अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

प्रश्नों के प्रति जिज्ञासा की परम्परा

प्रश्न और जिज्ञासा वैदिक परंपरा है। भारतीय इतिहास के वैदिक काल में सामाजिक अन्तर्विरोध कम थे। तब प्रश्नाकुलता का संबंध सृष्टि रहस्यों की जिज्ञासा से था। महाभारत काल में व्यक्ति और समाज में अन्तर्विरोध बढ़े। सृष्टि रहस्यों की जिज्ञासा वैदिक परंपरा से महाभारत काल तक प्रवाहमान थी ही लेकिन इस काल में सामाजिक अन्तद्र्वन्द के प्रश्नों की झड़ी लग गई। युधिष्ठिर महाभारत के निराले नायक थे। वे जुएं में पत्नी द्रोपदी को भी दांव पर लगा चुके थे तो भी वे धर्मराज कहे गए। वे महाभारत युद्ध के बाद राज्य के अधिकारी बने। वे स्वयं अन्तद्र्वन्द में फंसे रहे। उनसे गंभीर प्रश्न पूछे गए। उन्होंने तमाम प्रश्नों के उत्तर भी दिये। ‘यक्ष प्रश्न’ भारत के लोक जीवन में आज भी चर्चा का विषय है। महाभारत वन पर्व के अनुसार पांडव प्यासे थे। पेड़ पर चढ़कर नकुल ने एक सरोवर देखा। बारी-बारी से चार भाई सरोवर पर पहुंचे। वहां यक्ष था। उसने शर्त लगाई-पहले प्रश्नों के उत्तर दो, तब पानी पियो। वे ऐसा नहीं कर सके। धराशायी हो गए। अंत में युधिष्ठिर पहुंचे। उन्होंने यक्ष के प्रश्नों के उत्तर दिये। महाभारत में यक्ष प्रश्नों का यह भाग बड़ा प्यारा है। प्रश्न भी सुंदर हैं और उत्तर भी मजेदार हैं।
प्रश्नकत्र्ता यक्ष की मेधा से युधिष्ठिर आश्चर्यचकित थे। उन्होंने पूछा ‘‘आप यक्ष नहीं जान पड़ते। आप का परिचय क्या है?’’ उसने उत्तर दिया ‘‘मैं धर्म हूँ। यश, सत्य, दम, सरलता, पवित्रता, अचंचलता, लज्जा, दान, तप मेरे अंग हैं। समता, अहिंसा, शांति, करूणा और ईष्र्या रहित चित्त मेरे पास आने के उपकरण हैं।’’ इस धर्म में अंधविश्वास की कोई गुंजाइश नहीं। यह धर्म लोककल्याण की आचार संहिता है। यहां धर्म स्वयं धर्मराज से प्रश्न कर रहा था। धर्म गुण और विधि नियम हैं। इसलिए धर्म के सामने धर्मराज का जवाबदेह होना राष्ट्रीय कत्र्तव्य है। यक्ष प्रश्नों में धर्म तत्व भी पूछा गया है। पंडितों के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। प्रश्न है ‘‘मनुष्य क्षोत्रिय या पण्डित किससे होता है? महत्पद कैसे पाता है?’’ उत्तर है ‘‘वेद जानने से वह क्षोत्रिय होता है। तप श्रम से महत्पद पाता है।’’ प्रश्न है कि ‘‘मनुष्य बुद्धिमान कैसे होता है?’’ उत्तर है कि वरिष्ठों वृद्धों की सेवा से बुद्धिमान होता है। एक सुंदर प्रश्न है कि मनुष्यों का अतिथि कौन है? उत्तर है कि अग्नि सभी प्राणियों के अतिथि हंै। यह प्रश्न ऋग्वेद की परंपरा है। प्रश्न है कि जीवन मार्ग क्या है? प्रश्न बड़ा है। उत्तर भी बड़ा है’’ वेद कथन भिन्न-भिन्न है। ऋषि अनेक हंै। तर्क से बात नहीं बनती। धर्म तत्व गुहा में है। महापुरूषों का मार्ग ही उचित है।’’ इस उत्तर में व्यवहारवाद की प्रतिष्ठा है।
युधिष्ठिर यक्ष प्रश्नों के ही लपेटे में नहीं आए। एक अजगर ने भी उनसे तमाम प्रश्न पूछे। वन में अजगर ने बलशाली भीम को पकड़ लिया। अजगर साधारण सर्प नहीं था। वह पूर्वजन्म में राजा था। पंडितों का अपमान करने के कारण वह सांप हुआ। उसे वरदान था कि जब उसके प्रश्नों का सही उत्तर मिलेगा तब वह शापमुक्त हो जाएगा। यह सिद्धांत हम सबके जीवन पर भी लागू है। सारा संसार प्रश्नाकुल है। सौभाग्यशाली प्रश्नकत्र्ताओं को ही सही उत्तर मिलते हैं और सही उत्तर उसे दुख-मुक्त कर देते हैं। बेशक यह बात प्रश्न जिज्ञासाहीन मित्रों पर लागू नहीं होती। युधिष्ठिर अजगर से भीम को छुड़ाने पहुंचे। अजगर पंडितों से शापित था। सो उसने पंडितों के बारे में ही प्रश्न पूछा ‘‘ब्राह्मण कौन है?’’ युधिष्ठिर ने उत्तर दिया। ‘‘सत्य, क्षमा, शील, तप और करूणा से युक्त ब्राह्मण कहे जाते हैं।’’ युधिष्ठिर का उत्तर विचारणीय है। इस उत्तर में ब्राह्मण जन्मना नहीं है। सत्य आदि गुण धारण ही ब्राह्मणत्व है।
