सम-सामयिक

आर्थिक असमानता की दरार

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

18वीं लोकसभा के गठन के लिए हो रहे मतदान के दौरान देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने न्याय पत्र के रूप मंे जो चुनाव घोषणा पत्र जारी किया है, उसके एक बिन्दु पर राजनीति भी हो रही है और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी चल रही है। कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में सम्पत्ति के सर्वे की बात कही गयी है। इसी को लेकर भाजपा मंगल सूत्र तक का मुद्दा उठा रही है लेकिन सुप्रीम कोर्ट मंे सम्पत्ति के मामले मंे ही चिंताजनक असमानता को देखते हुए 1960 के दशक में अतिरिक्त कृषि भूमि गरीब किसानों को वितरित करने का प्रसंग भी उठाया जा रहा है। आज भी गरीबों मंे ग्राम समाज की भूमि आवंटित की जाती है। भौतिक संपत्ति के बंटवारे को माक्र्सवादियों ने सबसे पहले उठाया था और कहा था कि अमीरों से सम्पत्ति लेकर गरीबों को दी जाएगी और एक दिन इस पृथ्वी पर सभी एक जैसी आर्थिक स्थिति मंे हो जाएंगे। कार्ल माक्र्स के इस भौतिकवाद का सपना तो पूरा नहीं हो पाया लेकिन वामपंथ जरूर भारत में सिमट गया है। चीन जैसे देश मंे तो वामपंथ आर्थिक साम्राज्यवाद में बदल गया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 9 जजों की पीठ किस निष्कर्ष पर पहुंचती है, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन देश मंे आर्थिक असमानता की दरार जरूर चैडी होती जा रही है लेकिन क्या निजी संपत्ति को बांटा जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या को लेकर सुनवाई शुरू कर दी है। ऐसे में सवाल ये है कि क्या सरकार किसी निजी संपत्ति को सामुदायिक भलाई के लिए पुनर्वितरित कर सकती है? ये जितना कानूनी है, उससे ज्यादा राजनीतिक भी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट जिस सवाल को लेकर सुनवाई कर रहा है वो बहुत पुराना है लेकिन देश में हो रहा चुनाव, माहौल को गरमाये है क्योंकि इसका जिक्र खुद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले किया था। उस दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों और अन्य जातियों की जनसंख्या की सटीक जानकारी के लिए सबसे पहले, हम जाति जनगणना कराएंगे। उसके बाद वित्तीय एवं संस्थागत सर्वेक्षण शुरू होगा। इसके बाद, हम भारत की संपत्ति, नौकरियों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को इन वर्गों को उनकी जनसंख्या के आधार पर वितरित करने का ऐतिहासिक कार्यभार संभालेंगे। राहुल गांधी के इस बयान पर पीएम नरेंद्र मोदी ने पलटवार किया और आरोप लगाया कि कांग्रेस आर्थिक पुनर्वितरण के लिए नागरिकों की निजी संपत्ति छीन लेगी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के 2006 के भाषण का हवाला भी दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस एस धूलिया, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस आर बिंदल, जस्टिस एस सी शर्मा और जस्टिस एजी मसीह की पीठ 31 साल पुराने मामले पर सुनवाई कर रही है, जिसे 22 साल पहले 2002 में सात जजों के संविधान पीठ ने 9 जजों की पीठ को भेजा था।

गौरतलब है अनुच्छेद 39 (बी) में प्रावधान है कि राज्य अपनी नीति को यह दिशा में निर्देशित सुनिश्चित करेगा कि समुदाय संसाधनों का स्वामित्व इस प्रकार वितरित किया जाए कि आम भलाई के लिए सर्वोत्तम हो। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत के समक्ष एकमात्र सवाल अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या का था, न कि अनुच्छेद 31सी का, जिसकी वैधता 1971 में 25वें संवैधानिक संशोधन से पहले अस्तित्व में थी, जिसे केशवानंद भारती मामले में 13-न्यायाधीशों की पीठ ने बरकरार रखा है।
सीजेआई चंद्रचूड़ सहमत हुए और बताया कि अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या 9-जजों की पीठ द्वारा करने की आवश्यकता क्यों है। हालांकि 1977 में रंगनाथ रेड्डी मामले में बहुमत ने स्पष्ट किया है कि समुदाय के भौतिक संसाधनों में निजी संपत्ति शामिल नहीं है, 1983 में संजीव कोक में 5 जजों की बेंच ने जस्टिस अय्यर पर भरोसा किया और इस बात को नजरअंदाज करते हुए कहा कि यह अल्पसंख्यक .ष्टिकोण था।

