अध्यात्मकर्म का सिद्धांत

Theory of karma (कर्म का सिद्धांत) 5

गुरु वाक्यम परम वाक्यम



ऐसी घटनाएं देखी होगी कि मनुष्य कितना प्रयास करता है। हमारे कई साधकों को जहा हम उन्हें खीच कर अंदर लाते हैं कि बच जाये। तो उनका कर्म कहता था- कि नहीं, इनको धकेलना है। उस समय सभी उन्हें बुरे दिखाई देने शुरु हो जाते हैं। और जैसे ही वो दूर जाते हैं जगंल में जैसे शेर ताक लगाए बैठा होता है। गुरु के घर से जैसे ही बाहर गये वह काट लेगा। कभी-कभी तो प्रत्यक्ष रूप से हम कहते हैं ये ले आओं, उसको ले आओ। वह बहाना करता है,कि नहीं जाऊगा। मुझे मालूम है कि सामने शेर खड़ा है। वो मेरी सामने मेरी आखों के सामने शेर के मुहं में चला जाता है। वो रोग के मुहं में दुख के मुहं में उन्हे 84 लाख योनियों के चगुल में चला जाता है। जहां इस जीवन में वो मोक्ष को प्राप्त होता है इसलिए बाबा को यही ध्यान करता है प्यार हो जाता है। प्यार होनाचाहिए। unconditional attchment  नहीं होना चाहिए। प्यार करों तो सबको प्यार करों लेकिन attchment थोड़ी खतरनाक हो जाती हैattchment में तो कई बार हमें प्रत्यक्ष कहना पड़ जाता है क्योंकि कर्म का श्रम तो हमें लेना पड़ता है प्रकृतिक कार्य मंे यदि उल्घंन करोंगे तो दण्ड किसी न किसी को तो भोगना ही होगा। लेकिन दुख की बात ये है कि दण्ड भोगने के बाद भी उस मनुष्य का कर्म इतना धन्य होता है कि फिर भी वो तुम्हें छोड़ देगा घोर कष्टों की नींद सोता हूं ये कर्मों का खेल है वो अम्मा चली गयी क्योंकि कर्म उसका समाप्त नहीं हुआ। पूरा नहीं हुआ। इसलिए जब तुम किसी सिद्ध गुरू के पास आते हो तो तुम्हारा एक सिद्धान्त होना चाहिए। एक ही चीज होनी चाहिए। मेरी अध्यात्मिक उन्नति। एक ही चीज होनी चाहिए मेरी जीवन में जो मैं है, जो अहंकार है, वो पूर्ण रूप से खतम हो जाए। अहंकार नहीं होना चाहिए। लेकिन हम उसी अंहकार, और उससे वशीभूत होकर हम ये कार्य करते हैंै। ऐसे अनेकोनेक दुष्टांत है। इसलिए अभी आप लोगों की क्लीयर हो रहा होगा कि कहा बाबा क्या करता है, क्या करना चाहता हैं ,कहां खीचता है, कहा रोकता है। इसका एक ही सिद्धंात है। यदि कर्म से बचना है तो गुरु वाक्यम परम! गुरुतत्व है, गुरु ये शरीर है ही नहीं गुरु ये शरीर नहीं है गुरु कुछ भी नहीं है। गुरु तुम मंे है, गुरु शून्य होता है वह वो शिव तत्व है तो वो जो शिव की ऊर्जा तुम को मिल रही है उसको तुमको ग्रहण करना था। मैं गुरु के साथ रहूूं या न रहूं मैं गुरु के साथ दिखू या न दिखू इससे मुझे क्या करना है। वास्तव में जो मन से अपने गुरू से जुड़ जाता है वो ज्यादा अध्यात्मिक उन्नति करता है। और जो मैं से अपने गुरु के साथ जुड़ता है उसे गुरु वापस नहीं मिल पाता। मैं से ना जुड़ना कही भी हो, किसी भी संस्था में हो, किसी भी गुरु के शिष्य हो, मैं से जुडना नहीं। मैं इस किसी की गुरु के पास नहीं जाना और कही भी चले जाओं संसार पड़ा है, संसार में, गृहस्थ में, जो करना है वो करो। लेकिन जहां अध्यात्मिक न हो,और जहां अध्यात्मिक न हो, वहां मैं हटाकर गुरु वाक्यम परम वाक्यम। जो गुरु ने कहा हो उस कथनी को अपने जीवन में डाल लो और मैं को समाप्त कर दो। तपस्या तप ध्यान साधना निष्काम सेवा में लग जाओ। वह यह करते हो तो गुरू की कृपा पूर्ण रूप से तुम्हारे जीवन पर बरसती है। इतना कर दो। बाबा बोलता है इतना कर दो ही पूर्ण सर्मपण। क्या पूर्ण सर्मपण? जो शब्द मैंने कहे उसको जीवन में उतार लो। साधना को नहीं छोड़ना तपस्या को नहीं छोड़ना, निष्काम सेवा को नहीं छोड़ना है, पूरी सृष्टि से जब एक ही कत्र्ता है एक ही कत्र्ता पुरुष है। उसी कत्र्ता पुरुष को ही देखने का प्रयास क्यों नहीं करते उस शिव को देखने का प्रयास क्यों नहीं करतेे उस शिव को याद करने का प्रयास क्यों नहीं करते क्यों संसार में लोग क्या कर रहे है- और लोग क्या कर रहे हैं- उसको तुम बहुत आक्रोश में क्रोध में देखते हो, सुनते हो ध्यार्य तो कारमीकली तुम उससे जुड़ जाते हो उसका कर्म तुम्हारे अंतर मन में इतनी तेजी से संचित कर्म बनके इतना पावरफुल बनके तुम्हारा संचित कर्म बनके तुम्हारे चित में बैठ जाता है। उसको निकालने के लिए तुमको प्रारब्ध भोग करना होगा। क्या जरूरत क्या जरूरत है। किसी को देखने की संसार में, संसार में एक बहुत बड़ी मुसीबत और है बहुत से लोग मेरे पास आते हैं बोलते हैं बाबा मेरे घर के लोग मुझे प्यार नहीं करते मेरा पति प्यार नहीं करता मुझे मेरी पत्नी प्यार नहीं करती और लोग मुझे प्यार नहीं करते। अधूरा हूं। अधूरा पन है। पूर्णतः प्राप्त करने के लिए। ये नश्वर संसार का प्यार है। जो पूर्णतः तुम्हारे भीतर है। शिव भी तेरी भीतर शक्ति भी तेरे भीतर। पूर्ण अर्धनाश्ेवर तुम हो जब पूर्णत तेरे भीतर है तो अधूरापन खत्म करने की चेष्ठा क्यों। तेरे मन में कहा से आ गयी। और आ भी गयी तेरे मन में तो यदि खत्म करना है

