अध्यात्म

माता पार्वती के समान नहीं किया किसी ने तप

आदिशक्ति माता पार्वती ने भगवान शंकर को पाने के लिए घोर तपस्या और कितने ही संघर्ष किए तब कहीं जाकर उन्होंने भगवान शंकर को अपने पति के रूप में दोबारा प्राप्त किया।
माता पार्वती की कहानी भगवान शंकर से संबंधित है। माता पार्वती शक्ति का अवतार है, साथ ही भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश की माँ और भगवान शंकर की पत्नी भी है। उन्हें देवी माँ भी कहा जाता है। उमा, गौरी भी पार्वती के ही नाम हैं। माता पार्वती पूर्व जन्म में राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, और उस जन्म में भी वे भगवान शंकर की ही पत्नी थीं। उनका नाम सती था। सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में, अपने पति का अपमान न सह पाने के कारण, स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर दिया था तथा हिमनरेश हिमवान के घर पार्वती बन कर अवतरित हुईं।
बताते हैं एक बार सती ने भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप धारण कर लिया। इतना ही नहीं उन्होंने भगवान शिव से झूठ बोला। अंतर्यामी शिव ने उसी समय प्रण किया कि यहि तन भेंट सती सन नाहीं। पति के त्यागने से सती दुखी थीं। एक बार सती और भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बैठे हुए परस्पर वार्तालाप कर रहे थे। उसी समय आकाश मार्ग से कई विमान दिखाई पड़े। सती ने उन विमानों को देखकर भगवान शंकर से पूछा, ‘प्रभु, ये सभी विमान किसके है और कहां जा रहे हैं? भगवान शंकर ने उत्तर दिया आपके पिता ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया हैं। समस्त देवता और देवियां इन विमानों में बैठकर उसी यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए जा रहे हैं।’ यह सुनकर सती ने भगवान शंकर से पूछा, क्या मेरे पिता ने आपको यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए नहीं बुलाया? भगवान शंकर ने उत्तर दिया, आपके पिता मुझसे बैर रखते है, फिर वे मुझे क्यों बुलाने लगे? इस पर सती भगवान शंकर से बोली यज्ञ के इस अवसर पर अवश्य मेरी सभी बहने आएँगी। उनसे मिले हुए बहुत दिन हो गए। यदि आपकी अनुमति हो, तो मैं भी अपने पिता के घर जाना चाहती हूं। यज्ञ में सम्मिलित हो लूंगी और बहनों से भी मिलने का सुअवसर मिलेगा। भगवान शंकर ने सती से वहां जाने के लिए मना कर दिया और कहा आपके पिता मुझसे बैर रखते हैं हो सकता हैं वे आपका भी अपमान करें। बिना बुलाए किसी के घर जाना उचित नहीं होता हैं। इस पर सती से भगवान शंकर ने कहा विवाहिता लड़की को बिना बुलाए पिता के घर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि विवाह हो जाने पर लड़की अपने पति की हो जाती हैं। पिता के घर से उसका संबंध टूट जाता हैं। लेकिन सती पीहर जाने के लिए हठ करती रहीं। अपनी बात बार-बात दोहराती रहीं। उनकी इच्छा देखकर भगवान शिव ने पीहर जाने की अनुमति दे दी। सती वीरभद्र के साथ अपने पिता के घर गईं। घर में सती से किसी ने भी प्रेम पूर्वक वार्तालाप नहीं किया। राजा दक्ष ने उन्हें देखकर कहा, तुम यहां क्यों आई हो? अपनी बहनों को तो देखो वे किस प्रकार भांति-भांति के अलंकारों और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित हैं। तुम्हारे शरीर पर मात्र बाघांबर हैं। तुम्हारा पति श्मशानवासी और भूतों का नायक हैं। वह तुम्हें बाघांबर छोड़कर और