
एक बार असुरों के स्वामी शुंभ ने देवताओं को स्वर्गलोक से निकाल बाहर किया। उन्होंने दूर तक देवताओं का पीछा किया। देवता किसी प्रकार अपनी जान बचाकर हेमवत पर्वत पर पहुंचे और देवी दुर्गा की स्तुति करने लगे।
‘‘हे देवी मां, तुम सब प्रकार के मंगल की कारणी भूत हो। दुष्ट शुंभ का नाश करके सबका कल्याण करो।’’
उसी समय पार्वती गंगा में स्नान करने के लिए आई हुई थीं। उन्होंने देवताओं की करूण पुकार सुनी तो उन्होंने अपने शरीर से माता अंबिका को प्रकट किया। उनका मनोहारी रूप देखकर असुर सेनापति चंड और मुंड विस्मित हो उठे।
बोले, ‘‘यह नारी तो बहुत रूपवती है चलो चलकर अपने राजा शुुंभ को बताते हैं।’’
चंड और मुंड ने आकर शुंभ के सामने अंबिका के रूप का वर्णन किया तो शुंभ ने कहा ‘‘यदि वह स्त्री इतनी ही रूपवती है तो मैं जरूर उसका वरण करूंगा। जाओ और उसे मेरे पास ले आओ।‘‘ चंड और मुंड तुरंत फिर से हेमवत पर्वत पर पहुंचे और मां अंबिका से बोले, हे सुंदरी। दैत्यराज शुंभ जो तीनों लोकों के स्वामी हैं और तीनों लोकों की संपदा जिनके
अधिकार मे है वे तुमसे विवाह करना चाहते हैं।’’
‘‘परंतु मैंने तो प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो संग्राम मे मुझे जीतकर मेरे गर्व को चूर करेगा, वही मेरा स्वामी होगा।’’ माता अंबिका ने कहा।
‘‘देवता भी जिन दैत्यराज के सामने नहीं टिक सके उनसे तुम अकेली नारी युद्ध करना चाहती हो? तुम चुपचाप उनके पास चली जाओ। इसी मे बुद्धिमानी है।’’ चंड ने कहा।
‘‘परंतु मैंने बहुत पहले और बिना सोचे-समझे जो प्रतिज्ञा कर ली थी उसे मैं मिथ्या नहीं कर सकती।’’ देवी ने शांत स्वर में कहा। चंड और मुंड दोनों भुनभुगाते हुए वहां से चले गए। शुंभ के सम्मुख पहुंचकर जब उन्होंने मां अंबिका का संदेश सुनाया तो शुंभ फड़क उठा। बोला ‘‘ठीक है, वह युद्ध चाहती है तो युद्ध ही होगा।’’
शुंभ ने अपने धू्रमलोचन नाम के सेनापति को बुलाकर आज्ञा दी जाओ और उस दुष्टा को पकड़कर ले आओ।’’
ध्रूमलोचन अपनी विशाल सेना लेकर हेमवत पर्वत पर अंबिका के पास पहुंचा और बोला सुंदरी। तुम अपनी इच्छा से मेरे स्वामी के पास नहीं चलोगी तो मैं बलपूर्वक तुम्हें ले जाऊंगा। अंबिका ने भयभीत होने का ढांेग किया। बोली ‘‘मैं तो अबला हूं। मैं तुम्हारा क्या बिगाड़ लूंगी।’’
‘‘तो फिर हमारे स्वामी के साथ विवाह कर लो।’’ ध्रूमलोचन ने कहा। ‘‘अब क्या बताऊं तुम्हें । मैंने प्रतिज्ञा ही ऐसी कर ली है कि युद्ध किए बिना विवाह नहीं कर सकती।’’ अंबिका बोली।
तुम ध्रमलोचन बिना कहे-सुने देवी पर चढ़ दौड़ा। मां अंबिका ने बड़े घृणाभाव से सिर्फ हंु का उच्चारण किया जिससे ध्रमलोचन जलकर भस्म हो गया और उसकी जगह राख की ढेरी रह गई। यह देख दैत्य सेना भयभीत हो उठी और वहां से भगाने लगी। लेकिन तभी भागती सेना को चंड और मुंड ने रोका। बोले ‘‘हमारे स्वामी ने आज्ञा दी है कि इस दुष्टा को पकड़ लाएं। यह अकेली है और हम इतने हैं फिर क्यों भागते हो? हम इसे घेरकर अभी पकड़ लेंगे।’’
दैत्य हिम्मत कर अंबिका की ओर बढ़े जो अब सिंह पर सवार हो गई थी। उनकी भ्रृकुटि तन गई। तब उनके मस्तक से प्रकट हुई मां काली। काली दैत्यों पर टूट पड़ी। उन्होंने एक हाथ से एक हाथी उठाकर दैत्यों पर फेंका। अनेक असुर उस हाथी के नीचे दबकर मर गए। यह देख चंड क्रोध में भरकर काली की ओर झपटा ‘‘ठहर तो दुष्टा। मैं तुझे अभी मारकर चील-कौओं को खिलाता हूं।
काली ने उसके केश पकड़े और उसका सिर काट डाला। यह देख मुंड को बड़ा गुस्सा आया। वह पूरे वेग से काली पर झपटा, किंतु उसका भी वही हाल हुआ जो चंड का हुआ था। माता काली ने उसकी गरदन भी काट फेंकी।
तब मां अंबिका ने काली से कहा ‘‘तुमने चंड और मुंड का नाश कर संसार को दैत्यों के भय से मुक्त किया, अंतः भविष्य में ‘चामुंडी’ के नाम से भी तुम्हारी ख्याति फैलेगी।’’ (हिफी)
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