तो बाहर से तुम प्यार कर सकते हो बाहर से वो ध्यान क्यों छोड़ते हो और वो जब नहीं मिलता और मिलेगा भी नहीं तो वो तुम्हारे लिए एक और संचित कर्म बन जाता है। किसी ने कहा मैं उससे सबसे ज्यादा घृणा करता हूं। तो मैंने कहा इसलिए तुम उससे सबसे ज्यादा घृणा करते हो क्योंकि सबसे ज्यादा अपेक्षा तुमको उसी मनुष्य की है। जिस मनुष्य से जितनी ज्यादा expectation  बनाना है उतनी ही ज्यादा घृणा उससे होती है पाना है तो शिव के पास जाओं- वो तड़प पैदा करनी है तो शिव के पास जाओ, तड़प उस परमापत्मा की। गुरु ये है ही नहीं गुरु ही नहीं। गुरु शून्य है।

जब ये बोल ही नहीं रहा ये शिव बोल रहा है। ये उसी के वाक्य है। ये वास्तव में उसी की बात है। जो बताना चाहता है- कितने लाख जन्मों से तुम जन्म लेते हो, मृत्यु में तुम कूद जाते हो ,और किसलिए कि कोई तुम्हारे जीवन में आया तुम उसको इतना strongly इतना तेज उसके मन में ंanalysis कर डालते हो कि तुम उसके प्रत्येक action को कर्म बनाकर अपने भीतर उसका संचार करते हो। सिद्ध मार्ग में हम बोलते हंै मैं ही अपना बेरी हुआ। अपने को बोलते हंै। सबसे बड़ा बैरी मेरा कौन है? सबसे बड़ा बैरी हुआ। मैं ही हूं इतना बड़ा मुआ मैं हूं। मैं बार-बार अपने को मुआ कहता हूं छूटता ही नहीं। बंदर कोे देखा है तुम ने, कैसे पकड़ते हैं http://hindustansamacharnews.com/spirituality/theory-of-karma-theory-of-karma-6/

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