इस पर सीजेआई ने कहा कि इस बीच, 1997 में मफतलाल इंडस्ट्रीज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राय दी कि अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या को 9-जजों की पीठ द्वारा व्याख्या की आवश्यकता है। मफतलाल मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस व्यापक .ष्टिकोण को स्वीकार करना मुश्किल है कि अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन निजी स्वामित्व वाली चीजों को कवर करते हैं। पीठ ने पूछा कि 1960 के दशक में अतिरिक्त .षि भूमि गरीब किसानों के बीच कैसे वितरित की गई। वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि सामुदायिक संसाधनों में कभी भी निजी स्वामित्व वाली संपत्तियां शामिल नहीं हो सकती हैं। उन्होंने जस्टिस अय्यर के .ष्टिकोण को मार्क्सवादी समाजवादी नीति का प्रतिबिंब बताया, जिसका नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रधानता देने वाले संविधान द्वारा शासित लोकतांत्रिक देश में कोई स्थान नहीं है।

सच्चाई यह भी है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच आर्थिक असमानता की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। गरीब-अमीरों की तुलना में अनुपातहीन रूप से उच्च करों का भुगतान कर रहे हैं, समय आ गया है कि अमीरों और कॉर्पोरेट घरानों पर कर बढ़ाए जाएं। साथ ही आर्थिक असमानता को खत्म करने के लिए अब आम आदमी को भी पहल करनी होगी। देश के शीर्ष 0.1 फीसद सबसे अमीर लोगों की कुल संपदा बढ़कर निचले 50ः लोगों की कुल संपदा से अधिक हो गई है। 1980 के दशक से भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव के बाद असमानता काफी बढ़ गई है। यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में असमानता की वर्तमान स्थिति 1947 में आजादी के बाद के तीन दशकों की स्थिति के बिल्कुल विपरीत है।भारत में गरीब, जीवित रहने के लिए मूलभूत आवश्यकताओं को भी वहन करने में असमर्थ हैं। भूखे भारतीयों की संख्या 2018 में 190 मिलियन से बढ़कर 2022 में 350 मिलियन हो गई।दावोस, स्विट्जरलैंड में इस साल के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की शुरुआत के साथ जारी ऑक्सफैम इंटरनेशनल की सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अरबपतियों की संख्या 2020 में 102 से बढ़कर 166 हो गई है, जहां ये वर्ष 2000 में केवल 9 थी। भारत में सबसे अमीर 1 प्रतिशत के पास अब देश की कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है और सिर्फ 5 प्रतिशत भारतीयों के पास देश की 60 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है। रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में जीएसटी में कुल 14.83 लाख करोड़ रुपये का लगभग 64 प्रतिशत नीचे की 50 प्रतिशत आबादी से आया, जिसमें शीर्ष 10 से केवल 3 प्रतिशत जीएसटी आया।

सरकारें, गरीबी मिटाने की बातें तो करती रहीं, परंतु मिटा नहीं पाईं। जब अस्सी करोड़ भारतीयों को अनाज मुत देना पड़ रहा तो हम इस स्थिति को समझ सकते हैं। देश की साठ फीसद से अधिक आबादी ग्रामीण है, कुल साढ़े छह लाख गांव हैं और ढाई लाख पंचायतें, फिर भी कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास देश का धन है, विकास की गंगा भी वहीं बह रही, शहर तो स्मार्ट बनाए जा रहे हैं मगर कई बुनियादी समस्याओं से गांव और उसकी पंचायतें आज भी लड़ रहीं। (हिफी)

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