☆ मासूमियत ☆
सुनीता पेट से है, आठवां महीना चल रहा है अब एक साथ सारा काम नहीं होता उससे, सुस्ताती फिर काम में लग जाती। मालकिन ने कहा भी कि नहीं होता तो काम छोड दे, पैसा नहीं काटेंगी, पर सुनीता को डर है कि बच्चा होने के बाद काम ना मिला तो क्या करेगी? दो लडकियां हैं, एक तीन साल की दूसरी पाँच साल की, तीसरा आनेवाला है। घर कैसे चलाएगी वह? मालकिन दिलदार है, उसके खाने – पीने का बहुत ध्यान रखती है इसलिए इसी घर का काम रखा है, बाकी छोड दिए हैं।
काम निपटाने के बाद सुनीता और उसकी लडकियां एक तरफ बैठ गईं। बडकी बोली – अम्मां ! सब काम होय गवा, अब भाभी दैहें ना हम लोगन का अच्छा – अच्छा खाए का? भाभी रोज बहुत अच्छा खाना खिलावत हैं ,सच्ची –। छुटकी बिटिया की नजर तो रसोई से हटी ही नहीं बल्कि बीच – बीच में होंठों पर जीभ भी फिरा लेती । मालकिन ने एक ही थाली में भरपूर भोजन उन तीनों के लिए परोस दिया। दोनों बच्चियां तो इंतजार कर ही रही थीं तुरंत खाने में मगन हो गईं । खाना देकर मालकिन ने सुनीता से पूछा – नवां महीना पूरा होने को है, कब से छुट्टी ले रही हो तुम? सुनीता कुछ बोले इससे पहले उसकी पाँच साल की बडकी सिर नीचे झुकाए खाना खाते – खाते जल्दी से बोली - भाभी ! ऐसा करा अम्मां को रहे दें, हम तोहार सब काम कर देब – झाडू, पोंछा, बर्तन —जो कहबो तुम — –। बस काम छोडे को ना कहैं।
सब खिलखिलाकर हँस पडे, बचपन रो रहा था।