सम-सामयिक

पिघलते ग्लेशियर ला सकते हैं तबाही

 

पिघलते ग्लेशियर और उनसे पहाड़ पर बन रही झील बड़ी प्राकृतिक आपदा की वजह बन सकती है। पिछले कुछ दशकों में जिस तरह धरती पर तापमान बढ़ रहा है यहां तक कि नभ जल भूमि सभी के तापमान में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि देखने को मिल रही है। वह घोर चिंताजनक तो है ही आने वाले समय में जीवन के समक्ष पैदा होने जा रही चुनौतियों को भी बयान कर रही है। पिछले साल सिक्किम में लहोनक ग्लेशियर झील फटने की घटना सामने आई थी जिसमें 180 लोगों के मरने व पांच हजार करोड़ के नुकसान की खबर थी। इसी तरह केदारनाथ में चैराबाडी ग्लेशियर झील फटने से हजारों लोगों की जल प्रलय में मौत हुई थी। 2021 में उत्तराखंड की नीति घाटी में ग्लेशियर झील फटने से दो सौ लोगों के मरने समेत डेढ़ हजार करोड़ का नुकसान हुआ था। अब हिमालय पर्यावरण विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि देश के हिमालय क्षेत्र में आने वाले राज्यों में खतरनाक किस्म की 188 झीलें बन चुकी हैं, जो किसी बड़े भूकंप आने पर लाखों लोगों के जीवन को संकट में डाल सकती हैं। यूं तो सबसे ज्यादा खतरे की वजह पूर्वोत्तर की झीलें हैं, लेकिन खतरा कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम में भी लगातार बना हुआ है। दरअसल, केंद्रीय गृहमंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले डिजास्टर मैनेजमेंट डिवीजन और हिमालय अध्ययन विशेषज्ञों की टीम द्वारा किए गए एक साल की स्टडी के बाद जो निष्कर्ष सामने आए हैं, वे चिंता में डालने वाले हैं।

गौर तलब है कि अब ग्लोबल वार्मिंग का वास्तविक खतरा सामने दिखायी दे रहा है। लगातार बढ़ते तापमान से हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पहाड़ों में बर्फ पिघलने से बने जल को निकासी का रास्ता न मिलने पर ये बर्फीला पानी झीलों के रूप में एकत्र हो जाता है। पर्यावरण विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं कि यदि इन संवेदनशील इलाकों में सात तीव्रता जैसा भूकंप आता है तो ये झीलें जल बम बनकर फूट सकती हैं। इससे छह राज्यों की करीब तीन करोड़ आबादी प्रभावित हो सकती है।

हिमालय घाटी में पिघलते ग्लेशियरों के कारण लगातार ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। दरअसल ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड वो स्थिति है जब ग्लेशियर पिघलने से मैदानी इलाकों में पानी का बहाव ज्यादा हो जाता है और प्राकृतिक बांध या झील में पानी का स्तर बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इस कारण इसकी दीवारें टूट जाती हैं और आसपास के इलाकों में जल प्रलय आ जाती है। इसे आसान शब्दों में झील का फटना भी कहते हैं जिससे झील से सटे और निचले इलाके प्रभावित होते हैं। इस दौरान पानी का बहाव इतनी तेजी से आता है कि उससे बचना नामुमकिन सा हो जाता है, जिससे ये अपने साथ सबकुछ बहाकर ले जाता है।

जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है। ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी तेज होती जा रही है। यही कारण है कि हाल के दिनों में ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड की घटनाएं हिमालय क्षेत्र में बढ़ी हैं। साथ ही इन इलाकों में निर्माण की गतिविधि तेज होने से हालात और ज्यादा खराब हुए हैं. 1980 के बाद से हिमालयी क्षेत्र में खासतौर पर दक्षिण पश्चिमी तिब्बत, चीन और नेपाल की सीमा के पास तेजी से ग्लेशियर पिघलने के प्रभाव देखे गए हैं. 2023 में नेचर जरनल में प्रकाशित एक रिपोर्ट: ‘एनहांस्ड ग्लेशियल लेक एक्टिविटी थ्रेटंस न्यूमेरिस कम्यूनिटी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर इन द थर्ड पोल,’ में इसका जिक्र किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक करीब 6353 वर्ग किलोमीटर के इलाके में खतरा सबसे ज्यादा है. जिसके कारण करीब 55 हजार इमारतों, 105 हाइड्रो पावर प्रोजोक्ट, 5005 किलोमीटर रोड, 4038 पुल खतरे में हैं. 2023 में नेचर जरनल में ही छपी एक और रिपोर्ट भी इसी खतरे की ओर इशारा करती है. जिसके मुताबिक इस इलाके में मौजूद ग्लेशियल लेक का आकार जरूर पेसिफिक नोर्थ वेस्ट या तिब्बत के इलाके में मौजूद लेक के बराबर न हो, लेकिन यहां आबादी बहुत ज्यादा है जिसके कारण खतरा काफी बढ़ गया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग संकट के चलते इन हिमालयी क्षेत्रों में 28 हजार से अधिक झीलें बन गई हैं, जिसमें 188 ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती हैं। इन संवेदनशील झीलों को ए श्रेणी में रखा गया है। इन इलाकों में ग्लेशियरों के पिघलने व खिसकने का खतरनाक ट्रेंड देखा गया है। वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियरों की पिघलने की दर 15 प्रतिशत बढ़ गई है, जो हमारे लिए गंभीर चेतावनी का कारण बन रही है। केंद्र सरकार के अधिकारी और पर्यावरण विशेषज्ञ ग्राउंड जीरो व उपग्रहों के जरिये इन झीलों की बराबर निगरानी कर रहे हैं। इन इलाकों में स्वचालित मौसम निगरानी केंद्र बनाये गए हैं। इस दिशा में मंथन किया जा रहा है कि कैसे इन खतरनाक झीलों का पानी आधुनिक तरीकों से रिलीज किया जाए। एक ओर जहां झीलों से जल निकासी के रास्ते तलाशे जा रहे हैं, वहीं ड्रिल करके पानी को नियंत्रित करने पर भी विचार हो रहा है। इसके अलावा भूमिगत पानी के साथ मिलाने के लिये भूमिगत टनल बनाने पर भी मंथन हो रहा है। निस्संदेह, यह एक गंभीर पर्यावरणीय संकट हैं और छह राज्यों के करोड़ों लोग इस संकट से प्रभावित हो सकते हैं। दरअसल, झील के फटने पर मिट्टी व भारी मलबा ढलान पर गोली की तरह उतरता है, जो भारी तबाही का कारण बन जाता है।

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथारिटी ने हिंदु कुश हिमालय क्षेत्र में ऐसी 188 ग्लेशियर झीलों को चुना है, जिनसे भारी बारिश होने की स्थिति में आने वाले समय में खतरा बढ़ने की आशंका है। इससे करीब 1.5 करोड़ लोगों की जान को खतरा है। मालूम हो कि हिंदु कुश हिमालय का इलाका अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में 3,500 किमी तक फैला है।ये 1.5 करोड़ लोग वो हैं जो इन झीलों के निचले हिस्सों में बसे हैं और भारी जल सैलाब की वजह से इनकी जान खतरे में हैं। गृह मंत्रालय ने उत्तराखंड की 13 झीलों का नाम भी चिन्हित किया है, जिनमें आगे चलकर खतरा पैदा हो सकता है. गृह मंत्रालय ने इन झीलों को असुरक्षित होने के आधार पर तीन अलग-अलग कैटेगरी में बांटा है. गृह मंत्रालय द्वारा उत्तराखंड में चिन्हित की गई इन 13 झीलों में से 5 झीलें ए कैटेगरी में रखी गई हैं, जिन पर सबसे ज्यादा खतरा है. इसके बाद थोड़ा कम जोखिम वाली बी कैटेगरी में 4 झीलें और सी कैटेगरी में भी 4 झीलें चिन्हित की गई हैं।

केंद्रीय एजेंसियां लगातार अध्ययन कर इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयारी में जुटी हुई हैं। लगातार भूवैज्ञानिक और डिजास्टर विभाग अपग्रेड सिस्टम के लिए रिसर्च कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए इंसानी समाज के जागरूकता के बिना ग्लोबल वार्मिंग का सिलसिला रुकने वाला नहीं है दिन रात आग उगल रहे एसी और दूसरे उपकरणों को जीवन के लिए जरूरी मान लेना भी एक घटक है। हम कब जागेंगे शायद तब जब देर हो चुकी होगी। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button