पहना ही क्या सकता हैं। दक्ष के इस कथन से सती के हृदय में पश्चाताप का सागर उमड़ पड़ा। वे सोचने लगीं उन्होंने यहां आकर अच्छा नहीं किया। भगवान शंकर ठीक ही कह रहे थे, बिना बुलाए पिता के घर भी नहीं जाना चाहिए। पिता के कटु और अपमानजनक शब्द सुनकर भी सती मौन रहीं। वे उस यज्ञमंडल में गईं जहां सभी देवता और घ्षि-मुनि बैठे थे तथा यज्ञकुण्ड में धू-धू करती जलती हुई अग्नि में आहुतियां डाली जा रही थीं। यज्ञमंडप में सभी देवताओं के लिए विशेष जगह थी सिवाय भगवान शंकर के। वे भगवान शंकर का स्थान न देखकर अपने पिता से बोली पिता जी! यज्ञ में तो सबका स्थान दिखाई पड़ रहा हैं किंतु कैलाश पति का नहीं हैं। आपने उनका स्थान क्यों नहीं रखा? दक्ष ने गर्व से उत्तर दिया मैं तुम्हारे पति शंकर को देवता नहीं समझता। वह तो भूतों का स्वामी, नग्न रहने वाला और हड्डियों की माला धारण करने वाला हैं। वह देवताओं की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं हैं। उसे कौन स्थान देगा?
सती के नेत्र लाल हो उठे। उनका मुख मंडल प्रलय के सूर्य की भांति तेजोदिप्त हो उठा। वह बहुत ही क्रोधित हो उठी। उन्होंने पीड़ा से तिलमिलाते हुए कहा ओह! मैं इन शब्दों को कैसे सुन रहीं हूं मुझे धिक्कार हैं। देवताओं तुम्हें भी धिक्कार हैं! तुम भी उन कैलाश पति के लिए इन शब्दों को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के प्रतीक हैं और जो क्षण मात्र में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। वे मेरे स्वामी हैं। नारी के लिए उसका पति ही स्वर्ग होता हैं। जो नारी अपने पति के लिए अपमान जनक शब्दों को सुनती हैं उसे नरक में जाना पड़ता हैं। पृथ्वी सुनो, आकाश सुनो और देवताओं, तुम भी सुनो! मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया हैं। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती। सती अपने कथन को समाप्त करती हुई यज्ञ के कुण्ड में कूद पड़ी। जलती हुई आहुतियों के साथ उनका शरीर भी जलने लगा।
यज्ञमंडप में खलबली मच गई। हाहाकार मच गया। देवता उठकर खड़े हो गए। वीर-भद्र क्रोध से कांप उठे। वे उछ्ल-उछलकर यज्ञ का विध्वंस करने लगे। यज्ञमंडप में भगदड़ मच गई। देवता और घ्षि-मुनि भाग खड़े हुए। वीरभद्र ने देखते ही देखते दक्ष का मस्तक काटकर फेंक दिया। समाचार भगवान शंकर के कानों में भी पड़ा। वे प्रचंड आंधी की भांति कनखल जा पहुंचे। सती के जले हुए शरीर को देखकर भगवान शंकर अपने आपको भूल गए। सती के प्रेम और उनकी भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रूक गई, जल का प्रवाह ठहर गया और देवताओं की सांसें भी रुक गई। भयानक संकट उपस्थित देखकर सृष्टि के पालक भगवान विष्णु आगे बढ़े। वे भगवान शंकर की बेसुधी में अपने चक्र से सती के एक-एक अंग को काट-काट कर गिराने लगे। धरती पर इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे। धरती पर जिन इक्यावन स्थानों में सती के अंग कट-कटकर गिरे थे, वे ही स्थान आज शक्ति पीठ माने जाते हैं। आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं।
उधर, सती ने हिमवान के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर शंकर जी ने पार्वती को पत्नी के रूप में जिस तदन स्वीकार किया, उसी दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।  पं. आर.एस. द्विवेदी (हिफी)

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