अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

शिव के कोपभाजन बने शुक्राचार्य

शुक्राचार्य दैत्यों के गुरू थे और दैत्य राजाओं को हर प्रकार की मुसीबत से बचाते थे लेकिन एक बार वे स्वयं ही शिव के कोपभाजन बन गये। इसी से उन्हें शिव के पुत्र का दर्जा भी मिला था।
हिंदू धर्म की मानें तो शुक्राचार्य को दैत्यों के गुरु का दर्जा प्राप्त था। मान्यता है कि शुक्राचार्य भृगु महर्षि के पुत्र थे लेकिन कुछ किंवदंतियों के अनुसार इन्हें भगवान शिव के पुत्र का दर्जा भी प्राप्त था। मगर बहुत कम लोगों को इसके बारे में प्रचलित कथा के बारे में पता होगा। आज हम आपको शुक्राचार्य से संबंधित इसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। धार्मिक कथाओं के मुताबिक शुक्राचार्य ने छल से एक बार कुबेर की सारी संपत्ति हड़प ली। जब कुबेर को इस बात का पता चला तो उन्होंने सारी बात भगवान शंकर को बताई। शुक्राचार्य को जब पता चला कि उनकी शिकायत शिव जी तक पहुंच गई है तो वे डर गए और शिव जी के क्रोध से बचने के लिए झाड़ियों में जा छिपे लेकिन भला भगवान शंकर के क्रोध से आज तक कौन बच पाया है।
आखिर में उन्हें शिव जी के सामने आना ही पड़ा। जैसे ही भोलेनाथ ने शुक्राचार्य को देखा तो वे उनको निगल गए। शिव जी की देह में शुक्राचार्य का दम घुटने लगा लेकिन शिव जी का क्रोध शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। उन्होंने क्रोधवश अपने शरीर के सभी द्वार बंद किए। अंत में शुक्राचार्य मूत्रद्वार से बाहर निकल आए। इस कारण शुक्राचार्य पार्वती-परमेश्वर के पुत्र समान हो गए।
शुक्राचार्य को बाहर निकलते देख शिव जी का क्रोध फिर से भड़क उठा। वे शुक्राचार्य की कुछ हानि करें, इस बीच पार्वती ने परमेश्वर से निवेदन किया, यह तो हमारे पुत्र समान हो गया है। इसलिए इस पर आप क्रोध मत कीजिए। यह तो दया का पात्र है। पार्वती की अभ्यर्थना पर शिव जी ने शुक्राचार्य को अधिक तेजस्वी बनाया। अब शुक्राचार्य भय से निरापद हो गए थे। उन्होंने प्रियव्रत की पुत्री ऊर्जस्वती के साथ विवाह किया। उनके चार पुत्र हुए-चंड, अमर्क, त्वाष्ट्र और धरात्र। (हिफी)

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