स्मृति विशेष

अजात शत्रु युग पुरुष अटल जी

 

भारत में राजनीतिक का स्वर्णिम युग रहा है जिन्होंने भारत को विदेशी दासता से मुक्त कराया और बाद में भी भारत का विश्व मंे मान बढ़ाया। ऐसे ही नेताओं मंे पं. अटल बिहारी वाजपेयी का नाम शामिल है। उनका संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रूप में दर्ज है। उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार और लेखक के रूप में है। अटल बिहारी वाजपेई राजनीति में उदारवाद और समता एवं समानता के समर्थक माने जाते हैं। उन्होंने दलगत राजनीति से अलग हट कर जीवन जिया।

वाजपेयी ने राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया। जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार किया। नीतिगत सिद्धांत और वैचारिकता का कभी कत्ल नहीं
होने दिया। लोकतंत्र के वे अधिनायक रहे। पोखरण परमाणु परीक्षण करके दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे मुल्कों को भारत की शक्ति का अहसास कराया। अटल बिहारी बाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी बाजपेयी शिक्षक थे। उनकी माता कृष्णा जी थीं। वैसे मूलरूप उनका संबंध उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव से है लेकिन, पिता जी मध्य प्रदेश में शिक्षक थे। इसलिए उनका जन्म वहीं हुआ। उत्तर प्रदेश से उनका राजनीतिक लगाव रहा। राजधानी लखनऊ से वे सांसद रहे थे।

अटल जी ने अपनी कविताओं के बारे मंे ठीक ही कहा था कि मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है। उनकी कविताओं का संकलन मेरी इक्यावन कविताएं खूब चर्चित रहीं जिसमें.. ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा..’ खास चर्चा में रहीं। राजनीति में संख्या बल का आंकड़ा सर्वोपरि होने से 1996 में उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई और उन्हें प्रधानमंत्री का पद त्यागना पड़ा। यह सरकार सिर्फ तेरह दिन तक रही। बाद में उन्होंने विपक्ष में भूमिका निभाई। इसके बाद हुए चुनाव में वे दोबारा प्रधानमंत्री बने।

वे एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे, लेकिन शुरुआत पत्रकारिता से हुई। पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’, ‘राष्ट्रधर्म’ और ‘वीर अर्जुन’ जैसे अखबारों का संपादन किया। उन्होंने सबसे पहले 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर लोकसभा पहुंचे। उन्हें मथुरा और लखनऊ से भी लड़ाया गया लेकिन हार गए। वाजपेयी ने बीस सालों तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रूप में काम किया। 1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे, जिनमें एक अटल बिहारी वाजपेयी थे।

संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले बाजपेयी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने विदेश की धरती पर हिन्दी को सम्मानित करने का काम किया। इंदिरा गांधी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल जी को विदेशमंत्री बनाया गया। इस दौरान अटल जी ने अपनी राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी और विदेश नीति को बुलंदियों पर पहुंचाया। इसके बाद में 1980 में जनता पार्टी ने जब जनसंघ से और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े होने का आरोप लगाया तो अटल ने नाराज होकर जनता पार्टी का दामन छोड़ दिया। इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में वह एक थे। उन्हें उसी साल भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी। इसके बाद 1986 तक उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद संभाला। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी, जब इंदिरा गांधी की विचारधारा संघ विरोध कर रहा था।
श्रीमती इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ से ही दी गई। लेकिन इंदिरा सरकार की तरफ से 1975 में लादे गए आपातकाल का अटल जी ने विरोध भी किया। बंग्लादेश के निर्माण में इंदिरा गांधी की भूमिका को उन्होंने सराहा था। अटल जी ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे ‘जय जवान जय किसान’ में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा। देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गंवारा नहीं था।

अटल बिबारी वाजपेई ने वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया। परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अपने कर्तव्य में अडिग रखा। अटल जी ने कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डट कर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धूल चटायी। उन्होंने दक्षिण भारत के सालों पुराने कावेरी जल विवाद का हल निकालने का प्रयास किया। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से देश को राजमार्ग से जोड़ने के लिए कॉरिडोर बनाया। मुख्य मार्ग से गांवों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना बेहतर विकास का विकल्प लेकर सामने आई। कोंकण रेल सेवा की आधारशिला उन्हीं के काल में रखी गई थी।

अटल बिहारी बाजपेयी भारतीय राजनीति के युग पुरुष हैं। उनके व्यक्तित्व वाला राजनेता देश को कभी नहीं मिलेगा। अटल जी सत्ता के लिए कभी गिरे नहीं। उन्होंने जोड़तोड़ की राजनीति नहीं की। हमेशा लोकतान्त्रिक मूल्यों एवं उसकी स्थापना का सम्मान किया। केंद्र में उनकी सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गईं लेकिन कभी सत्ता के लिए सौदेबाजी नहीं की। हमेशा आदर्श चरित्र की राजनीति की। देश की राजनीति में अटल जी का स्थान कोई नहीं ले सकता है। जन्मदिवस पर ऐसे युगपुरुष को विनम्र श्रद्धांजलि। (हिफी)

(प्रभुनाथ शुक्ल-हिफी फीचर)

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