की ही चिंता सताती रहती है। हर कोई उनका सिंहासन क्यों हथियाना चाहता है? क्योंकि वह स्वर्ग के राजा हैं। देवताओं के अधिपति हैं और उनके दरबार में सुंदर अप्सराएं नृत्य कर और गंधर्व संगीत से उनका मनोरंजन करते हैं। इंद्र की अपने सौतेले भाइयों से लड़ाई चलती रहती है, जिसे पुराणों में देवासुर संग्राम के नाम से जाना जाता है। देवताओं को सुर इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे सुरापान करते थे और असुर नहीं। इंद्र अदिति पुत्र और शचि के पति देवराज हैं। उनसे पहले पांच इंद्र और हो चुके हैं। इन इंद्र को सुरेश, सुरेंद्र, देवेंद्र, देवेश, शचीपति, वासव, सुरपति, शक्र, पुरंदर भी कहा जाता है।देवताओं के अधिपति इंद्र गुरु बृहस्पति और विष्णु परम इष्ट हैं। दूसरी ओर दैत्यों के अधिपति हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के बाद विरोचन बने जिनके गुरु शुक्राचार्य और शिव परम इष्ट हैं। एक ओर जहां देवताओं के भवन, अस्त्र आदि के निर्माणकर्ता विश्वकर्मा थे, तो दूसरी ओर असुरों के मयदानव। इंद्र के भ्राता श्री वरुणदेव देवता और असुर दोनों को प्रिय हैं। आज से लगभग 12-13 हजार वर्षं पूर्व तक संपूर्ण धरती बर्फ से ढंकी हुई थी और बस कुछ ही जगहें रहने लायक बची थीं। उसमें से एक था देवलोक जिसे इंद्रलोक और स्वर्गलोक भी कहते थे। यह लोक हिमालय के उत्तर में था। सभी देवता, गंधर्व, यक्ष और अप्सरा आदि देव या देव समर्थक जातियां हिमालय के उत्तर में ही रहती थी। भारतवर्ष जिसे प्रारंभ में हैमवत वर्ष कहते थे, यहां कुछ ही जगहों पर नगरों का निर्माण हुआ था, बाकी संपूर्ण भारतवर्त समुद्र के जल और भयानक जंगलों से भरा पड़ा था, जहां कई अन्य तरह की जातियां प्रजातियां निवास करती थीं। सुर और असुर दोनों ही आर्य थे। इसके अलावा नाग, वानर, किरात, रीछ, मल्ल, किन्नर, राक्षस आदि प्रजातियां भी निवास करती थीं। उक्त सभी ऋषि कश्यप की संतानें थीं। उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी, तो निश्चित ही तब मेघ और जल दोनों ही तत्त्व सबसे भयानक माने जाते थे। मेघों के देव इंद्र थे, जो जल के देवता इंद्र के भाई वरुण थे। माना जाता है कि इंद्र के भाई विवस्वान ही सूर्य नाम से जाने जाते थे और विष्णु इंद्र के सखा थे। इंद्र के एक अन्य भ्राता अर्यमा को पितरों का देवता माना जाता है, जबकि भ्राता वरुण को जल का देवता और असुरों का साथ देने वाला माना गया है। इंद्र के सौतेले को असुर कहते थे। हिरण्याक्ष का तो विष्णु ने वराह अवतार लेकर वध कर दिया था जबकि हिरण्यकश्यप का बाद में नृसिंह अवतार लेकर वध कर दिया था। हिरण्यकश्यप के मरने के बाद प्रह्लाद ने सत्ता संभाली। प्रह्लाद के बाद उनके पुत्र विरोचन को असुरों का अधिपति बना दिया गया।
इंद्र की माता का नाम अदिति था और पिता का नाम कश्यप। ऋषि कश्यप की कई पत्नियां थीं जिसमें से 13 प्रमुख थीं। उन्हीं में से प्रथम अदिति के पुत्र आदित्य कहलाए और द्वितीय दिति के पुत्र दैत्य। आदित्यों को देवता और दैत्यों को असुर भी कहा जाता था। सफेद हाथी पर सवार इंद्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्तिशाली देव हैं। इंद्र मेघ और बिजली के माध्यम से अपने शत्रुओं पर प्रहार करने की क्षमता रखते थे। ऋग्वेद के चैथे मंडल के 18वें सूक्त से इंद्र के जन्म और जीवन का पता चलता है। जब इंद्र ने जन्म लिया तब कुषवा नामक राक्षसी ने उनको अपना ग्रास बनाने की चेष्टा की थी, लेकिन इंद्र में उन्हें सूतिकागृह में मार डाला। इंद्र के बल, पराक्रम और अन्य कार्यों के कारण उनका नाम ही एक पद बन गया था। (हिफी)

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