प्रेरणास्पद लघुकथा बच्चो का कोना

बुद्धि का फल

कौवे की होशियारी

बच्चों! कहानियां हमारा मनोरंजन तो करती ही हैं, साथ ही शिक्षा भी देती हैं।

किसी जंगल में बरगद के एक पुराने पेड़ पर कौवा-कौवी रहते थे। वह दोनों पति-पत्नी थे। दोनों में ही बड़ा प्यार था। इसी प्यार के कारण दोनों हर समय खुश रहते थे।
उसी पेड़ की जड़ में एक काला सांप रहता था जो इन बेचारे के अंडों को हर बार खा जाता था। अपनी संतान की शक्ल देखने को तड़प रहे यह पति-पत्नी मन ही मन में सांप को गालियां देते रहते क्योंकि सांप के आगे उनका कोई बस नहीं चलता था। कमजोर प्राणी गालियों और बद्दुआवों का सहारा ही तो लेता है।
संतान के न होने के दुःख से वे कौवा-कौवी हर समय चिंता और दुःख के सागर में डूबे रहते। कौवा जब अत्यंत दुखी हो गया तो उसे याद आया कि साथ वाले जंगल में उसका एक मित्र गीदड़ रहता है, जो ऐसे संकट के समय काम आ सकता है।
यही सोचकर कौवा अपने मित्र गीदड़ के पास जाकर अपनी दर्द भरी कहानी सुनने लगा। गीदड़ ने अपने मित्र कौवे की इस पीड़ा को बहुत अच्छी तरह समझा। उसे पता था जिसके खेत नदी के किनारे हों जिस गांव के बाहर सांप रहता हो उस गांव के निवासियों को हर समय दुःख ही रहता है। गीदड़ ने कौवे को धीरज बंधाते हुए कहा, देखो भाई! तुम मेरे मित्र हो। मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करुंगा, फिर तुम जानते हो कि गीदड़ जाति का दिमाग शैतान की गति से चलता है। अब तुम देखना कि मैं उसे किस प्रकार बिना कोई उद्यम किए ही मारता हूं। यह कहते हुए गीदड़ पहले तो हंसता रहा फिर एकदम से गंभीर हो गया क्योंकि समझ गया था कि कौवा उसकी हंसी देखकर मन में दुखी हो रहा है।
गंभीरता के स्वर में गीदड़ बोला, देखो भाई तुम इसी समय दोनों पति-पत्नी उड़ते हुए राजमहल में जाओ और वहां से महारानी का सोने का कीमती हार उठा लाओ, आगे का काम मैं सब कर लूंगा। यह सांप दिमाग से मारा जाएगा, ताकत से नही।
गीदड़ की बात सुनते ही कौवा वहां से बड़ी तेजी से उड़ा और रास्ते में अपनी पत्नी को साथ ले राजभवन की ओर चल पड़ा। दोनों उड़ते-उड़ते राजमहल के पास पहुंचे तो उन्होंने महारानी को एक नदी में स्नान करते देखा। उसने अपना कीमती हार गले से उतारकर एक दासी को दे दिया था जो किनारे पर उसे अपने हाथ में लिए बैठी थी। कौवे ने उस समय अपनी पत्नी को इशारा किया कि इससे अच्छा मौका जीवन में तुम्हें और कहां मिलेगा? होशियारी से उड़ती हुई जाओ और उस हार को उस दासी के हाथों से छीन लाओ। कौवी भी उसी को छीनने के फिराक में थी वह बिजली की सी तेजी से उड़ती हुई नदी किनारे पर गई और उस दासी के हाथों से हार उड़ा लाई और दोनों उस हार को लेकर उड़ चले। दासी ने जोर-जोर से शोर मचाना शुरू कर दिया हाय…हार! हाय मेरा हार…। मेरा हार चोरी हो गया। पास ही जंगल में जो सैनिक दस्ता रानी की रक्षा के लिए बैठा हुआ था, उनके अफसर ने अपने सैनिकों को हुक्म दिया जाओ रानी जी का हार चोर समेत ले आओ। सैनिक जंगल में चारों ओर भागने लगे। सैनिक हार की तलाश में भाग रहे थे। उधर, गीदड़ ने कौवे से कहा कि इस हार को इस सांप के बिल में आधा अंदर आधा बाहर रख दो।
जैसे ही कौवे ने हार को सांप के बिल पर रखा-सांप तुरंत बाहर आ गया। ठीक उसी समय वहां राजा के सैनिक भी आ गए। उन सैनिकों ने जैसे ही देखा कि रानी का कीमती हार इस सांप ने चुराया है, क्रोध से भरे एक सैनिक ने उस सांप का गला काट दिया। कौवा और कौवी दोनों खुशी से नाचने लगे। कौवे ने अपने मित्र गीदड़ का बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
यदि कोई शत्रु आपसे बहुत बलवान है तो उसे आप शक्ति से नहीं बल्कि बुद्धि से मार सकते हैं।

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