ज्ञान सर्वोच्च है। अजगर ने पूछा, ‘‘जानने योग्य क्या है?’’ युधिष्ठिर ने उत्तर दिया ‘‘ब्रह्म जानने योग्य है। यह सुख दुख से परे है।’’ अजगर ने पूरक प्रश्न पूछा, ‘‘सद्गुण और ज्ञान तो सभी वर्णों में होते हैं।’’ अर्थात् ब्राह्मण ही क्यों सम्माननीय हैं? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया ‘‘जिसमें भी ये तत्व है, वही श्रेष्ठ है, वही ब्राह्मण है।’’ अजगर ने कहा ‘‘मुझे सुख-दुख से परे कोई अन्य तत्व नहीं दिखाई पड़ता।’’ युधिष्ठिर ने कहा कि ऐसा भी एक पद या तल है। जैसे शीत और ताप के मध्य एक स्थिति में न शीत है और न ताप।’’ जीवन प्रत्येक द्वैत के बीच एक समन्वय है। यहां न कोई ब्राह्मण है और न कोई शुद्र। हम सब अस्तित्व के ही भाग हैं। महाभारत का ही खूबसूरत हिस्सा गीता है। पंडित की चर्चा गीता में भी है। गीता (2.11) में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “तुम शोक के योग्य न होने वाली बातों पर शोक कर रहे हो। पंडित या विद्वान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अथवा जीवित या मृत के लिए शोक नहीं करते, ‘‘गतासून गता सूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।’’ महाभारत काल में वर्ण व्यवस्था है लेकिन उसे न मानने वाले विचार और दर्शन भी हैं। पंडित होना अर्जित योग्यता है। तब शोक या दुख समाप्त हो जाते हैं।
महाभारत के विदुर एक निराले पात्र हैं, वे नीतिज्ञ हैं और दार्शनिक भी। उन्होंने धृतराष्ट्र को बताया ‘‘स्वरूप का बोध, सहनशीलता, धर्म में स्थिरिता, कर्मनिष्ठा जैसे गुण जिस मनुष्य को पुरूषार्थ से अलग नहीं करते वही पंडित है। क्रोध, गर्व, उद्दंडता व स्वयं को महान समझना जैसे भाव जिस मनुष्य को पुरूषार्थ से भ्रष्ट नहीं करते वही पंडित है।’’ यहां पुरूषार्थ पर जोर है। अच्छे गुण भी व्यक्ति को नियतिवादी बना सकते हैं लेकिन पंडित को सद्गुण भी पुरूषार्थ से अलग नहीं कर सकते और न ही अवगुण। वह ‘समदर्शिनः’ है। गीता वाले अंश में यही तत्व बोध बारंबार आया है। महाभारत में अनेक विचार हैं। तमाम दार्शनिक और प्रकृतिवादी विचार सीधे ऋग्वेद से महाभारत तक विस्तार में हैं। तत्वदर्शन की तमाम
धाराएं उपनिषदों से महाभारत में आई हैं। वेद उपनिषद् में वे मंत्र रूप हैं। महाभारत में वे आख्यान हैं। पशु पक्षी की वार्ता रूप में उन्हें सरल-तरल बनाने का कवि कौशल अनूठा है। ऋग्वेद से महाभारत तक तमाम भिन्नताओं को एक ही परमतत्व का रूप प्रतिरूप जाना गया है।
महाभारत के कथानक में श्रीकृष्ण योगेश्वर हैं। अर्जुन उनका सखा है। गीता प्रबोधन युद्ध के ठीक पहले की घटना है। अर्जुन ने तभी विश्वरूप देखा था लेकिन इसके पहले वनपर्व 12वें अध्याय में भी अर्जुन ने श्रीकृष्ण की स्तुति में तमाम वैसी ही बाते की थी। ‘‘आप ही नारायण हैं। फिर आप ही हरि रूप में प्रकट हुए। सोम, सूर्य, धर्म, घ्राता, यम, वायु, कुबेर, रूद्र, काल, आकाश, दिशा आप ही हैं। आप अजन्मा हैं।’’ यहां देवों का पृथक अस्तित्व स्वीकार करते हुए भी ‘एक ही सत्य’ की स्थापना है। इसी खण्ड में विष्णु अपना परिचय देते हैं ‘‘मैंने ही पूर्वकाल में जल का नाम ‘नारा’ घोषित किया। यह नारा (जल) मेरा अयन (निवास) है। मैं ‘नारायण’ नारा-अयन हूँ। मैं विष्णु, इन्द्र, कुबेर, शिव और यम हूँ। संपूर्ण दिशाओं सहित आकाश मेरी देह है। मैं ‘‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत/अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्-धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयं को प्रकट करता हूँ।’’ विष्णु की यही बात गीता में भी इन्हीं शब्दों में श्रीकृष्ण ने दोहराई। अस्तित्व से जुड़े प्रश्न वैसे ही फिर से उग रहे हैं। महाभारत में उत्तरदाता ढेर सारे। युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण, भीष्म और तमाम महानुभाव। लेकिन आधुनिक भारत में सृष्टि संसार से जुड़े आधारभूत प्रश्नों में आनंद लेने वाले जिज्ञासु भी कम हैं। हृदयनारायण दीक्षित  (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button